Weathering in Hindi | चट्टानों का अपक्षय | Meaning of Weathering.Types of weathering.process of weathering

Weathering in Hindi

 

  परिचय – 

अपक्षय (weathering) एक महत्वपूर्ण नेचुरल प्रोसेस है जिसके द्वारा मिट्टी (soil) का निर्माण होता है, यह प्रक्रिया पृथ्वी में हजारों – लाखो वर्षों से अनवरत जारी है तथा पृथ्वी के स्थलमंडल में जीवन की उत्पत्ति में weathering का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है।

स्थलमंडल में पाए जाने वाले सभी पेड़ पौधों को मिट्टी से ही पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। तथा जानवरों और मनुष्यों को मिट्टी पर उगने वाले पेड़ पौधों से ही भोजन की प्राप्ति होती है।

आप इस प्रोसेस के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो हमारे साथ बने रहें क्योंकि इस आर्टिकल में हम अपक्षय के सभी पहलुओं बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं जैसे –

• meaning of weathering.

• अपक्षय/weathering क्या है ?

• चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है ?

• अपक्षय कितने प्रकार का होता है ? और

• अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं ?

• अपरदन क्या होता है ?

• अपरदन और अपक्षय में क्या अतंर है ?

So let’s start now …

चट्टानों के अपक्षय (Weathering)

हमारी पृथ्वी के स्थलमंडल का निर्माण विभिन्न प्रकार के चट्टानों से हुआ है जिसमें आग्नेय, अवसादी और कायांतरित चट्टान प्रमुख है। और यह सब चट्टानें समुद्र तल (baseline) सेऊपर हैं इसलिए जल वायु के तत्व या क्लाइमेटिक एलिमेंट्स अनवरत रात – दिन इन चट्टानों के अपक्षय और अपरदन में लगे रहते हैं। जो इन चट्टानों को अपक्षयित और अपरदित करके इन्हें जल तथा वायु द्वारा बहाकर समुद्र तल में लाकर जमा कर देते हैं। इस तरह से चट्टानों का अपक्षय और अपरदन कि प्रक्रिया चलती रहती है।

  Meaning of weathering – 

Weathering शब्द में जो Root word /मूल शब्द है वह है weather, जिसे हिन्दी भाषा में मौसम कहते हैं।

अतः मौसम के कारण या मौसम के तत्वों जैसे – बरसात, गर्मी , सनलाइट आदि के कारण earth’s materials like – rocks आदि में जो बदलाव आता है उसे ही weathering या अपक्षय कहते हैं।

Weathering is action of elements of weather and climate over earth’s materials.

 

  अपक्षय क्या है? 

  (Weathering kya hai) –  

अपक्षय वह क्रिया है जिससे ठोस चट्टानें टूट कर चूर-चूर हो जाती है। रासायनिक तथा भौतिक क्रियाओं के कारण चट्टानों का mechanical disintegration and chemical decomposition होता है। जिससे चट्टान अपने ही स्थान पर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटने लगती है। इसे ही अपक्षय (weathering) कहतेहैं।

 

  अपरदन क्या है? 

  (Erosion kya hai) – 

जल तथा वायु द्वारा चट्टान को  विखंडित (disintegrate) करके एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर जमा कर देना अपरदन कहलाता है।

 अपक्षय और अपरदन में अंतर  – 

अपक्षय में चट्टान अपने ही स्थान पर टूटता है। यह एक on-site process है जिसमें अपक्षय के बाद अपक्षयित मटेरियल उसी स्थान पर पड़े रहता है।

जबकि अपरदन में टूटने के बाद (disintegration के बाद) अपक्षयित मटेरियल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर जमा हो जाता है।

अपक्षय के लिए जलवायवीय कारकों के साथ-साथ रासायनिक, भौतिक, एवम ्जजैविक कारक भी जिम्मेदार होते हैं।

जबकि अपरदन के ल ए मुख्यतः जल तथा वायु जिम्मेदार होते हैं।

 

 चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है? (How rocks are weathered) – 

