50 Terminologies Used in Agronomy in Hindi | सस्य विज्ञान (Agronomy) विषय के अंतर्गत आनेवाले महत्वपूर्ण शब्दावली 🔥🔥🔥

आज आप लोग पढ़ने वाले हैं सस्य विज्ञान के 50 महत्वपूर्ण शब्दावली (Terminologies Used in Agronomy in Hindi) जो कि एग्रोनोमी के अध्ययन में बहुत ही महत्वपूर्ण है ।

50 Terminologies Used in Agronomy in Hindi | सस्य विज्ञान (Agronomy) विषय के अंतर्गत आनेवाले महत्वपूर्ण शब्दावली 🔥🔥🔥

Technical terms associated with agronomy :- 

सस्य विज्ञान विषय के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण शब्दावली (Terminologies Used in Agronomy in Hindi)

 

(1). सस्य विज्ञान (Agronomy) :- “Agronomy” ग्रीक भाषा के ‘Agros’ एवं ‘Nomos’ दो शब्दों से मिलकर बना है –

Agros का अर्थ है – भूमि (Field)

Nomos का अर्थ है – प्रबंधन (Management)

Agronomy की परिभाषा :-

शस्य विज्ञान (Agronomy) कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसमें फसल उत्पादन एवं भूमि प्रबंधन के सिद्धांतों एवं व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है ।

 

(2). भूमि प्रबंधन (Field Management) :- भूमि प्रबंधन से तात्पर्य है कि भूमि की उर्वरा शक्ति को स्थिर रखकर भूमि को पौधों या फसलों के लिए इस प्रकार अनुकूल बनाया जा सके कि अधिक से अधिक व अच्छी किस्म की गुणवत्ता वाली फसल का उत्पादन किया जा सके ।

 

(3). खरपतवार (Weed) :- वे पौधे जो खेतों में फसलों के अतिरिक्त बिना उगाए ही उग जाते हैं, एवं फसलों के साथ जल, पोषक तत्व, प्रकाश व जगह के लिए प्रतिस्पर्धा कर उनकी उपज को कम कर अप्रत्यक्ष रूप से किसान को हानि पहुंचाते हैं, ऐसे पौधे खरपतवार कहलाते हैं ।

दूसरे सरल शब्दों में कहा जाए तो खरपतवार वे पौधे हैं जो खेत में मुख्य फसल के अलावा बिना उगाए ही उग जाते हैं यहां तक कि एक ही फसल की दूसरी किस्म प्रजाति भी खरपतवार कहलाएगी जो की मुख्य फसल के साथ गलती से उठ जाते हैं ।

 

(4). फसल (Crop) :- फसल से आशय उन पौधों से हैं जिन्हें मनुष्य अपनी आर्थिक उद्देश्यों के लिए उगाता है उनका प्रबंधन करता है तथा उनकी कटाई (Harvesting) करता है ।

 

(5). फसल उत्पादन (Crop Production) :- किसी क्षेत्र में किसी ऐच्छिक फसल प्रजातियों का चुनाव करके उसकी प्रबंधित खेती (Managed Farming) करके फलोत्पादन अथवा बीज उत्पादन करना फसल उत्पादन (Crop Production) कहलाता है ।

 

(6). मृदा (Soil) :- मृदा की परिभाषा (Definition of Soil) – बकमेन एवं ब्रेडी के अनुसार – मिट्टी प्राकृतिक पिंडो का एक समूह है जो टूटे एवं अपेक्षित खनिजों तथा विच्छेदित हो रहे जैविक पदार्थों के विभिन्न सम्मिश्रण से संस्तरण के रूप में संलेषित हुई है, जो पृथ्वी को एक पतली आवरण के रूप में ढंकती है एवं पौधों को उचित मात्रा में वायु एवं पानी, यांत्रिक सहारा एवं पोषण प्रदान करती है ।

 

(7). जुताई (Ploughing) :- जुताई वह प्रक्रिया है जिसमें मृदा को हल की सहायता से चीरा जाता है, पलटा जाता है या ढीला किया जाता है जुताई खासतौर पर बीज बुवाई के पहले किया जाता है ।

जुताई करने से मिट्टी ढीला हो जाती है इससे मृदा में वायु संचार (Aeration) व नमी (Moisture) बरकरार रखा जा सकता है।

 

