सिंचाई क्या है? | Irrigation in Hindi | परिभाषा व सिंचाई की विभिन्न विधियाँ | Irrigation and Irrigation Methods in Hindi

Irrigation and Irrigation Methods in Hindi

 

सिंचाई (Irrigation)

आप तो जानते हैं कि फसलों या पौधों की वानस्पतिक वृद्धि व फलन के लिए पानी अति आवश्यक है । वर्षा ऋतु में तो फसलों को वर्षा के माध्यम से ही पानी मिल जाती है, लेकिन बाकी ऋतुओं में बारिश नही हुआ तो , तब तो जरूरत पड़ेगी न कृत्रिम रूप से पौधों को पानी देने की । यही तो है सिंचाई (Irrigation) , यानिकि पौधों को जल देने की क्रिया का नाम ही है सिंचाई

बढ़ती जनसंख्या, कृषि की नई-नई तकनीक व जल की सीमित उपलब्धता के कारण सिंचाई का महत्व और बढ़ जाता है । आज अच्छी व अधिक फसल उत्पादन के लिए सिंचाई का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है ।

फसलों को पानी देने की मात्रा व समय, मिट्टी की किस्म व फसलों पर निर्भर करता है। और सभी फसलों की जलमाँग भी अलग अलग होती है।

 

सिंचाई की परिभाषा (Definition of Irrigation)

‘फसल उत्पादन में पौध बढ़वार के लिए व भूमि में आवश्यक नमी बनाए रखने के लिए कृत्रिम रूप से फसलों को पानी देने की क्रिया सिंचाई (Irrigation) कहलाती है ।’

 

‘फसल उत्पादन के उद्देश्य से भूमि में कृत्रिम रूप से पानी देने को सिंचाई कहते हैं ।

 

(Irrigation is the artificial application of water to the soil for the purpose of Crop Production.)

 

सिंचाई की विधियाँ (Irrigation Methods)

फसलों, पौधों व भूमि की स्थिति के अनुसार सिंचाई के प्रकार अथवा विधियाँ अलग – अलग होती है ।

सिंचाई की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित है – 

1. सतही या पृष्ठीय सिंचाई (Surface Irrigation) –

(i) बाढ़ विधि (Flooding)

(ii) क्यारी विधि (Check Basin Method)

(iii) रिंग विधि (Ring Method)

(iv) सीमांत पट्टी विधि (Border strip Method)

(v) कूँड विधि (Furrow Method)

(vi) कन्टूर विधि (Contour Method)

2. भूमिगत सिंचाई या अधो पृष्ठीय सिंचाई (Sub Surface Irrigation) 

 

3. फव्वारा या बौछरी सिंचाई (Sprinkler Method of Irrigation)

4. टपक सिंचाई विधि (Drip Irrigation) 

 

1. सतही या पृष्ठीय सिंचाई (Surface Irrigation)

सतही या पृष्ठीय सिंचाई में पानी को भूमि की सतह पर दिया जाता है। पृष्ठीय सिंचाई की विभिन्न विधियां है  –

 

(i) बाढ़ विधि (Flooding) –

सिंचाई की यह विधि बहुत ही प्राचीन विधि है । इस विधि द्वारा फसलों में दो तरीकों से सिंचाई किया जा सकता है एक अनियंत्रित प्लावन – जिसमें अनियंत्रित तरीके से पानी को खेतों में बहा दिया जाता है । अनियंत्रित प्लावन एक बहुत ही प्राचीन व हानिकारक विधि है ।

तथा दूसरा नियंत्रित प्लावन – जिसमें खेतों को कई सुविधाजनक खंडों में बांटकर सिंचाई किया जाता है ।

सिंचाई की बाढ़ विधि उन क्षेत्रों में अपनाई जाती है जहां असीमित सिंचाई जल उपलब्ध होता है व बड़े क्षेत्र की सिंचाई करनी हो । इस विधि में सिंचाई दक्षता बहुत कम मिलती है ।

 

(ii) क्यारी विधि (Check Basin Method) –

सिंचाई की इस विधि में खेत को कई छोटे-छोटे इकाइयों अथवा क्यारियों में बांट दिया जाता है तथा सिचाई जल को नियंत्रित करने के लिए इन क्यारियों के चारों तरफ मेंड़ बना दिया जाता है । सभी क्यारियां एक-एक सहायक नालियों से जुड़ा होता है तथा सभी सहायक नालियां एक मुख्य नाली से जुड़ा रहता है जो खेत के ऊपरी भाग में होता है ।

जब सिंचाई का पानी मुख्य नाली में छोड़ा जाता है तो जल सहायक नालियों के माध्यम से क्यारियों में पहुंचता है । जब एक क्यारी का सिंचाई पूरा हो जाता है तब इसका नाली बंद करके पानी को दूसरे क्यारी में मोड़ दिया जाता है ।

 

