धान के फसल की मुख्य रोग के लक्षण व उसका प्रबंधन | Rice Diseases and their Management in Hindi पार्ट – 3

Hello मित्रों स्वागत है आप सब का। आज हम बात करेंगे धान की फसल में लगने वाले मुख्य रोगों व उनके नियंत्रण (Rice Diseases and their Management in Hindi) के बारे में , और यह ब्लॉग पार्ट 3 है । अगर आप लोग पार्ट 1 और पार्ट 2 नही पढ़े है तो नीचे क्लिक करें । 👇

धान की मुख्य रोग के लक्षण व प्रबंधन (पार्ट -1)

● धान की मुख्य रोग के लक्षण व प्रबंधन (पार्ट -2)

 

आज हम देखेंगे धान के False smut (धान का आभासी कंड रोग), बैक्टेरियल लीफ ब्लाइट और धान के खैरा रोग के बारे में ।

Rice Diseases and their Management in Hindi

 

धान के बाकी मुख्य रोगों (Rice Diseases and their Management in Hindi)

 

5.  False Smut (धान का आभासी कंड रोग)

धान का False Smut यानी आभासी कंड रोग जिसको हल्दी रोग भी कहा जाता है । इसे सामान्यतः लाई फूटना भी कहते हैं । यह Ustilaginoidea virens नामक फफूंद के कारण होता है । यह रोग खेत मे धान की बालियाँ निकलने के बाद ही होता है ।

Pathogens of false smut of paddy | Rice Diseases and their Management in Hindi
Ustilaginoidea virens (microscope view)

 

लक्षण (Symptoms of False Smut)

false smut of paddy | Rice Diseases and their Management in Hindi

 

जैसा कि आप लोग ऊपर देख ही चुके हैं कि यह रोग धान में बालियाँ निकलने के बाद ही होता है ।

इस रोग के शुरुआत में धान के जिन दानो में यह रोग होना रहता है उन दानों का रंग सफेद हो जाता है । दोस्तों आप लोग देखें ही होंगे कि इस रोग के कंड धान के बालियों के सभी दानों में नही होता बल्कि बालियों के कुछ – कुछ दानों में ही होता है ।

false smut of paddy | Rice Diseases and their Management in Hindi

शुरुआत में Smut ball (कंड) छोटा रहता है और धीरे-धीरे इसका आकार बढ़ता जाता है  व कंड पतली सफेद झिल्ली से ढँका रहता है । बाद में यह झिल्ली फट जाती है जिससे इस रोग के रोगजनक फफूंद के chlamydospores (क्लेमाइडोस्पोर) बाहर आ जाते है जो कि पाउडर की तरह दिखाई देते हैं ।

Pathogens of false smut of paddy

इन स्मट बालों या कंडो का रंग पहले पीला रंग फिर नारंगी रंग की तरह व अंत मे गाढ़ा हरा व काला रंग का हो जाता है ।

अनुकूल स्थिति (Favorable Condition For False Smut)

● फूलने (Flowering) और परिपक्वता के दौरान वर्षा या बादल का मौसम होना इस रोग का मुख्य कारण है ।

● वातावरण आर्द्रता 96% से ज्यादा व तापमान 25 – 35 ℃

प्रबंधन (Management Of False Smut)

(1) धान लगाने से पहले खेत की पिछली फसल अवशेष नही होना चाहिए व आस पास के मेढ़ साफ होने चाहिए ।

(2) धान की नर्सरी स्वस्थ व प्रमाणित बीजों से लगानी चाहिए और हो सके तो इस रोग के प्रति रोधी या सहनशील किस्मे लगाना चाहिए ।

(3) धान के बीज का गर्म पानी से उपचारित भी किया जा सकता है (Hot Water Treatment) इसके लिए धान के बीज को लगभग 10 मिनट तक 52℃ गर्म पानी मे डुबाकर रखना होता है ।

(4) कार्बेंडाजीम (Carbendazim) नामक कवकनाशी से भी आप बीजोपचार 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज दर के हिसाब से उपचारित कर सकते हैं ।

(5) धान के खेत में अगर यह रोग अधिक आ रहा हो तो प्रोपिकोनाजोल (Propiconazole) का जब धान में फूल आ रही हो तो या बालियाँ निकल रही हो तब इसका छिड़काव 1 मिली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से करना चाहिए ।

 

6. Bacterial Leaf Blight ( धान का जीवाणु पत्ती अंगमारी रोग)

यह रोग बैक्टेरिया के कारण होता है जिसका नाम है Xanthomonas oryzae Pv. oryzae अर्थात यह बैक्टेरिया इस रोग का रोग कारक है । यह रोग सर्वप्रथम जापान में 1884-85 में देखा गया । और भारत मे यह रोग पहली बार 1959 मे देखा गया ।