(8). भू-परिष्करण (Tillage) :- फसल उत्पादन के लिए जब मिट्टी की दशा में भौतिक या यांत्रिक परिवर्तन किया जाता है, जो कि फसलों की बढ़वार में आवश्यक व उचित परिस्थिति प्रदान करती है । इन सब क्रियाओं को भू परिष्करण या टिलेज (Tillage) कहते हैं ।

सरल शब्दों में कहें तो फसल उत्पादन में फसलों की बुवाई से पहले एवं बुवाई के बाद भूमि में जो भी कृषि क्रियाएं की जाती है उसे कर्षण या भू परिष्करण कहते हैं ।

 

(9). टिल्थ (Tilth) :– भूमि की तैयारी या भू परिष्करण के बाद अंततः फसल बीज डालने के लिए तैयार भूमि/मृदा की अवस्था को ही टिल्थ (Tilth) कहते हैं ।

अथवा अंतिम भू परिष्करण के बाद फसल उगाने के लिए जो भूमि की उपयुक्त भौतिक दशा होती है उसे ही टिल्थ (Tilth) कहते हैं ।

 

(10). मल्च (Mulch) :- पौधों की आस पास की मिट्टी में पौधे का जड़ फैला रहता है, इस जड़ क्षेत्र वाली मिट्टी को ढकने के लिए जिस पदार्थ का प्रयोग करते हैं उसे हिंदी भाषा में पलवार और अंग्रेजी भाषा में मल्च (Mulch) कहते हैं ।

 

(11). मल्चिंग (Mulching) :- पौधे के आसपास की जड़ क्षेत्र वाली मृदा को पलवार या मल्च से ढकने की प्रक्रिया मल्चिंग (Mulching) कहलाती है । इससे फसलों के आसपास की मृदा नम रहती है तथा खरपतवार को उगने से रोका जा सकता है ।

 

(12). ह्यूमस (Humus) :- अक्रिस्टलीय एवं कोलाइडी पदार्थों का भूरा या गहरा भूरा एक जटिल एवं प्रतिरोधी मिश्रण जो कार्बनिक रूपों के रूपांतरण एवं अपघटन से प्राप्त होता है अथवा मृदा सूक्ष्म जीवों द्वारा संश्लेषित किया जाता है ह्यूमस (Humus) कहलाता है ।

 

(13). बीज (Seed) :- बीज वह रोपण सामग्री है जो अनुकूल परिस्थितियों में एक नया पौधा उत्पन्न करने में सक्षम हो ।

अथवा

बीज लैंगिक अथवा वानस्पतिक रूप से प्रवर्धित रोपण सामग्री होता है जो बुवाई एवं रोपण के लिए उपयोग किया जाता है, जिसे सही से बोने पर एक नई पौध प्राप्त होती है।

 

(14). दाना (Grain) :- ग्रेमीनी कुल के पौधों का साधारण फल जिसमें ऊपरी परत या Pericarp, खुदा से चिपका रहता है दाना (Grain) कहलाता है l जैसे धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, जौ इत्यादि ।

 

(15). बुआई (Sowing) :- फसल उत्पादन करने के लिए भूमि की तैयारी करने के बाद बीजों को तैयार खेत में उचित विधि से बोने की प्रक्रिया बुवाई (Sowing) कहलाती है । बीज की बुवाई या तो हाथों से किया जाता है या तो मशीनों से ।

 

(16). रोपाई (Transplanting) :- रोपाई फसलों या पौधों के तैयार थरहों (छोटे पौधे) को तैयार किए गए मुख्य खेतों में लगाने की प्रक्रिया है ।

 

(17). अंकुरण (Germination) :- एक बीज भ्रूण (Embryo) का जो अनुकूल परिस्थितियों में एक सामान्य पौधा देने में समर्थ हो, एक नन्हे पौधे का बाहर निकलना एवं विकसित होना ही अंकुरण (Germination) कहलाता है ।

 

(18). बीज दर (Seed rate) :- किसी प्रति इकाई क्षेत्रफल या भूमि में किसी फसल की बुआई के लिए जितनी बीज की आवश्यकता होती है, उसे बीज दर (Seed rate) कहते हैं । यह अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग होती है जिसे सामन्यतः किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में व्यक्त किया जाता है ।

 

(19). पौध अंतरण (Plant Spacing) :- पौध रोपाई में पौधे से पौधे व कतार से कतार की दूरी को ही पौध अंतरण (Plant Spacing) कहते हैं ।

 

