धान के फसल की कीट, रोग और खरपतवार का प्रबंधन | Diseases Insect Pest Weeds of Rice Field And Their Management

Hello दोस्तों AGRIFIELDEA स्वागत करता है आप सभी का एक बार फिर से । आप सभी तो जानते ही हैं कि अभी धान का सीजन चल रहा है और धान के खेतों में तरह – तरह के रोग , खरपतवार व कीट देखने को मिलते हैं । जिसका अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए प्रबंधन करना बहुत ही आवश्यक है ।

 

Diseases Insect Pest Weeds of Rice Field And Their Management - धान की फसल में कीट , रोग और खरपतवार का प्रबंधन

 

तो आज हम बात करेंगे धान के खेतों के इन्हीं कीट- व्याधियों व खरपतवारों व उसके प्रबंधन (Diseases Insect Pest Weeds of Rice Field And Their Management) के बारे में । तो सबसे पहले जानेंगे धान के फसल में आने वाले कुछ मुख्य कीटों के बारे में उसके बाद इसमें लगने वाले रोगों के बारे में फिर धान के खेत मे उगने वाले कुछ प्रमुख खरपतवारों के बारे में और इन सबके नियंत्रण के बारे में ।

 

Table of Contents

धान के खेत मे रोग, कीट व खरपतवारों का प्रबंधन (Diseases Insect Pest Weeds of Rice Field And Their Management)

Major Insects Pest of Rice Field’s And Their Management- धान की फसल के मुख्य कीट व इसका नियंत्रण –

तो दोस्तों धान की फसल की मुख्य कीटों के बारे में जानने से पहले यार जान लेते हैं कि Pest (पीड़क) क्या होते हैं ।

  वे जीव या जीवों के समूह जो फसल को नुकसान पहुँचाते हैं जिससे किसान को आर्थिक हानि होती है  । उस जीवों के समूह को Pest (पीड़क) कहते हैं ।

यह Pest उगाई गई फसलो को या भण्डारित किये गए अनाजो को क्षति पहुँचाते हैं । जैसे कृषि के दुश्मन कीट और चूहे आदि ।

अब हम जानते हैं कि धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मुख्य कीटों के बारे मे व उसके नियंत्रण के बारे में –

1. धान का गन्धी बग (Gandhi bug) :-

Gandhi bug
Image source Plantwise knowledge bank (Plantwise.org)
                    इस कीट को रेंघा, चुषिया आदि नामों से भी जाना जाता है । कहते है कि यह कीट खेत में अधिक होने से गंध आती है इसलिए इसे गन्धी बग कहा जाता है । इस कीट का वैज्ञानिक नाम Leptocorisa acuta है । यह कीट धान के अलावा ज्वार, बाजरा, कोदो, मक्का आदि फसलो को भी नुकसान पहुँचाते हैं । इस कीट के पौढ़ तथा शिशु दोनों अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाते हैं ।

Control Measures for Gandhi Bug in Paddy Field (नियंत्रण) :- 

–> इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 EC का 625 ml / हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं ।

–> 5% नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट का भी छिड़काव कर सकते हैं ।

 

2. Rice stem borer (तना छेदक) :-

इस कीट का वैज्ञानिक नाम – Scirpophaga incertulus है । इसकी सूंडी अर्थात लार्वा अवस्था फसल को हानि पहुंचाती है जो कि तने के अंदर प्रवेश कर तने के ऊतकों को खाते हुये अपनी वृद्धि करती है । कीट का प्रकोप फसल में अधिक होने पर 30 – 40 फीसदी तक कि हानि हो सकती है ।

Control measures for Rice Stem borer (नियंत्रण) :-

–> कीट प्रतिरोधी जातियाँ लगाये जैसे – IR-20 , IR-26 , जया,  रत्ना आदि ।

–> कारटाप हॉइड्रोक्लोराइड (पादान) 4G का 2 – 5 kg. सक्रिय तत्व का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।

–> बेसिलस थुरीजियेंसिस (BT) तथा नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट का भी छिड़काव कर सकते हैं ।

 

3. धान का हिस्पा कीट (Rice Hispa) :-

धान का हिस्पा कीट (Rice Hispa)

Image source Plantwise knowledge bank (Plantwise.org)