चट्टान बहुत ज्यादा सघन और कठोर होते हैं। इनका अपक्षय दो तरीके से होता हैं-

पहला mechanical disintegration process जिसमें भौतिक या यांत्रिक प्रक्रिया के तहत इन पर चोट पहुंचती है तो यह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं। और दूसरा chemical decomposition प्रक्रिया से जिसमें कि यह धीरे-धीरे खुद ही घुल जाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि आप मुँह में एक हार्ड टॉफी डाल लें तो इसका दो तरीके से अपक्षय हो सकता है –

disintegration के लिए आपको यांत्रिक शक्ति का प्रयोग करना होगा जिसमें दोनों दातों के बीच टॉफी को दबाकर चुर्ण-चूर्ण कर देना होगा।

और यदि दांत नहीं है वृद्धावस्था है तो chemical decomposition से जीभ के द्वारा चूस-चूस  कर टॉफी को घुला देना है।

 

 रोचक तथ्य – 

चट्टानों में जितना ज्यादा complex minerals होंगे चट्टान उतने ही आसानी से टूटेंगे। basic igneous rocks जल्दी weather होते हैं as compared to acidic igneous rocks.

◆ limestone weather more easily than sandstone.

◆ मदृा निर्माण के लिए चट्टानों का अपक्षय होना बेहद जरूरी होता है क्योंकि चट्टानों के छोटे-छोटे टुकड़ों से ही मिट्टी का निर्माण होता है।

◆ मृदा निर्माण के 2 स्टेप होते हैं पहला है अपक्षय और दूसरा है मृदा प्रोफाइल का विकास।

◆ मृदा निर्माण एक धीमी और लंबी प्रक्रिया है जो सैकड़ों सालों तक अनवरत जारी रहता है।

 

अपक्षय कितने प्रकार का होता है? (types of weathering) – 

वैसे तो अपक्षय 3 प्रकार का होता है,

1.भौतिक/यांत्रिक 
2.रासायनिक और 
3.जैविक अपक्षय 

लेकिन अधिकांश चट्टानों का अपक्षय यांत्रिक और भौतिक तरीकों से अधिक होता है।

  अपक्षय के प्रकार –  

1.भौतिक/यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical weathering)

2.रासायनिक अपक्षय
(Chemical weathering)

3.जैविक अपक्षय
(Biological weathering)

 

 1) भौतिक या यांत्रिक अपक्षय क्या है? (Physical/mechanical weathering) 

क्लाइमेटिक फैक्टर्स या वातावरणीय कारकों के कारण ठोस चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटना यांत्रिक या भौतिक अपक्षय कहलाता है।

इस तरह के अपक्षय से चट्टानों तथा खनिजों के आकार एवं रूप में ही परिवर्तन होता है परंतु इससे बनने वाले नए पदार्थों का रासायनिक सगंठन अपरिवर्तित रहता है।

भौतिक या यांत्रिक अपक्षय के कारक –

1. ताप (Thermal)

2. जल (Water)

3. पाला (Frost)

4. ग्लेशियर (Glacier)

5. हवा (Wind)

 

1. ताप (Thermal)

दिन में सूर्य ताप के कारण चट्टाने बहुत ज्यादा गर्म हो जाने के कारण फैल जाती है और जब रात होती है तो तापमान के घटने पर सिकुड़ जाती है। इस तरह चट्टानों के बार-बार फैलने व सिकुड़ने के कारण इनमें दरार पड़ जाती है और चट्टान कई टुकड़ों में टूट जाती है।

अधिक ताप वाले क्षेत्रों में इस प्रकार का अपक्षय अधिक होता है। पृथ्वी पर सबसे अधिक तापांतर कर्क रेखा और मकर रेखा पर होता है।

