AGRIFIELDEA आप सभी का एक बार फिर से स्वागत करता है । आज हम एक नई टॉपिक लेकर आये है जिसका नाम है “Weed यानिकि खरपतवार” , जिसे आप सभी जानते ही हैं ।
आज इस पोस्ट के माध्यम से खरपतवार के बारे में सब कुछ जानने की कोशिश करेंगे जैसे कि खरपतवार क्या है ? (Weeds in hindi) खरपतवार की क्या विशेषताएँ होती है ?खरपतवार से क्या – क्या हानि व लाभ है?, खरपतवारों का वर्गीकरण, और बहुत कुछ – खरपतवार को जानने से लेकर उसके नियंत्रण तक सब कुछ जानेंगे ।
खरपतवार (Weeds in Hindi) :-
खरपतवार (Weeds in Hindi) ऐसे अवांछित पौधे होते हैं जो हमारे मुख्य फसलों के साथ बिना उगाए ही उग जाते हैं और फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। खरपतवार को कई अन्य नामो से भी जाना जाता है जैसे – घास- फूस, बंद , आदि ।
● खरपतवार मुख्य फसलो से पांच तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा (Competition) और वो है – स्थान (Space), प्रकाश (Light), पोषक तत्व (Nutrients), हवा (Air/CO2), और पानी (Water) ।
● खरपतवार यानिकि Weed शब्द का प्रयोग सबसे पहले ‘जेथ्रोटुल’ ने किया था इसीलिए ‘जेथ्रोटुल‘ को खरपतवार विज्ञान का जनक ( Father of Weed Science) कहा जाता है।
खरपतवार की परिभाषा (Definition Of Weeds in Hindi)
(1) “खरपतवार (Weed) वह पौधा है जो बिना उगाये उस स्थान पर उग जाता है जहाँ किसान नही चाहता कि वहाँ उगे ।”
(2) “खरपतवार (Weed) वह अवांछित या अनावश्यक पौधा है जो किसी स्थान पर बिना उगाए ही उग जाता है, और जो फसल के साथ पोषक तत्वों, जगह, प्रकाश, पानी व हवा के लिये प्रतिस्पर्धा (Competition) करता है, और जिसकी उपस्थित में किसान को लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होती है , खरपतवार कहलाता है।”
(3) “Weed is a plant considered undesirable in a particular situation, ( a plant in the wrong place ). Examples- commonly are plants unwanted in human-controlled settings, such as farm fields, gardens, lawns, and parks”.
खरपतवारों की विशेषतायें :-
आज हम में से खरपतवार (Weeds in Hindi) के बारे में जानते तो सभी है लेकिन इन खरपतवारों के अद्भुत विशेषताओं के बारे में बहुत कम ही जानते हैं । तो चलिए जानते हैं खरपतवारों के कुछ रोचक विशेषताओं के बारे में क्रमवार से –
1. शीघ्र वृद्धि (Rapid growth) :-
खरपतवार (Weeds) फसलों से पहले व जल्दी वृद्धि कर लेते हैं । क्योंकि ये फसल के साथ प्रतियोगी होते हैं जो स्थान, प्रकाश, पोषक तत्व, जल व हवा के लिए फसलो के साथ प्रतियोगिता अथवा प्रतिस्पर्धा करते हैं । कुछ-कुछ खरपतवार तो जल्दी वृद्धि करने के साथ – साथ अधिक फैलने वाले भी होते हैं ।
2. अत्यधिक बीजोत्पादन क्षमता :-
खरपतवारों (Weeds) के पौधे फसलों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा बीज उत्पादन करने की क्षमता रखता है । जैसे चौलाई व मकोय का एक पौधा 1,50,000 से 2,00000 बीज प्रति पौधा उत्पादन कर सकता है । इसी प्रकार बथुआ भी 70000 से 75000 बीज प्रति पौधा उत्पादन कर सकता है ।
3. जल्दी जीवन चक्र पूरा :-
खरपतवार (Weeds) अपना जीवन चक्र या कहे तो बीज उत्पादन फसलों की अपेक्षा बहुत ही जल्दी कर लेता है। इससे फसल की कटाई से पहले ही खरपतवारों के बीज खेतों में गिर जाते हैं जो अगले सीजन में फिर से उग जाते है जिससे खेतों में इसकी समस्या बनी रहती है । कुछ खरपतवार तो वर्षा ऋतु में ही लगभग 2 से 4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं । जैसे – हजारदाना ।
4. सुषुप्तावस्था/बीजों की जीवन क्षमता अधिक :-
खरपतवारों के बीज कई वर्षों तक जीवित रह सकता है । जैसे मोंथा का बीज 20 वर्ष तक, हिरनखुरी का बीज लगभग 50 वर्ष, बथुआ का बीज 25 से 40 वर्ष व जंगली सरसों का बीज 40 वर्ष तक भूमि में दबे रहने के बाद भी अंकुरण की क्षमता रखते हैं ।
5. अधिक गहरी जड़े :-