(20). निंदाई (Weeding) :- खेतों से अवांछनीय पौधे अथवा खरपतवारों को उखाड़ कर अलग करने की प्रक्रिया निंदाई (Weeding) कहलाती है । इससे मुख्य फसल, पोषक तत्व, जल, प्रकाश आदि का बिना प्रतिस्पर्धा के उपयोग कर सकता है ।

 

(21). मिट्टी चढ़ाना (Earthing up) :- कई फसलों में पौधों को गिरने से बचाने या फसलों की कंदों या फलियों की अधिक बढ़वार के लिए पौधे के आधार के पास मिट्टी चढ़ाया जाता है, जिसे Earthing up कहते हैं । जैसे – आलू, मक्का, गन्ना, मूंगफली आदि की फसलों में मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है।

 

(22). हार्वेस्टिंग (Harvesting) :- जब फसल पूर्ण रूप से पककर तैयार हो जाती है तो इसके फलों की तुड़ाई, फसलों की कटाई या कन्दों की खुदाई करने की प्रक्रिया हार्वेस्टिंग कहलाती है ।

 

(23). खरीफ फसल (Kharif Crops) :- खरीफ फसलें वर्षा ऋतु की फसलें हैं जो वर्षा पर आधारित होती है । इन फसलों की अच्छी बढ़वार के लिए अधिक तापमान और आर्द्रता की आवश्यकता होती है । खरीफ फसलों की बुवाई जून से जुलाई तक की जाती है तथा फसलों की कटाई सितंबर से अक्टूबर माह तक किया जाता है ।

उदाहरण – धान, मक्का, मूंगफली, सोयाबीन, ज्वार, बाजरा, लोबिया आदि ।

 

(24). रबी फसल (Rabi Crops) :- यह शीत ऋतु की फसल है । इन फसलों की बढ़वार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है । इन फसलों की बुवाई अक्टूबर से दिसंबर के बीच किया जाता है तथा कटाई फरवरी से अप्रैल माह तक कर लिया जाता है ।

उदाहरण – गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, राई, आलू इत्यादि ।

 

(25). जायद की फसल (Zaid Crops) :- जायद फसलों की बुवाई फरवरी से मार्च महीने में किया जाता है तथा कटाई अप्रैल से मई माह के तक किया जाता है । इन फसलों को कृत्रिम सिंचाई की आवश्यकता होती है तथा इसमें कुछ हद तक सूखा सहन करने की क्षमता होती है ।

उदाहरण – तरबूज, खरबूजा, लौकी, ककड़ी, तोरई, मूंग, खीरा, मिर्च, करेला, पत्तेदार सब्जियां आदि ।

 

(26). एक वर्षीय फसल (Annual Crops) :- ऐसी फसलें जो एक वर्ष या इससे भी कम समय में या एक सीजन में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं । एकवर्षीय फसलें कहलाती है । इस समय के दौरान ही यह फसलें विकास करती है, फूलते हैं तथा बीज उत्पादन करते हैं ।

जैसे – धान, गेहूं, अरहर, सोयाबीन, सरसों, चना, जौ इत्यादि ।

 

(27). द्विवर्षीय फसल (Biennial Crops) :- ऐसी फसलें जो अपना जीवन चक्र दो वर्षो में पूरा करती है । प्रथम वर्ष में यह फसलें अपनी वानस्पतिक वृद्धि करते हैं जबकि दूसरे वर्ष में यह फुलते हैं व बीज उत्पादित करते हैं ।

जैसे – गन्ना, शलजम, पत्तागोभी, चुकंदर इत्यादि ।

 

(28). बहुवर्षीय फसल (Perennial crop) :- जो पौधे दो वर्ष से अधिक समय में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं ऐसे फसलें बहूवर्षीय फसलें कहलाती है ।

जैसे – नेपियर, गिनी प्लांट इत्यादि ।

 

(29). फसल पैटर्न (Cropping Pattern) :-

● किसी निश्चित क्षेत्र में एक सीजन में फसलो को किस प्रकार व्यवस्थित करते हैं और पूरे साल फसलो को किस क्रम में रखते हैं , इसे ही फसल पैटर्न कहते हैं।

● किसी निश्चित क्षेत्र में फसलों को किस तरह से arrange करना और उसका Sequence कैसे maintain करना Cropping Pattern कहलाता है ।

 

(30). फसल प्रणाली (Cropping System) :-

● फसल प्रणाली कृषि की एक महत्वपूर्ण घटक है जिसमे सस्य क्रम (Cropping Pattern) का सम्बंध प्रक्षेत्र के संसाधनों, प्रक्षेत्र के अन्य उद्यम (Enterprises) तकनीक और वातावरण के साथ होता है ।