जब सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत होता है तो वहां बहुत ज्यादा हाई टेंपरेचर हो जाता है। तापमान 45 डि ग्री सेंटीग्रेड से भी पार कर जाता है और चट्टानें फैल जाती है। लेकिन जब सूर्य साउथ में मकर रेखा पर जाता है तो कर्क रेखा पर ठंडी आ जाती है और चट्टानें सिकुड़ जाती है । परिणाम स्वरूप कर्क रेखा की चट्टाने जो अत्यतं कठोर मानी जाती है वह भी अपक्षयित हो जाते हैं।

2. जल (Water)

तीव्र वेग से प्रवाहित होने वाली पानी में physical force होता है। जब पानी waterfall के रूप में बहुत ऊंचाई से पत्थर की सतह पर गिरता है तो इस physical force की वजह से पत्थर का एक कण फिर दूसरा कण फिर तीसरा कण और धीरे-धीरे बहुत ज़्यादा कण पत्थर के surface से  निकल जाते हैं। परिणाम स्वरूप वहां पर एक गढ्डा बन जाता है। और सभी तरह के वाटरफॉल में नीचे गड्ढा पाया जाता है जो fluvial water के अपक्षय से बनता है।

बहता हुआ जल नदियों के किनारों पर पाई जाने वाली चट्टानों और मिट्टी को भी अपक्षयित और अपरदित करता है। जिसके फलस्वरूप नदियों की गहराई और चौड़ाई में वृद्धि हो जाती है।

3. पाला (Frost)

High altitude क्षेत्रों में दिन के समय जब पानी तरल अवस्था (liquid state) में होता है तो चट्टानों के दरारों और रंध्रों (pores) में प्रवेश कर जाता है। और जब रात होती है तो तापमान में गिरावट होती है लेकिन पृथ्वी के कुछ भागों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक गिर जाता है। जिसके कारण चट्टानों की दरारों और रंध्रों में एकत्रित जल बर्फ में बदल जाता है जिससे इसका आयतन (volume) 90% तक बढ़ जाता है क्योंकि जल के जमने पर बर्फ का आयतन बढ़ता है।

आयतन (volume) के बढ़ने पर चट्टानों पर बहुत ज्यादा प्रेशर पड़ता है। इस प्रेशर को चट्टान सहन नहीं कर पाते हैं और चट्टानों में दरारे पड़ जाती है। जिससे चट्टान टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।

अतः इस प्रकार पाला (frost) के कारण चट्टानों का अपक्षय होता है।

4. ग्लेशियर (Glacier)

• ग्लेशियर अपने साथ चट्टानों के बड़े बड़े टुकड़ेलेकर बहतें हैं जिससे ये चट्टान दाब तथा रगड़ के कारण छोटे-छोटे कणों में परिवर्तित होते रहते हैं।

• पहाड़ों से जब बर्फ बड़े बड़े टुकड़े नीचे लुढ़कते हैं तो पत्थरों को रगड़ते हुए लुढ़कते हैं। इस रगड़ के कारण पत्थर छोटे-छोटे कणों में टूटते हैं।

5. हवा ( Wind)

जब हवा बहती है तो अपने साथ छोटे-छोटे डस्ट पार्टिकल को भी साथ लेकर चलती है। और जब हवा तीव्र गति से चलती है तो हवा के साथ साथ उड़ने वाले डस्ट पार्टिकल पत्थरों के सतह से टकराते हैं। इन डस्ट पार्टिकल्स के टकराने की वजह से पत्थर की सतह से छोटे-छोटे कण अलग होने लगते हैं।

यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है जिसकी वजह से पत्थरों के सरफेस से छोटे-छोटे कण लगातार अलग होते रहते हैं। और इस तरह से हवा के द्वारा चट्टानों का अपक्षय होता है।

इस प्रकार का अपक्षय desert areas में अधि क होता है जहां तेज गति से हवाएं चलती है।

 

 2) रासायनिक अपक्षय क्या है? (Chemical weathering kya hai)

रासायनिक अपक्षय में Chemical reactions होते हैं। इन chemical reactions की वजह से चट्टानों का अपघटन (decomposition) होता है। जिससे चट्टान कमजोर होकर टूटने लगते हैं।