कुछ खरपतवारों के बीज बहुत गहरे होते हैं जिससे वे अधिक गहराई तक मृदा से पोषक तत्व व जल ग्रहण कर सकते हैं । जैसे कांस , हिरनखुरी आदि खरपतवारओं की जड़े 4 से 6 मीटर की गहराई तक भी होती है ।
6. समानता :-
सामान्यतः यह देखा जाता है कि कुछ फसलों व खरपतवारों के पौधे और बीजों में समानता देखने को मिलता है । जिससे खरपतवार आसानी से वृद्धि व विकास कर लेते हैं । जिसको शुरुआत में पहचानना कठिन होता है लेकिन वृद्धि होने के बाद पहचाना जा सकता है । जैसे गेहूं के खेत में गेहूंसा , धान के खेत में जंगली धान या करगा , सरसों के खेत में जंगली सरसों ।
उसी प्रकार खरपतवारों के बीजों की आकृति व रंग फसलों के बीजों के समान होती है । जिससे इसको पहचानने में कठिनाई व फसल में आसानी से मिल जाता है । जिससे ये फसलों के साथ कर उग कर हानि पहुंचाते हैं । जैसे सरसों में सत्यानाशी नामक खरपतवार व बरसीम में कासनी खरपतवार के बीजों में समानता होती है ।
7. वानस्पतिक प्रवर्धन :-
8. खरपतवार का सुरक्षा आवरण :-
बहुत से खरपतवार ऐसे होते हैं जिस के पौधे पर कांटे पाए जाते हैं या जिसके बीजों का आवरण कांटेदार या सख्त होते हैं । जिससे मनुष्य या जानवर इसके नजदीक नहीं जा पाने के कारण ये खरपतवार अपनी सुरक्षा कर लेते हैं ।
9. खरपतवार प्रतिकूल परिस्थितियों (Unfavorable Conditions) में भी जीवित रह सकता है –
जैसे – खरपतवार सभी प्रकार की मृदाओं ( अम्लीय, क्षारीय, लवणीय, बंजर ) में वृद्धि , कम पानी व काम पोषक तत्वों की उपस्थिति में भी जीवन चक्र पूरा कर लेता है । व प्रतिकूल जलवायवीय दशाओं से अप्रभावित होते हैं । और खरपतवारों पर कीट व रोग का प्रभाव भी कम देखने को मिलता है ।
खरपतवार से हानियाँ
खरपतवारों से फसलों को तो नुकसान होता ही है साथ-साथ मानव जाति व पशुधन को भी इससे हानियां होती है । खरपतवार से फसल को औसत 30 से 45% तक हानि होती । चलिये नीचे क्रमवार से जानते हैं कि यह हानियाँ किस – किस प्रकार से होती है:-
खरपतवार से कृषि को नुकसान
2. उपज की गुणवत्ता में कमी :- खेतो में खरपतवार की समस्या होने से इसका फसल की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है । क्योंकि उपज में खरपतवार के बीज मिल जाये तो यह उपज की गुणवत्ता (Quality) खराब कर सकती है ।
3. फसलो पर खरपतवारों से एलिलोपैथिक प्रभाव (Allopathy effect) :- कुछ खरपतवारों की जड़े कुछ विषैला रसायन छोड़ती है जो फसलो के लिए हानिकारक होती है । इसे एलिलोपैथी (Allopathy) कहते हैं ।
4. खरपतवार से भूमि की गुणवत्ता व मूल्य पर प्रभाव :- जिस भूमि पर खरपतवार की समस्या नही होती है समान्यतः उस भूमि की गुणवत्ता अच्छी व उसका मूल्य भी अच्छी खासी होती है । इसके विपरीत जिस भूमि या खेत में खरपतवार की समस्या अधिक हो तो उसकी गुणवत्ता व मूल्य में स्वतः ही कमी हो जाती है ।
5. खरपतवार रोग व कीटों को आश्रय देता है :- बहुत से ऐसे भी खरपतवार होते है जो फसल की कटाई के बाद या कजेत खाली रहने से फसलो के रोग व कीटो को आश्रय देने का काम करते हैं । जिससे वह रोग व कीट फसल लगने के पश्चात फिर से फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं ।
जैसे :- बथुआ (Chenopodium album) चने की सुंडी (gram caterpillar) को आश्रय देता है , उसी प्रकार Quick Grass या couch grass (Elymus repens) खरपतवार – गेहूँ के ब्लेक रस्ट रोग (Black Rust of Wheat) को आश्रय देता है ।
6. खरपतवार से सिंचाई जल की हानि :- खरपतवार जल के लिए फसलो से प्रतिस्पर्धा तो करते ही है साथ ही साथ खरपतवार सिंचाई की नालियों में उगकर सिंचाई जल के बहाव में अवरोध उत्पन्न करता है , जिससे सिंचाई जल की हानि होती है।
7. कृषि यंत्रों, मशीनों व श्रम पर अधिक व्यय :- जिन क्षेत्रों में या खेत में खरपतवारों का प्रकोप बहुत अधिक रहता है वहां इनकी रोकथाम के लिए खेतों में जुताई या निराई – गुड़ाई आदि कृषि क्रियाएं करनी पड़ती है । जिससे बार बार कृषि यंत्रों , मशीनों व श्रमिकों से काम लेने के कारण व्यय या लागत में बढ़ोतरी हो जाता है।
