How to Prepare Vermicompost in hindi: स्वागत है आप सभी का एक बार फिर से । अगर आप लोग इसका पार्ट 1 देख चुके है तो आप बहुत से टॉपिक पढ़ लिए होंगे जैसे कि वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost) क्या है? इसके लिए सामग्री क्या-क्या है? जगह का चुनाव, वर्मीकर्म्पोस्टिंग के लिए केंचुएं की उपयुक्त प्रजाति क्या – क्या है? और वर्मीकम्पोस्ट का पोषक मान क्या है?
अगर आप इसका पार्ट- 01 नही देखे है तो नीचे पार्ट – 1 पर क्लिक करके अभी देख सकते हैं।
अब हम इसमें यानिकी पार्ट 2 में जानेंगे कि टांका यानिकी वर्मीबेड कैसे भरते है ? वर्मीबेड में पानी देना , इसके हार्वेस्टिंग इसके लाभ और बहुत से चीजों के बारे में।
केंचुआ खाद बनाने कि विधि (How to Prepare Vermicompost in hindi) – Part 2
तो चलिए part 2 देखते हैं :-
टांका भरना (Vermibed Fillng)
टांके को दो तरह से भरा जाता है या भर सकते हैं । पहला तो बिना अपघटित जैविक पदार्थों और ताजा गोबर से और दूसरा अपघटित जैविक पदार्थ से ।
1. जैविक पदार्थ और ताजा गोबर से टांका भरना :- टांके के फर्श पर महीन रेत या मिट्टी की 3 सेंटीमीटर की परत बिछानी चाहिए । इसके ऊपर 3-4 इंच जैविक पदार्थ की परत फिर इसके बाद 3-4 इंच ताजे गोबर की तह बिछाएं । इसी प्रक्रिया को टांका भरते तक करना चाहिए । इसे लगभग 15 दिनों तक नम बनाकर रखना चाहिए । और 15 दिन बाद इसमें गुड़ाई करके केंचुआ छोड़ना चाहिए । इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि केंचुएं को 15 दिन बाद ही छोड़े क्योंकि ताजा गोबर डाला गया है तो वह ताजे गोबर के अपघटन की गर्मी से जीवित नहीं रह पाएंगे ।
2. अपघटित जैविक पदार्थ से टांका भरना :- वेर्मिकम्पोस्टिंग के लिए टांके में अथवा वर्मीबेड में रखने से पहले जैविक पदार्थों को 20 दिनों तक अपघटित कर लेना चाहिए ।
अपघटित पदार्थों में 30 % गाय का ताजा गोबर मिलना चाहिए । इसके बाद मिश्रित करके इन पदार्थों को टांके में डालना चाहिए । इस दौरान इसमें लगभग 60 प्रतिशत नमी बनाये रखना चाहिए ।
इसके ऊपर केंचुओं को समान रूप से छोड़ना चाहिए 1 वर्ग मीटर क्षेत्र में 1 किलो के केंचुएं डालना चाहिए । सामान्यता लगभग 1 किलो में 1000 के केंचुए आते हैं । इसी प्रकार 10 फुट लंबी , 4 फुट चौड़ी और 2 फुट ऊंचाई वाले टांके (वर्मीबेड) में 3.6 किलोग्राम केंचुए डालने की आवश्यकता पड़ती है । इसी दर के अनुसार अगर टांके (वर्मीबेड) का आकार कम या ज्यादा है तो इसी हिसाब से केंचुआं डालना चाहिए । केंचुए टांके (वर्मीबेड) में डालने के बाद जूट के बोरों को गीला करके वर्मीबेड को ढक देना चाहिए । इस कंपोस्ट किए गए पदार्थ को वर्मीबेड में भरने के 30 दिन बाद पलट कर पानी का छिड़काव करना चाहिए और फिर से जुट के गीली बोरो से ढंक देना चाहिए ।
● वर्मीबेड में पानी देना
वैसे तो वर्मीबेड में रोज पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है । लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर्मीकंपोस्टिंग की पूरी प्रक्रिया में लगभग 60% नमी बनाए रखना चाहिए । ध्यान रहे कि पानी को वर्मीबेड में थोड़ा-थोड़ा करके ही छिड़के ना कि उसमें बहा दे । वर्मीकंपोस्ट को निकालने 10 से 15 दिन पहले पानी छिड़कना बंद कर देना चाहिए।