रासायनिक अपक्षय दो स्टेज में होता है-

a. Disappearance of certain minerals – अर्थात कुछ निश्चित खनिजों का आंशिक या पूर्णरूप से गायब होना।

b. Formation of secondary minerals- अर्थात द्वितीयक खनिज पदार्थों का बनना।

और इनदो स्टेज के साथ मुख्यतः चट्टानों के खनिजों की सतह पर रासायनिक अपक्षय होता है, यह रासायनिक रूपांतरण कहलाता है ।

रासायनिक अपक्षय में निम्न क्रियाएं भाग लेती है-

1. Solution by water

2. Oxidation

3. Carbonation

4. Hydrolysis

5. Hydration

6. Dissilication

 

1. Solution by water

जब जल किसी चट्टान के सम्पर्क मेंआता है तो यांत्रिक क्रिया के साथ ही रासायनिक क्रिया भी करता है। यह जल जब चट्टानों के अंदर घुसता है तो चट्टान में पाई जाने वाली घुलनशील पदार्थ जैसे – शुगर, साल्ट आदि को घोलकर बहा ले जाता है।

जैसे ही चट्टान के सॉल्यबुल मिनरल को water घोल बनाकर बहा ले जाता है, चट्टान कमजोर पड़ जाती है और धीरे-धीरे टूटने लगता है।

इस तरह से solution process के द्वारा अपक्षय की क्रिया होती है।

2. Oxidation

चट्टानों में पाए जाने वाले खनिजों के साथ ऑक्सीजन के रासायनिक संयोग को ऑक्सीकरण (oxidation) कहते हैं । जिन खनिजों में आयरन, मैगजीन और सल्फाइट्स होते हैं उनका ऑक्सीडेशन अधिक होता है।

विश्व में जहा-ंजहां लोहांस युक्त चट्टानें और iron reach बेसाल्टिक चट्टानें जब जल के सम्पर्क में आती है तो ऑक्सीकरण की क्रिया होती है और इन चट्टानों में जंग (rust) लग जाती है।

नोट- जंग (rust) हमेशा लोहे में लगता है और ये चट्टानें आयरन से भरपूर है इसलिए इनमें भी जगं लगता है। और इस तरह से rust का मतलब हुआ की चट्टानें कमजोर हो गई है। छोटे-छोटे टुकड़े rust के रूप में चट्टानों से टूट कर अलग हो रहे हैं।

हर वर्ष बारिश के मौसम में चट्टानें जल के सम्पर्क मेंआती हैं और धीरे-धीरे अपक्षय की क्रिया साल दर साल चलती रहती है।

इस तरह से rust (आयरन ऑक्साइड) की वजह से आसपास के क्षेत्रों की मिट्टी का रंग लाल हो जाता है और इस तरह से लाल रंग की मिट्टी का निर्माण होता है।

3. Carbonation

चुना पत्थर (limestone) बहुत ज्यादा हार्ड चट्टान होता है लेकिन जब ये पानी के सम्पर्क में आता है तो पानी के साथ रासायनिक क्रिया करके बहुत ज्यादा कमजोर हो जाता है और आसानी से टूटने लगता है।

आपने कभी स्कूल या कॉलेज में यह प्रयोग करके देखा होगा कि , जब चुना पत्थर को किसी बर्तन में रखकर इसमें पानी डालते हैं तो पानी के सपंर्क में आने पर चुना पत्थर और पानी के बीच रासायनिक क्रिया होता है और बहुत अधिक मात्रा में एनर्जी निकलता है। यह पानी गर्म होकर उबलने लगता है।

इस रासायनिक क्रिया से चुना पत्थर कमजोर होकर टूटने लगता है और इतना अधिक कमजोर हो जाता है कि टूट कर चूर्ण-चूर्ण जाता है। इस process को carbonation कहते हैं। और इस तरह से carbonation process के द्वारा चट्टानों का अपक्षय होता है।

4. Hydrolysis

चट्टानों में उपस्थित खनिजों का सम्पर्क जब जल के साथ होता है तो खनिजों का रासायनिक संगठन बदल जाता है और वे निर्बल होकर टूटने लगते हैं।

