Problems of Indian Agriculture and their possible Solutions PDF | जानिए भारतीय कृषि पिछड़ी हुई क्यों है ?

Major problems of Indian Agriculture and Farmers

भारतीय कृषि पिछड़ी हुई क्यों? | Problems of Indian Agriculture and their possible Solutions

  परिचय – 

भारतीय कृषि , भारत की आधी आबादी को रोजगार प्रदान करती है, लेकिन इतनी बड़ी वर्कफोर्स के बावजदू भी अर्थ व्यवस्था में कृषि का योगदान सिर्फ 17% है ।

क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा क्यों है ?

आज का हमारा लेख इसी विषय पर आधारित है तो चलिए शुरू करते हैं और उन कारणों को जानते हैं जिसकी वजह से भारतीय कृषि इतनी पिछड़ी हुई (problems of Indian Agriculture), इसके क्या-क्या कारण हो सकते हैं और इस समस्या का उपाय क्या हो सकता है…

 

  भारत में कृषि की मौजूदा स्थिति – 

वर्तमान में भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसरों के लिए कृषि क्षेत्र पर अधिक निर्भर है ।

भारतीय अर्थ व्यवस्था में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा वर्ष 2014-15 के 18.2% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 16.5% हो गया है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारत में कृषि का मशीनीकरण 40% है जो कि ब्राजील के 75% तथा अमेरिका के 95% से काफी कम है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। जिसमें विश्व की कुल दूध उत्पादन का 22% हिस्सेदारी अकेले भारत की है

भारत की गिनती विश्व के प्रमखु कृषि उत्पादक देशों में की जाती है।

आज भारत के कृषि क्षेत्र की स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी है और इसके कई कारण हैं, जिनके बारे में आगे विस्तार से बात की गई है।

 

  कृषि क्षेत्र में चुनौती और समस्याएं – 

1) किसानों की दयनीय आर्थिक हालात –

अंग्रेजों के द्वारा किए गए अत्यधिक शोषण के कारण 1947 आते आते भारत की स्थिति बहुत ज्यादा दयनीय हो चुकी थी ।और खासकर कृषि क्षेत्र की स्थिति तो इतनी ज्यादा दयनीय हो गई थी कि , आजादी मिलने के बाद हमारे देश को कई वर्षों तक खाद्यान के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ा था।

और इसलिए आजादी के बाद के वर्षों में भारत की रणनीति मुख्य रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही है। जिसके कारण किसानों की आय में बढ़ोतरी करने पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।

जिसके कारण भारत के छोटे एवं मध्यम वर्गीय किसानों की आर्थिक स्थिति आज भी बहुत ज्यादा खराब है। और वर्तमान समय में हालात ऐसे हैं की किसान कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं।

हरित क्रांति को अपनाए जाने के बाद भारत का खाद्यान उत्पादन 3.7 गुना बढ़ा है जबकि जनसंख्या में 2.55 गुना वृद्धि हुई है कि किन्तु किसानों की आय अभी भी निराशाजनक है।

बड़े किसानों के पास पूंजी उपलब्ध है इसलिए वे लोग एडवांस्ड एग्रीकल्चर मशीनरी खरीद सकते हैं, किराए पर मशीन ला सकते हैं। लेकिन छोटे और मध्यम किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे नई मशीनरी का खर्च उठा नहीं पाते हैं। ना ही वे इस स्थिति में है कि वे ट्रैक्टर जैसे संसाधन खरीद सकें।

इसलिए आज भी वे कृषि करने के लिए। शताब्दियों पुराने औजारों और टेक्निक्स का प्रयोग करते हैं। और सबसे ज्यादा रोचक बात ये है कि भारत में बड़े किसान सिर्फ गिने चुने हैं जबकि अधिकांश किसान छोटे और मध्यमवर्गीय हैं।

2) औसत भूमि धारण में कमी –

कुछ वर्षों से औसत भूमि धारण (Land Holding) में भारी कमी देखी गई है आंकड़ो के अनुसार औसत भूमि धारण 1995-96 में 1.5 हेक्टेयर रह गया था जो धीरे-धीरे और भी कम हो रहा है।

एक अमेरिकन किसान के पास सैकड़ों एकड़ खेत होता है जिससे वह एक क्रॉप सीजन में ही हज़ारों क्विंटल अनाज उत्पादन कर लेता है। और ये बात आपको पता ही होगा कि यदि किसी चीज का प्रोडक्शन बहुत बड़े लेवल पर किया जाए तो प्रति यूनिट खर्च कम हो जाता है।

अतः किसी कारणवश यदि अमेरिकन किसान को अपना प्रोड्यूस कम कीमत पर बेचना भी पड़े तो उसे इतना ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि mass production के कारण उत्पादन लागत वैसे भी कम है ऊपर से हज़ारों क्विंटल में उत्पादन हुआ है। इसलिए वह सामान्यतः फायदे में ही रहता है।