इस कीट का वैज्ञानिक नाम Diclodispa armigera है । यह एक नीले रंग का बीटल होता है । इस कीट का ग्रब्स (Grub) पत्तियों के अंदर सुरंग बनाते हैं । जिससे पत्तियों पर पीले रंग के छाले के समान दिखाई देते हैं । और इस कीट के पौढ़ अवस्था पत्तियों के हरी भाग (क्लोरोफिल) को खुरच-खुरच कर खाते हैं । जिससे पत्तियाँ सफेद जैसा फिर उसके बाद सूखने लगती है।

Control measures for Rice Hispa (नियंत्रण) :-

–> पौढ़ कीटों को नेट से पकड़कर नष्ट कर दे अगर सम्भव हो तो ।

–> फसल पर क्लोरपायरीफास 20 EC 1.5 ली. अथवा क्यूनालफास 25 EC 1 ली . की मात्रा को 500 लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाकर छिड़काव करना चाहिए ।

 

4. गाल मिज (Gall midge) :-

इस कीट को गंगई मक्खी , सिलवरी शूट , पोंगा आदि अन्य नामों से जाना जाता है । इसका वैज्ञानिक नाम – Orseolia oryzae है । इस कीट के मैगट तने के अंदर ऊतको को क्षति पहुँचाते हैं । जिससे तना पोंगा (tabular) जैसे गाल में बदल जाते हैं।

Control measures for Gall Midge In Rice Field (नियंत्रण) :-

–> प्रतिरोधी जातियाँ – सुरेखा, धान्या, शखी, लक्ष्मी, काव्या, IR-36 आदि ।

–> फसल में क्लोरपायरीफास 20 EC 1ली. या क्यूनालफास 25 EC 1ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें ।

 

5. हरा फुदका (Green Leaf Hopper) :-

हरा फुदका (Green Leaf Hopper) :-
Image source irri knowledge bank

इसका वैज्ञानिक नाम Nephotettix virescens है । इस कीट के शिशु तथा पौढ़ दोनों पत्तियों के लीफ शीथ (leaf sheath) का रस चूसते हैं । जिससे पत्तियाँ पीली होकर सूखने लगती है ।

Control measures for Green Leaf Hopper (नियंत्रण) :-

–> प्रतिरोधी किस्म – IR – 20 , IR – 50, रत्ना , निधि , सी.ओ. 46 आदि ।

–> Insecticide –

  • फेनथियान 100 EC – 500 मिली.
  • क्युनालफास 25 EC – 1000 मिली.

 

6. धान का भूरा फुदका :-

वैज्ञानिक नाम – Nilaparvata lugens , यह कीट तने व पत्तियों के रस चूसते हैं ।

Control measures for Brown Leaf Hopper (नियंत्रण) :- 

–> कीट से प्रभावित फसल में इमिडाक्लोप्रिड नामक दवा का 100 ml. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करनी चाहिए ।

 

 

Major Diseases Of Paddy And Their Management :
धान के  मुख्य रोग और उनका नियंत्रण :-

अगर आप धान के मुख्य रोगों के बारे में और अधिक विस्तार से जानकारी चाहते हैं तो आपको इसी ब्लॉग में मिल जाएगी या आप इस पर क्लिक करके भी देख सकते हैं ।

इन्हें भी पढ़ें – Major diseases-of-rice-in-hindi

 

पौध रोग परिभाषा –

पौध रोग  या बीमारी वह अवस्था होती है जब किसी रोगकारक अथवा Pathogen के कारण पौधे की सामान्य वृद्धि या कहें तो बढ़वार रुक जाती है और पौधा बाकी समान्य पौधों से अलग दिखाई देने लगती है । यह रोग के रोगकारक सामान्य से अधिक होने पर या रोग उग्र अवस्था में हो तो पौधे मर जाते है ।

अब हम जानेंगें धान के फसल के कुछ मुख्य रोग , उसके लक्षण व उनके प्रबंधन के बारे में

1. Blast Disease Of Rice ( झुलसा )

यह रोग Pyricularia oryzae (पायरिकुलेरिया ओरायजी)  नामक फफूंद के कारण होता है । रोग के लक्षण पत्तियों पर लम्बी लम्बी नीली धारियो के रूप में शुरू होती है। जो बाद में भूरे भूरे धब्बो में बदल जाती है । ये धब्बेें अंडाकार होती है  जिसके किनारे किनारे भूरा रंग तथा बीच का भाग सूखा हुआ होता है ।

 