उदाहरण के लिए आप एक गुड़ का गोला ले लें जिसको पटकने पर भी ना टूटता हो। इसमें बस 8 से10 बून्द पानी टपका दें जो इसमें adsorp हो जाएं फिर इसके बाद इसे दो-तीन बार हाथ में उछालोगे तो ये गुड़ का गोला weather हो जाएगा।

यदि कोई कड़े मिजाज का आदमी दहाड़ता हुआ आपके पास आ जाए तो उसे आप एक गिलास ठंडा पानी और थोड़ा मीठा खिला दें इससे वह आदमी एकदम से नरम पड़ जायेगा, और weather हो जायेगा।

5. Hydration

Hydration process में चट्टानों के खनिजों में water add हो जाता है जिससे खनिज का आयतन बढ़ जाता है और खनिज मुलायम हो जाते हैं जिससे वे आसानी से अपक्षित (weather) हो जाते हैं।

नम प्रदेशों में यह क्रिया अधिक होती है।

6. Disilication

इसे हिंदी भाषा में सिलिका का पृथक्करण भी कहते हैं । सिलिका सबसे अधिक earth crust, mental और पिघले हुए लावा- magma. में पाया जाता है। इन चट्टानों को sial या sima कहते हैं।

मेंगमा में पाई जाने वाली सिलिका से यदि लाइमस्टोन/ कैल्शियम का सम्पर्क होता है तो दोनों के बीच रासायनिक क्रिया होती है और सिलिका मैगमा से बाहर हो जाती है।

अगर यदि एक कंटेंट भी बाहर हो जाता है तो चट्टान कमजोर हो जाती है और टूटने लगती है।

नोट- चट्टान high-temperature के कारण पिघलकर मैगमा बन जाता है जो ठंडा होने के बाद पुनः चट्टान बन जाता है।

 

 3) जैविक अपक्षय क्या है? (Biological weathering kya hai)

यदि सही तरीके से देखा जाए तो जैविक अपक्षय जैसा कुछ नहीं होता। यह जैविक कारकों द्वारा हुआ भौतिक या रासायनिक अपक्षय ही होता है। लेकिन यह क्रिया जीवित प्राणियों के द्वारा होता है इसलिए इसे जैविक अपक्षय कि श्रेणी मे गिनते हैं।

जैविक अपक्षय के कारक

1. पौधों का प्रभाव

2. जन्तुओ का प्रभाव

3. मनुष्यों द्वारा

 

1. पौधों का प्रभाव

पौधों की जड़े जब चट्टानों के अंदर प्रवेश करती है तो अपने सम्पर्क मेंआने वाले पदार्थों (चट्टानों, खनिजों) पर अधिक दबाव डालती है जो चट्टानों को तोड़ने में सहायक होता है।

चट्टानों की दरारों या छेदों में उपस्थित पौधों के अवशेष सड़कर अम्ल पैदा  करते हैं जो चट्टानों पर सक्रिय आक्रमण कर उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं।

पौधों की जड़ें भी अम्ल स्रावित करती है जो चट्टानों के अपक्षय मैं सहायक होता है। पेड़-पौधों की जड़ें भौतिक अपक्षय के प्रबल (potential) कारक हैं।

2. जंतुओं का प्रभाव

अनेक सूक्ष्म जीवों के समहू चट्टानों तथा खनिजों के विखडंन (disintegration) में सक्रिय रहते हैं।

बड़े जीव जैसे- खरगोश, गीदड़, लोमड़ी, चहूे तथा नेवले आदि जमीन खोदकर बिल में रहते हैं। बिल खोदने पर चट्टाने निर्बल हो जाती है जो जलवायु संबंधी अन्य विच्छेदनकारी शक्तियों से टुकड़े-टुकड़े होकर मिट्टी का रूप धारण कर लेती है।