जबकि भारत में हालात इसके बिल्कुल विपरीत है । भारत में किसानों के पास जमीन मात्र कुछ एकड़ ही है।

कभी कभी किसानों को अपने उत्पाद का लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।

भारत में किसानों को उनके उपज का सही मूल्य प्राप्त हो इसके लिए उन्हें समर्थन मूल्य (MSP) का सहारा देना पड़ता है।

औसत भूमि धारण (Land holding) कम होने के कारण बड़े कृषि यंत्रो का उपयोग एक किसान के लिए घाटे का सौदा होता है।

छोटी-छोटी खेतों में बड़े कृषि यत्रं ठीक से काम नहीं कर पाते हैं उनकी एफिशिएंसी घट जाती है अतः यह जरूरी है कि खेत बड़े – बड़े हो ताकि वे सरलतापूर्वक काम कर सके।

 

3) सिंचाई सुविधाओं की कमी –

वैसे तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सिंचित कृषि क्षेत्र वाला देश है, उसके बावजदू भी देश का केवल एक तिहाई फसल क्षेत्र ही सिंचाई के अधीन है।

भारत के अधिकांश भागों में आज भी नहरी नहरी का अभाव है। नहरों द्वारा सिंचाई देश के केवल कुछ भागो तक ही सीमित है, जो कि इतने बड़े भू-भाग वाले देश के लिहाज से बहुत कम है।

सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर वर्ष भर खेती करना संभव हो पाता है जिससे किसानों की आय में कई गुना वृद्धि संभव है ।

भारत का कृषि क्षेत्र काफी हद तक मानसून पर निर्भर करता है। प्रकृति पर निर्भरता के कारण कभी-कभी किसानों को नुकसान का भी सामना करना पड़ता है। यदि अधिक बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुंचता है और यदि कम बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुंचता है।

खेती के लिए सिर्फ मानसून पर निर्भर होना एक गंभीर स्थिती है क्योंकि मानसून से केवल वर्षा ऋतु में ही कृषि कार्य के लिए पानी मिल पाता है। मानसून सीजन खत्म होने के बाद बाकी सीजन में पानी न होने के कारण खेत ऐसे ही खाली पड़े रहते हैं।

अतः कृषि क्षेत्र के विकास के लिए ये जरूरी है कि तीव्र गति से भारत में नहरों का विस्तार किया जाए।

 

4) मशीनीकरण का अभाव –

भारतीय कृषि क्षेत्र में आज भी मशीनीकरण का अभाव है आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारत के कृषि क्षेत्र में केवल 40% मशीनीकरण हुआ है। जो कि ब्राजील के 75% तथा अमेरिका के 95% से काफी कम है।

इसका कारण यह हो सकता है की, जो कृषि यत्रं उपलब्ध है वह इतने महंगे है कि छोटे और मध्यम वर्गीय किसान इसे खरीदने मेंअसमर्थ हैं। तथा छोटे किसान के लिए प्रति हेक्टेयर मशीनों का खर्च भी अधिक आता है इसलिए वे पारंपरिक औजारों का प्रयोग करना ही उचित समझते हैं।

मेरा विचार है कि भारत में कुछ ऐसी समितियों का निर्माण करना चाहिए जहां से किसानों को न्यूनतम किराए पर उन्नत कृषि यत्रं मिल सके। और किसान आसानी से खेती बाड़ी कर सकें।

क्या आपके पास भी इस समस्या से निपटने के लिए कोई विचार है! यदि आपके पास कोई आइडिया है, तो कमेंट बॉक्स में लिखकर हमसे साझा जरूर करें। हो सकता है आपका आइडिया इतना अच्छा हो की कृषि क्षेत्र में क्रांति ला दे।

 

5) कृषि उत्पाद के कीमतों में अस्थिरता –

आजादी के 7 दशकों बाद भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन व्यवस्था गंभीर हालत में है किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।

जिस तरह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और सर्विस सेक्टर अपने उत्पादों का मूल्य तय करते हैं। उस तरह का कृषि क्षेत्र में कोई सिस्टम नहीं है। कृषि उत्पादक के पास अपने उत्पाद के मूल्य का निर्धारण करने की शक्ति नहीं है।

कभी-कभी तो ऐसी स्थितियां आ जाती है कि किसानों को ₹1 प्रति किलो के हिसाब से अपना उपज बेचना पड़ जाता है जबकि उस उत्पाद को उगाने में उन्हें प्रति किलो 10 से 30 रुपये तक खर्च आ जाती है। और कभी कभी इससे भी अधिक खर्च हो जाता है।