● किसी निश्चित वातावरण में उपलब्ध संसाधनों से आय प्राप्त करने हेतू अपनाया गया सस्य क्रम (Cropping Pattern) तथा इसका प्रबंधन फसल प्रणाली (Cropping system) कहलाता है ।

 

(31) मोनो कल्चर / Sole Cropping :-  जब किसी स्थान पर लगातार एक ही फसल उगाई जाती है तो इसे मोनो कल्चर या Sole Cropping कहते हैं । और इसे Solid planting के नाम से भी जाना जाता है।

उदा. –        धान – धान – धान 

 

(32) Mono Cropping (एकल फसल) :- जब किसी एक निश्चित क्षेत्र में या खेत मे एक वर्ष में केवल एक ही फसल उगाया जाता है तो उसे एकल फसल प्रणाली (Mono Cropping) कहते हैं।

उदाहरण :- मान लो किसी खेत मे एक साल में खरीफ सीजन में सिर्फ धान की फसल उगाना और रबी और जायद खाली छोड़ना । फिर अगले साल खरीफ में धान की ही फसल उगाकर रबी और जायद में कोई भी फसल न लेना एकल फसल प्रणाली का उदाहरण है ।

 

(33) बहु फसले (Multiple Cropping) :- किसी क्षेत्र में या किसी खेत मे एक से ज्यादा मतलब दो या दो से अधिक फसलें उगाना बहु फसले कहलाता है , चाहे दो फसल या उससे ज्यादा तीन, चार, पांच कितनी फसलें ले सकते हैं ।

बहु फसल (Multiple Cropping) के भी प्रकार है जो नीचे दिए गए हैं – 

 

(34) अंतरा फसलें (Inter Cropping) :- जब किसी खेत मे दो या उससे अधिक फसलों को निश्चित पंक्तियों या एकसमान क्रम में उगाया जाता है तो ऐसी पध्दति को अंतरा फसलें (Inter Cropping) कहते हैं।

जैसे – चना + सरसों (4:1 या 6:1)

         गेंहू + सरसों   (9:1)

 

(35) मिश्रित फसल (Mixed Cropping):- जब दो या दो से अधिक फसलों के बीजों को एक साथ मिलाकर उगाया जाता है तो इसे मिश्रित फसल कहते है ।

जिस प्रकार आपने पढ़ा कि अंतरा फसल (Inter cropping) में फसलों को एक निश्चित कतार में उगाया जाता है लेकिन मिश्रित फसल (Mixed Cropping) में बिना कोई क्रम और बिना किसी कतार के फसलों के बीजों को एक साथ मिश्रित करके उगाया जाता है।

 

(36). मिश्रित खेती (Mixed Farming) :- किसी फार्म/क्षेत्र में फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन आदि करना है मिश्रित खेती (Mixed Farming) कहलाता है ।

 

(37) ऐले क्रॉपिंग (Alley Cropping) :- यह पद्दति अक्सर बागानों में अपनाया जाता है । इसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए या बनाये रखने के लिए बड़े पेड़ो के पंक्तियों के बीच मे सब्जियों या फसलो को लगया जाता है ।

जैसे :- बागों में आम , बबूल आदि बड़े पेड़ो के पंक्तियों के बीच मे फसलें या सब्जियां उगाना जैसे – हल्दी, उड़द , अदरक आदि ।

(38) रिले क्रॉपिंग (Relay Cropping) :- इसे आप रिले रेस की तरह समझिए जैसे रेस खत्म हुए बिना दूसरे को रिले डंडा पकड़ा दिया जाता है । उसी प्रकार इसमें एक फसल की कटाई हुए बिना  उसी खेत में दूसरे फसल को उगा दिया जाता है।  चलिये इसे परिभाषा के माध्यम से समझते हैं –

“पहली फसल को काटने से पूर्व उसी खेत मे दूसरी फसल बोना Relay Cropping या अविराम फसले या आवतरण फसले कहलाती है ।”

उदाहरण – धान के खेत मे धान की फसल की कटाई से पहले मसूर, अलसी, तिउरा आदि बोना ।

– इसे कही – कहीं पर जैसे मध्यप्रदेश में उतेरा भी कहतें हैं ।

– इसे पश्चिम बंगाल और बिहार में पैरा फार्मिंग (Paira Farming) कहते हैं ।

 