Control measures for Blast Disease Of Rice (नियंत्रण) :- 

● धान के फसल की इस झुलसा रोग के प्रति बहुत से रोग रोधी किस्मे है जिन्हें लगाना चाहिए , जैसे उदाहरण के लिए – CO47 , IR20, ADT36, ADT39, ASD18, एवं IR64 आदि ।

● बीज को बुआई से पूर्व captan (कैप्टान), या thiram(थीरम), या Carbendazim (कार्बेंडाज़ीम), या Tricyclazole (ट्रायसायकलाज़ोल) का 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए ।

● धान की खेतो में Edifenphos 500ml या Carbendazim 500g या Tricyclazole 500g प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।

 

2. Brown Spot Of Rice (धान का  भूरा धब्बा रोग)

धान का भूरा धब्बा रोग (Brown Spot) Helminthosporium oryzae (हेलमिंथोंस्पोरियम ओरायजी )  नामक फफूंद के कारण होता है । इसमें रोग के लक्षण प्राांकुरचोल पर छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं । इन धब्बों का रंग गहरा भूरा या बैैैगनी भूरा  जाता है । तथा पत्तियां भुरे होकर सुख जाती है।

यदि रोग बालियां निकलने से पहले आक्रमण करती है तो बालियां निकल नही पाती तथा रोग का आक्रमण बालियां निकलने के बाद होता है तो बालियां विकसित नही हो पाता अथवा विकृत हो जाती है ।

Control measures for Brown Spot Of Rice (नियंत्रण) :- 

● इस रोग के रोग सहनशील जातियों को उगाना चाहिए जैसे – CO44, भवानी, इत्यादि ।

● बीजोपचार थीरम या कैप्टान से 4g / kg बीज दर पर किया जाना चाहिये ।

● फसल में – एडिफेंफोस (Edifenphos) 500ml या मैकोजेब (mencozeb) 2किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतराल में आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।

● M-45 का भी 0.1% छिड़काव किया जा सकता है

 

3. Sheath Rot Of Rice (शीथ रॉट)

यह रोग sarocladium oryzae नामक कवक के कारण होता है ।

Control measures for Sheath Rot (नियंत्रण) :- 

● जिप्सम का मृदा अनुप्रयोग (500 किग्रा. / हेक्ट.) दो बार अथवा दो विभाजन कर किया जाना चाहिए ।

● Neem Seed Kernal Extract (NSKE) 5% या नीम तेल 3% या Ipomoea या Prosopis Leaf Powder Extract 25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव Boot Leaf stage में तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करना चाहिए ।

 

4. Sheath Blight of Rice (शीथ ब्लाइट)

धान कि यह रोग राइजोक्टोनिया सोलेनाई (Rhizoctonia Solani) नामक कवक (fungus) के कारण होता है ।

Control measures for Sheath Blight (नियंत्रण) :-

● इस रोग के प्रति धान की रोग रोधिता वाली किस्मो को उगाना चाहिए जैसे – पंकज (Pankaj) , मानसरोवर (Mansarovar), स्वराऊ धान (Swarau dhan) इत्यादि ।

● कार्बेंडाज़ीम (Carbendazim) का 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव ।

● Pseudomonas fluorescence का 0.2 % पत्तियों पर छिड़काव (Foliar Spray) Boot leaf stage तथा 10 दिन बाद करना चाहिए ।

● इनका भी छिड़काव कर सकते है –

Propiconazol – 0.1 %

Or Hexaconazole – 0.1 %

 

 

5.  False Smut Of Paddy (धान का आभासी कंड रोग)

 

धान का False Smut यानी आभासी कंड रोग या इसे सामान्यतः लाई फूटना भी कहते हैं । यह Ustilaginoidea virens नामक फफूंद के कारण होता है । यह रोग खेत मे धान की बालियाँ निकलने के बाद ही होता है ।

Control measures for False Smut Of Paddy (नियंत्रण) :-

● कार्बेंडाजीम नामक कवकनाशी से बीजोपचार 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज दर के हिसाब से उपचारित कर सकते हैं ।

●  अगर रोग का प्रकोप अधिक हो तो प्रोपिकोनाजोल (Propiconazole) का जब धान में फूल आ रही हो तो या बालियाँ निकल रही हो तब इसका छिड़काव 1 मिली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से करना चाहिए ।

 

 6. Bacterial Leaf Blight Of Paddy (जीवाणु पत्ती झुलसा रोग)

यह रोग बैक्टेरिया के कारण होता है जिसका नाम है Xanthomonas oryzae Pv. oryzae  है ।