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और सर्विस सेक्टर के भांति एग्रीकल्चर सेक्टर के किसानों के पास भी अपने उत्पादों का मूल्य तय करने का हक होना चाहिए ।

 

6) भंडारण सुविधाओं का अभाव –

खाद्य संरक्षण सरंचना (Food storage) के अभाव से किसानों का उपज बड़ी मात्रा में खराब हो जाता है। खराब होने से पूर्व उपज को औने-पौने दाम पर बिक्री के लिए किसान को विवश होना पड़ता है।

फूड स्टोरेज फैसिलिटी सिर्फ कुछ चुनिंदा जगहों पर ही उपलब्ध होते हैं बाकी दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में ये सुविधा अभी तक शुरू नहीं हो पाई है।

फूड स्टोरेज फैसिलिटी के अभाव के कारण करोड़ों रुपए मूल्य का फूड मटेरियल यूं ही वेस्ट हो जाता है।

भारत में 2016 में, फसलों की कटाई के बाद जो कृषि उपज, स्टोरेज फैसिलिटीज के अभाव में नष्ट हुआ उसका

अनुमानित मूल्य 92,651 करोड़ ($ 13 बिलियन) था जो कृषि क्षेत्र के लिए 2016-17 के बजट से लगभग तीन गुना अधिक था।

 

  इसके प्रभाव – 

इन सभी कारकों का सीधा प्रभाव कृषि क्षेत्र के विकास पर पड़ता है। शायद इसीलिए कृषि क्षेत्र का ग्रोथ रेट 4 प्रतिशत से आगे बढ़ नहीं पा रहा है।

देश की कृषि क्षेत्र में वि द्यमान विभिन्न समस्याओं के परिणाम स्वरुप किसान परिवार की आय में कमी होती है और वे ऋण के बोझ तले दबते चले जाते हैं। छोटे किसान खेती को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं और मजदूरी की ओर रुख करते हैं।

इससे देश की अर्थ व्यवस्था पर खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत की आधी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आर्थिकर्थि रूप से निर्भर है और भारत की सम्पूर्ण आबादी भोजन के लिए सम्पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर है।

अतः यह जरूरी है कि कृषि क्षेत्र में विद्यमान इन सभी समस्याओं का समय रहते निराकरण किया जाए।

कृषि क्षेत्र में विकास से भारत जैसी घनी आबादी वाले देश को भोजन की पूर्ति तो होगा साथ ही साथ में इस फूड मटेरियल को विदेशों में निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी बड़े पैमाने पर अर्जित किया जा सकता है।

 

  इस समस्या के उपाय –  

किसान की आय में बढ़ोतरी के प्रभावी उपाय करना चाहिए।

डयेरी क्षेत्र को और ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए जिससे किसान पशुपालन से अतिरिक्त आय अर्जित कर पाए।

मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन आदि व्यवसायों को भी बढ़ावा देना चाहिए।

कृषि में अनुसंधान और विकास पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.40% से बढ़ाकर 1% किया जाना चाहिए।

कृषि क्षेत्र में कृषि उद्यमिता, कृषि व्यवसाय और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए।

सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से हो यह सुनिश्चित करना चाहिए।

कृषि शिक्षा में स्किल डवेलपमेंट को बढ़ावा देना चाहिए। आज के कृषि छात्र एजकुेटेड तो हैं लेकिन स्किल के मामले में फिसड्डी हैं।

नोट:- यदि आपके पास इन समस्याओं के निराकरण से जुड़े सुझाव हैं तो कमेंट बॉक्स में आपके विचार हम से साझा करें। हमें आपके विचार जानकर अत्यतं प्रसन्नता होगी।

धन्यवाद।

  निष्कर्ष – 

आज भारत का कृषि क्षेत्र कई समस्याओं से जूझ रहा है।

जिनमें सिंचाई सुविधाओं का अभाव, औसत भूमि धारण में कमी, मशीनीकरण का अभाव, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, कृषि उपज के मूल्य में अस्थिरता, कृषि शिक्षा आदि प्रमखु कारण हैं।

इन वजह से भारत के कृषि क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो गई है। जिनका समय रहते निराकरण बेहद जरूरी है।

कृषि क्षेत्र हजारों वर्षों से भारतीय अर्थ व्यवस्था की रीढ़ (backbone) रही है और आज भी यह भारतीय अर्थव्यवस्था का रिढ़ है।

अतः हम कह सकते हैं कि कृषि क्षेत्र की मजबूती पर ही भारत की मजबूती बहुत हद तक निर्भर करती है।

  रेफरेंस –  

दृष्टि आईएएस, द हिन्द , इंडियन एक्सप्रेस आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण करके इस आर्टिकल को लिखा गया है। और आवश्यकतानुसार Agrifieldea टीम के इनपुट भी इसमें शामिल किए गए हैं ।

धन्यवाद।

 अपील  :-

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