(iii) रिंग विधि (Ring Method) –

यह विधि उद्यानिकी में फल वृक्षों के लिए अपनाई जाती है । इस विधि को थाला विधि (Basin Method) या अंगूठी विधि भी कहते हैं । इस विधि में प्रत्येक वृक्ष के लिए गोलाकार थाला बनाया जाता है व इन थालों में ही सिंचाई किया जाता है । इससे पूरे खेत की सिंचाई नहीं करना पड़ता । इसमें एक थाला भरने के बाद दूसरे थाले में बहाकर नाली के माध्यम से सिंचाई किया जाता है ।

इस विधि में छोटे पौधे के लिए छोटा थाला बनाया जाता है तथा पौधा बड़ा होने के साथ ही थाला का आकार भी बड़ा बनाया जाता है ।

 

(iv) सीमांत पट्टी विधि (Border strip Method) –

इसविधि में सिंचाई करने के लिए खेत को कई समानांतर पट्टियों में विभाजित किया जाता है । इन पट्टियों में एक मुख्य नाली की सहायता से सिंचाई किया जाता है । जब एक पट्टी की सिंचाई पूर्ण हो जाती है तो पहले पट्टी को बंद करके पानी को दूसरी पट्टी में मोड़ दिया जाता है ।

 

(v) कूँड विधि (Furrow Method) –

यह विधि उन फसलों अथवा सब्जियों में अपनाई जाती है जिन्हें कतारों या कूंडो/मेड़ो में लगाया जाता है । इस विधि में खेतों में लंबी लंबी कूँड के साथ-साथ नालिया बना दिया जाता है व उनके ऊपर फसलें कतार में बीचो बीच लगाई जाती है तथा नालियों में सिंचाई किया जाता है ।

इस विधि में सिंचाई का बहाव धीमा रखते हैं । इस विधि में कूँड धीरे-धीरे गीला होता है । पानी कूँड में सोंख लेने के बाद बाजू में एवं नीचे की ओर गति कर रहे पौधों की जड़ों को उपलब्ध हो जाता है ।

 

(vi) कन्टूर विधि (Contour Method) –

यह विधि पहाड़ी क्षेत्रों में अपनाई जाती है जहां भूमि ऊंची – नीची होती है । इस विधि में भूमि को ढलान के अनुसार छोटे-छोटे खेतों अथवा खंडों में बांट देते हैं । सिंचाई के दौरान जब ऊपर का क्षेत्र भर जाता है तो पानी स्वतः ही नीचे की खेतों में उतरने लगता है, इस प्रकार पूरे खेत की सिंचाई हो जाती है ।

 

2. भूमिगत सिंचाई या अधो पृष्ठीय सिंचाई (Sub Surface Irrigation)

इस विधि में भूमि के नीचे बनी नालियों के माध्यम से सिंचाई किया जाता है । यह उन भूमियों में अपनाई जा सकती है जिसमें पारगम्यता अच्छी होती है क्योंकि इस विधि में भूमि के नीचे के नालियों अथवा पाइपों से जाने वाला पानी छिद्रों से निकलकर बाहर आता है जिसका शोषण पौधों की जड़ों द्वारा होता रहता है ।

भूमिगत सिंचाई के लिए विभिन्न पद्धतियां है जैसे टाइल ड्रेन्स (Tile Drains), मॉल ड्रेन्स, छिद्रयुक्त पाइप आदि ।

 

3. फव्वारा या बौछरी सिंचाई (Sprinkler Method of Irrigation)

इस विधि में पानी को वर्षा बूंदों के समान फसलों पर छिड़काव किया जाता है । इस विधि में सिंचाई जल का समान रूप से वितरण होता है । यह विधि लगभग सभी फसलों के लिए उपयुक्त है लेकिन धान, जूट व अधिक जल चाहने वाली फसलों के लिए यह विधि नहीं अपनाई जा सकती ।

इस विधि में नोजल के छोटे-छोटे छिद्रों से जल फव्वारे के रूप में फसलों के ऊपर गिरता है । नोजल जो कि सहायक पाइपों में समान अंतराल पर लगे होते हैं । यह सहायक पाइप मुख्य पाइप से व मुख्य पाइप जल स्त्रोत से जुड़ा रहता है ।

 

4. टपक सिंचाई विधि (Drip Irrigation)

टपक सिंचाई अन्य सिंचाई विधियों की तुलना में नवीनतम विधि है जिसे सर्वप्रथम इसराइल में प्रयोग किया गया था । इस विधि की खोज सिमचा ब्लास (Simcha Blass) ने किया था ।

यह विधि उन फसलों में अपनाई जाती है जिसे कतारों में व अंतराल में लगाया जाता है । इस विधि में पानी बूंद – बूंद करके पौधों की जड़ों के पास दिया जाता है । इसके लिए 12 से 16 मिमी. व्यास के प्लास्टिक या रबर के पाइप जमीन पर बिछा दिया जाता है । इन पाइपों में विशेष अंतराल पर छोटे-छोटे छिद्र युक्त यंत्र लगा दिए जाते हैं, जिनसे पानी बूंद बूंद कर पौधों की जड़ों के पास टपकता रहता है ।

इस विधि में सिंचाई के साथ उर्वरकों को भी घोलकर दिया जा सकता है ।

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