Control measures for Bacterial Leaf Blight (नियंत्रण) :-

● इस रोग के लिए कुछ रोधी धान की किस्मे है जिसे उगाया जा सकता है , जैसे – स्वर्णा, अजया, IR 20, IR 42, IR 50, IR 54, मासूरी, MTU 9992, आदि ।

● इसके नियंत्रण के लिए खेत मे कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (Copper Oxychloride) + Streptocycline का विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार छिड़काव करें ।

 

    7. Khaira Disease Of Paddy  (धान का खैरा रोग)

 

आप तो जानते ही होंगे कि यह रोग जिंक यानि जस्ते की कमी के कारण होता है ।

Control measures for Khaira Disease (नियंत्रण) :- 

● जिंक सल्फेट (Zink salphate) का 5 – 6 किग्रा. प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें ।

 

 

Major Weeds Of Paddy Field’s : धान के प्रमुख खरपतवार :-

धान के खेत मे कौन – कौन से मुख्य खरपतवार होते हैं ? ये जानने से पहले हम थोड़ा सा जान लेते हैं कि खरपतवार क्या होता है ? दोस्तों हम खरपतवार के बारे के एक पूरी की पूरी ब्लॉग बनाऐंगे तो please हमारे इस ब्लॉग में जरूर आते रहियेगा । फिरहाल अभी हम सिर्फ धान के ही खरपतवार के बारे में बात करेंगे ।

खरपतवार (Weeds) यानिकी अवांछित पौधा मतलब जो फसल हम उगायें हैं उसके अलावा खेत मे उगे पौधों को खरपतवार कहते हैं। यह खेत मे बिना उगाये ही अपने आप उग जाते हैं।

ये जो खरपतवार होते हैं वह फसल के साथ जगह, पानी, वायु, पोषक तत्व और धूप के लिए प्रतिस्पर्धा करतें हैं जिससे उपज में गिरावट आती है ।

Definition of Weeds :

जेथ्रो टूल के अनुसार खरपतवार की परिभाषा – 

                   खरपतवार वे अवांछित पौधे होते हैं जो किसी स्थान पर बिना बोये उग जाते हैं और जिनकी उपस्थिति में किसान को लाभ की तुलना में हानि अधिक होती है , खरपतवार कहलाते हैं । 

धान के कुछ मुख्य खरपतवार में

1. सावां घास (Echinochloa crus-galli)

2. मोंथा (Cyperus rotundus)

3. जंगली धान (Echinochloa colona)

यह तीनों (जंगली धान , सावां और मोंथा) धान के खेत के प्रमुख खरपतवार है ।

Control measures of Weeds In Paddy Field –

इसके नियंत्रण के लिए – 

सावां घास के लिए – Whip super (Fenoxaprop-p-ethyl) शाकनाशी का प्रयोग कर सकते हैं ।

मोंथा के लिए – Almix ( metsulfuron methyl ) शाकनाशी का प्रयोग दो तरह से कर सकते हैं । 

अगर अंकुरण से पहले (Pre Emergence) प्रयोग करें तो 20 ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव । 

अंकुरण के बाद (Post Emergence) 20 ग्रा. Almix को 300 ली. पानी मे घोलकर प्रयोग करें।  

                इसके अलावा धान की फसल में अन्य संकरी पत्ती वाले व चौड़ी पत्ती वाले भी खरपतवार होते हैं जिसके नियंत्रण के लिए नीचे कुछ Herbicide (शाकनाशियों) का प्रयोग कर सकते हैं।  

● चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को 2,4-D दवा 0.500 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से 500 ली. पानी में मिलाकर 25 – 30 दिन की फसल अवस्था मे छिड़काव करके नियंत्रण किया जा सकता है।  

ब्यूटाक्लोर (मचेटी) – इसका 1.5 किग्रा. / हेक्टेयर अंकुरण के पूर्व (Pre Emergence) प्रयोग करना चाहिए । 

प्रोपेनिल (स्टाम एफ – 34) – इसका उपयोग रोपाई के बाद या अंकुरण के बाद करते है (Post Emergence) इस खरपतवारनाशी का उपयोग धान की फसल में अधिक किया जाता है।  इसका प्रयोग धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद करना चाहिए।  

एनिलफोस – इस शाकनाशी का 2किग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अंकुरण के पूर्व प्रयोग करते हैं । 

 

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