3. मनुष्य द्वारा

मनुष्य भी चट्टानों के विघटन में हाथ बटाते हैं। बड़ी-बड़ी पहाड़ियों, चट्टानों को काट-काटकर सड़के बनाई जाती है । विस्फोटकों के उपायोग से चट्टानें चूर्ण- चूर्ण की जाती है। पहाड़ों की चट्टानों को तोड़कर लोहा, तांबा, कोयला आदि निकाला जाता है।

 

अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक (Factor affecting weathering)

अपक्षय को मुख्य रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं

1. जलवायु संबंधी दशाएं (climatic conditions)

2. भौतिक गुण (physical properties)

3. चट्टानों एवं खनिजों की रासायनिक विशषेताएं ।

 

FAQS

Que. कॉम्प्लेक्स मिनरल्स वाले रॉक्स (चट्टान) जल्दी अपक्षयित (weathered) क्यों होते हैं ?

Ans. रॉक्स में कई प्रकार के मिनरल्स पाए जाते हैं इनमें से कुछ मिनरल्स सूरज की गर्मी पाकर फैलते हैं, जबकि कुछ मिनरल्स नहीं फैलते हैं।  और इसी तरह से कुछ मिनरल्स ऐसे होते हैं जो पानी के सम्पर्क में आने पर फैलते हैं और कुछ मिनरल्स थोड़े कम फैलते हैं या बिल्कुल नहीं फैलते हैं।

इस वजह से रॉक्स का एक हिस्सा फैलने की कोशिश करता है और दूसरा हिस्सा सिकुड़े रहता है इससे रॉक्स पर प्रेशर क्रिएट होने लगता है।

आपको यह बात तो जरूर पता होगी की रॉक्स एक सॉलिड मटेरियल है और किसी भी सॉलिड मटेरियल पर प्रेशर डालने पर वह फैलता नहीं है बल्कि टूट जाता है। और चट्टानों के साथ भी यही होता है। प्रेशर की वजह से वे फैलने के स्थान पर टूट जाते हैं।

इसीलिए कहा जाता है कि जिस चट्टान में मिनरल्स की संख्या या मात्रा अधिक होगी वे जल्दी अपक्षयित होते हैं।

 

Que. अपक्षय और अपरदन क्यों जरूरी है ?

Que. अपक्षय और अपरदन कि प्रक्रिया रुक जाए तो क्या होगा ?

Ans. देखो बाबू ऐसा है कि करोड़ों साल पहले हमारी पृथ्वी लावा/मैगमा का गोला था। जब यह मैगमा ठंडा होकर ठोस रूप में जमी तो इससे चट्टान (रॉक्स) का निर्माण हुआ।

ये रॉक्स जब अपक्षय और अपरदन प्रक्रिया के द्वारा बारीक छोटे-छटे टुकड़ों में टूटते हैं तो इनसे मिट्टी (soil) का निर्माण होता है। और आगे चलकर इसी मिट्टी में फिर धीरे-धीरे जीव जन्तु , पेड़ – पौधे पनपते हैं। इस तरह से हमारी पृथ्वी के स्थलमडंल में जीवन का विकास हुआ है।

अतः अपक्षय और अपरदन मिट्टी के बनने के लिए और स्थलमडंल में जीवन के विकास के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

इसलिए अगर ये प्रक्रिया रुक जाए तो यह हमारे लिए और इस ग्रह के लिए अनर्थकारी सिद्ध हो सकती है ।

  अपील :- 

यह ब्लॉग पोस्ट आपको कैसा लगा, कमेंट बॉक्स में लिखकर हमे बताएं, क्योंकि इससे हमें आपके लिए और भी ज्यादा ब्लॉग लिखने का मोटीवेशन मिलता है।

साथ ही आप अपने सुझाव भी कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं जिससे हम इस ब्लॉग को आपके लिए और भी ज्यादा फायदेमंद बना सकें। See you…Take care….

 

 

 

2 thoughts on “Weathering in Hindi | चट्टानों का अपक्षय | Meaning of Weathering.Types of weathering.process of weathering”

  1. Fantastic knowledgeable..this blog covered or I must say answered all of my queries…you rocked and we got☺️

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