(39) पेड़ी (Ratooning) :- जब पहली वाली फसल को काटने के बाद उसी फसल के तने से नए फसल तैयार किया जाता है तो इसे पेडी या रेटूनिंग कहते हैं । यह क्रिया अधिकतर गन्नो में और घासों में किया जाता है ।

 

(40). फसल चक्र (Crop Rotation) :- मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए फसलों को हेर-फेर अथवा क्रमबद्ध करके बोना ही फसल चक्र (Crop Rotation) कहलाता है । जैसे कि एक ही खेत में पहले सीजन या पहले वर्ष में एक फसल तथा उसी खेत में दूसरे वर्ष किसी दूसरे फसलों को उगाना फसल चक्र कहलाएगा ।

जैसे – गहरी जड़ वाली फसलों के बाद उथली जड़ वाली फसल व अनाज वाली फसलों के साथ दलहनी फसलें बोना आदि ।

(फसल चक्र के बारे में उसकी परिभाषा, नियम, सिद्धांत, लाभ आदि के बारे में और अधिक जानने के लिए फसल चक्र वाला आर्टिकल पढ़ सकते हैं – )

 

(41). नगदी फसल (Cash Crop) :- ऐसी फसलें जिन्हें जिस रूप में उत्पादित या हार्वेस्ट किया जाता है उसे उसी रूप में बेच दिया जाता है । इन फसलों से किसान को सीधे नगद मूल्य मिलता है ।

जैसे – आलू, गन्ना, चाय, तंबाकू, कपास, जूट इत्यादि ।

 

(42). सिंचाई (Irrigation) :- फसल उत्पादन में पौध बढ़वार के लिए भूमि में आवश्यक नमी बनाए रखने के लिए कृत्रिम रूप से फसलों को पानी देने की क्रिया सिंचाई (Irrigation) कहलाती है ।

 

(43). जल निकास (Drainage) :- किसी क्षेत्र अथवा खेत की अतिरिक्त जल को भूमि की सतह अथवा अधोसतह से बाहर निकालना जल निकास (Drainage) कहलाता है ।

 

(44). जल मांग (Water Requirement) :- जल कि वह मात्रा जो किसी फसल को उगने, बीज उत्पादन अथवा जीवन चक्र पूरा करने के लिए आवश्यक होती है फसल की जल मांग (Water Requirement) कहलाती है ।

 

(45). जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) :- किसी मृदा की कुल जल की अधिकतम मात्रा को धारण करने की क्षमता, उस मृदा की जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) कहलाती है ।

 

(46). खाद (Manure) :- पेड़ – पौधे एवं जानवरों के कार्बनिक अवशेषों के अपघटित रूप को खाद कहते हैं । खाद में पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व कम या अधिक मात्रा में उपलब्ध रहते हैं ।

खादों में – गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद, हरी खाद, खलियाँ, जीव जंतुओं के अवशेष या मलमूत्र से निर्मित खाद सम्मिलित हैं ।

 

(47). उर्वरक (Fertilizer) :- उर्वरक रासायनिक यौगिक होता है जो की फैक्ट्रियों में संश्लेषित कर तैयार किया जाता है तथा जिनमें पोषक तत्वों की मात्रा, संगठन व संरचना निश्चित होती है । उर्वरक का उपयोग पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने के लिए निश्चित मात्रा में दिया जाता है ।

 

(48). फसल सघनता (Cropping Intensity) :- किसी क्षेत्र में कुल फसली क्षेत्र तथा शुद्ध बोया गया क्षेत्र के अनुपात को फसल सघनता (Cropping Intensity) कहते हैं ।

 

(49). फसल चक्र सघनता (Crop Rotation Intensity) :- फ़सल चक्र में फसलों की संख्या तथा फसल चक्र की वर्षों की संख्या का अनुपात फसल चक्र सघनता (Crop Rotation Intensity) कहलाता है ।

 

(50). स्थानांतरित खेती या झूम खेती (Shifting Cultivation or Jhuming) :- स्थानांतरित खेती, खेती का एक प्रकार है । जो जनजातीय लोगों द्वारा अपनाई गई थी । इसमें जंगल के किसी एक भाग को काट या जलाकर साफ किया जाता है और इस जमीन पर फसल उगाया जाता है । कुछ वर्ष बाद इस जमीन की उर्वरता कम होने के बाद इस जगह को छोड़कर दूसरी जगह जाकर पुनः जंगल को साफ करके खेती शुरू कर लिया जाता है ।

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