खरपतवार से पशुधन को हानि
वैसे तो बहुत से खरपतवारों को पशु खा जाते है लेकिन कुछ खरपतवार को अगर पशु खा ले तो उस पर इसका हानिकारक प्रभाव देखा जा सकता है जो निम्नलिखित है –
● पशुओं के स्वास्थ्य पर खरपतवार का प्रभाव – कुछ खरपतवार को अगर पशु खा जाते हैं तो वो बीमार हो सकते है जैसे :- बथुआ (Chenopodium album) से दम घुटना या जिसे Asphyxia भी कहते है की समस्या आती है ।
बरु घास (Sorghum halepense) को अगर पशुओं द्वारा कल्ले फूटते समय चर लेने पर पशुओं पर इसका जहरीला प्रभाव पड़ता है ।
उसी प्रकार जरायन खरपतवार (Lantana camara) से पशुओं को Jaundice का खतरा रहता है।
● खरपतवार से पशु उत्पाद पर प्रभाव – कुछ जहरीले खरपतवारों से पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर व उसकी गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है।
आप देखे होंगे कि कभी – कभी कुछ खरपतवार को पशुओं द्वारा खा लेने पर उसके बीज गोबर के माध्यम से वैसे ही बाहर निकल जाते है जो बाद में खेतों में या कम्पोस्ट की गड्डो में उग जाते है ।
खरपतवारों से मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव –
“● गाजर घास (Parthenium hysterophorus) की पत्तियों के स्पर्श मात्र से ही मनुष्य में एलर्जी, खुजली व जलन होने लगती है ।
● अगर सरसों के बीज में सत्यानाशी का बीज मिल जाए और उससे तेल निकाल कर उपयोग करें तो मनुष्य में अंधापन रोग (Dropsy Disease) हो जाता है ।
खरपतवारों के लाभ (Benefits of Weeds in Hindi)
वैसे तो खरपतवारों से हानियां अधिक होती है लेकिन कुछ खरपतवारों से हमें कुछ लाभ भी होते हैं जो निम्नलिखित है –
1. मृदा क्षरण रोकने में सहायक :- खरपतवारों की जड़े मृदा को बांध कर रखती है, जिससे खरपतवार मृदा संरक्षण में सहायक होते हैं ।
2. खरपतवारों (Weeds) का औषधीय महत्व :- बहुत से खरपतवार औषधीय महत्व के होते है ।
जैसे –
हजारदाना नामक खरपतवार का काढ़ा पीलिया के रोगी को पिलाने से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
चिरचिटा नामक खरपतवार को सर्प दंश के इलाज में प्रयोग किया जाता है ।
माना जाता है कि दूब घास शक्तिवर्धक औषधि है, क्योंकि दूब घास में ग्लाइकोसाइड, विटामिन A व C पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है ।
सत्यानाशी का जड़ कुष्ठरोग में सहायक होता है ।
3. खाने में उपयोग :- कुछ खरपतवारों का उपयोग भाजी के रूप में खाने में उपयोग किया जाता है । जिसका पोषक महत्व बहुत ही अच्छा है । जैसे :- बथुआ (Chenopodium album) , चौलाई (Amaranthus), चरोटा (Cassia tora) इत्यादि ।
4. चारे के रूप में खरपतवार का उपयोग:- बहुत से खरपतवार ऐसे है जिसे पशु बड़े चाव से खाते हैं , जिसे चारे के रूप में उपयोग किया जाता है । जैसे – दूब घास , चौलाई, बथुआ आदि ।
5. सजावट और लॉन बनाने में प्रयोग :- दूब घास का उपयोग लॉन के निर्माण में किया जाता है । जबकि जरायन (Lantana camera) आ उपयोग सड़क के किनारे सजावट के रूप में या खेतो के किनारे बाड़े के रूप में लगाते हैं ।
6. खरपतवारों का आर्थिक महत्व :- खरपतवारों का प्रयोग प्राचीन काल से ही लोग अपने दैनिक जीवन में करते आ रहे हैं । जैसे – कांस (खरपतवार) का उपयोग छप्पर के रूप में भी किया जाता है ।
चरोटा , चौलाई आदि खरपतवारों के भाजी को बाजारों में विक्रय किया जाता है ।
लेमन घास (Lemon Grass) के तेल का प्रयोग सुगन्धित व सौंदर्य युक्त तेलों व साबुन में किया जाता है ।
इसके अगले पार्ट में हम जानेंगे खरपतवारों के वर्गीकरण व इसके नियंत्रण के विधियों के बारे में ।
PART – 2 Classification of Weeds
AGRIFIELDEA को आशा है कि आपको हमारी यह पोस्ट (Weeds in Hindi) पसंद आयी हो । धन्यवाद ! 🙏🙏
Good