लक्षण (Symptoms of Bacterial Leaf Blight)

आमतौर पर यह रोग धान में Heading Stage के समय देखा जाता है लेकिन इससे पहले भी हो सकता है ।

Bacterial Leaf Blight Of Paddy (जीवाणु पत्ती अंगमारी रोग) | Rice Diseases and their Management in Hindi

 

नर्सरी में छोटे पौधों (Seedlings) में वृत्ताकार मार्जिन में पीले धब्बे दिखाई देते हैं जो फैलते है व मोटे होते जाते हैं । व पत्तियां सूखने लगती है ।

बैक्टेरिया पत्ति टिप (Leaf tips) में कटे हुये घावों के माध्यम से प्रवेश करते हैं ।

घाव को लहरदार मार्जिन के साथ लम्बाई और चौड़ाई दोनो में वृद्धि होती है और पूरे पत्ते को कवर करते हुई कुछ दिनों बाद भूसे जैसे पीले रंग में बदल देते हैं ।

घाव (Wilt) 3-4 सप्ताह के भीतर रोपण में देखा जा सकता है।

अनुकूल स्थितियाँ (Favorable Condition For Bacterial Leaf Blight)

● रोपण के समय किसी कारणवश पत्तियों के टिप में कतरन या घाव होने से सम्भावनाये बड़ जाती है ।

● भारी बारिश , भारी ओस, गहरी सिंचाई, बाढ़, व तापमान 25 – 30℃ होने से ।

● जब नाइट्रोजन का अधिक उपयोग होता है ।

 

Management of Bacterial Leaf Blight Of Rice (प्रबंधन)

(1) सबसे पहली बात इस रोग के लिए कुछ रोधी धान की किस्मे है जिसे उगाया जा सकता है , जैसे – स्वर्णा, अजया, IR 20, IR 42, IR 50, IR 54, IET 2508, IET 1444, TKM-6, मासूरी, MTU 9992, आदि ।

(2) इस रोग से ग्रसित अगर कुछ पौधे हो तो अलग करके जला दें या पिछ्ली फसल के अवशेष हो तो जुताई करके दबा दें ।

(3) नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का सही मात्रा में प्रयोग करें, क्योकि अधिक होने से इस रोग को बढ़ावा मिलता है ।

(4) ध्यान रहे कि इस रोग वाले खेत से सिंचाई का पानी दूसरे स्वस्थ खेत में न जाये ।

(5) इसके नियंत्रण के लिए खेत मे कॉपर ऑक्सी क्लोराइड (Copper Oxychloride) + Streptocycline का विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार छिड़काव करें ।

 

7. Khaira Disease Of Paddy  (धान का खैरा रोग)

आप तो जानते ही होंगे कि यह रोग जिंक यानि जस्ते की कमी के कारण होता है । धान में इस खैरा रोग को सबसे पहले Y. L. Nene ने रिपोर्ट किया । यह रोग अधिकतर जलमग्न धान के खेतों में जस्ता तत्व की कमी के कारण होता है ।

लक्षण (Symptoms of Khaira Disease Of Paddy)

Khaira Disease Of Paddy (धान का खैरा रोग) | Rice Diseases and their Management in Hindi

धान के खेत मे खैरा रोग का लक्षण रोपाई के दो से तीन सप्ताह में दिखाई देते हैं । इस रोग के लक्षण में सबसे पहले पत्तियाँ पीली पड़नी प्रारम्भ होती है फिर पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे उभरने लगते हैं । जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है । इस रोग में पत्तियों के धब्बे ऐसे लगते हैं जैसे जंक लग गयी हो ।

Khaira Disease Of Paddy (धान का खैरा रोग) Zink deficiency | Rice Diseases and their Management in Hindi

अगर आप रोगी पौधे को उखाड़ कर देखें तो उसकी मुख्य जड़ में भूरा रंग का लक्षण दिखाई देता है । तथा इस रोग से प्रभावित पौधे छोटे रह जाते हैं ।

अनुकूल स्थिति- Favorable Condition For Khaira Disease Of Paddy

◆ मुख्यतः जस्ता तत्व की कमी से ।

 

Management of Khaira Disease Of Paddy (प्रबंधन)

जैसा कि आप को पता ही है कि धान में यह रोग जिंक की कमी से होता है तो इस तत्व को पूरा कर दीजिए । आइये जानते हैं कि इसे कौन-कौन से तरीके और कितनी मात्रा में देना चाहिए ।

◆ इसमें नियंत्रण के लिए 25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट बुआई से पहले खेत में मिलाते हैं । तथा 0.5% जिंक सल्फेट का खड़ी फसल में छिड़काव करें ।

◆ जिंक सल्फेट (Zink salphate) का 5 – 6 किग्रा. प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें ।

 

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