वर्मी कंपोस्ट दो-तीन माह में बनकर तैयार हो जाता है । जब वर्मीबेड में ढेर पर वर्मी कंपोस्ट अच्छे से दिखने लगे तो समझ जाना चाहिए कि वर्मीकंपोस्ट बनकर तैयार हो गया है ।
● केंचुओं के प्रमुख रोग व शत्रु
केंचुओं में सामान्यता कोई रोग नहीं होती अगर अच्छे से वर्मीकंपोस्टिंग की जाए तो, लेकिन इनके कई दुश्मन होते हैं जैसे कि-चींटी, मेंढक, सांप, छिपकली आदि। अतः इनसे सुरक्षा करना जरूरी होता है।
– केंचुओं की चीटियों से सुरक्षा के लिए टांके यानीकि वर्मीबेड के चारों ओर एक पतली नाली बनाकर उसमें पानी भर देना चाहिए ताकि चीटियां इस भरे हुए पानी को पार ना कर पाए और वर्मी बेड तक ना पहुंच पाए।
● केंचुओं को बाहर निकालना
केंचुओं को वर्मीकंपोस्ट यानीकि केंचुआं खाद तैयार हो जाने के बाद अलग करना आवश्यक है ताकि इसे दोबारा से वर्मीकंपोस्टिंग में उपयोग किया जा सके । वर्मीकंपोस्ट लगभग 2 से 3 माह में बनकर तैयार हो जाता है । अतः वर्मीकंपोस्ट के उत्पादन के बाद टांके (वर्मीबेड) में विद्यमान केंचुओं को अलग करना पड़ता है इसे कई विधियों से अलग किया जाता है जैसे:-
(अ) ट्रेप विधि :- इसमें कंपोस्ट तैयार हो जाने के बाद कम्पोस्ट को निकालने (हार्वेस्ट) करने से पहले वर्मीबेड में गाय के ताजे गोबर से बने गेंद को वर्मीबेड के अन्दर 5 – 6 जगहों पर रख देना चाहिए । फिर लगभग 24 घंटे बाद इस गोबर के गेंद को बाहर निकाल देना चाहिए। इससे टांके में उपस्थित केंचुआ गोबर के गेंद में चिपक जाते हैं । इस चिपके हुए केंचुए को अलग करने के लिए गोबर की गेंदों को पानी भरे बाल्टी में डाला जाता है जिससे केंचुआं अलग हो जाता है । फिर इन केंचुओं को एकत्र कर लिया जाता है जिसे अगली वर्मीकंपोस्टिंग के लिए उपयोग किया जाता है ।
(ब) ढेर बनाकर केंचुएं को अलग करना :- इस विधि में तैयार वर्मीकंपोस्ट की छोटी-छोटी ढेर बना लिया जाता है । इससे सभी के केंचुएं ढेर के निचले हिस्से पर चली जाती है। और ऊपरी कंपोस्ट को हाथों से अलग कर लिया जाता है एवं नीचे के कंपोस्ट को जिसमें की केंचुआ मिला है उसे छानकर अलग कर लिया जाता है । वर्मीकंपोस्ट के उत्पादन के बाद एक टांके (वर्मीबेड) से लगभग 70 से 80 किलोग्राम केंचुए प्राप्त हो जाते हैं जिनका उपयोग अगली वर्मीकंपोस्टिंग में किया जाता है ।
● वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost) का भंडारण एवं पैकिंग
● वर्मीकम्पोस्टिंग के लाभ (Benefits of Vermicompost)
1. वर्मीकम्पोस्ट में पौधों के लिये सभी अनिवार्य पोषक तत्व पाए जाते हैं ।
2. वेर्मीकम्पोस में विभिन्न प्रकार के कृषि के लिए लाभदायक सूक्ष्मजीव पाए जाते है ।
3. पौधो के बढ़वार के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान है । यह पौधों में पत्तियों एवं नई शाखाओं के बढ़वार को प्रोत्साहित करता है।
4. वर्मीकम्पोस्ट से दुर्गन्ध नही आती अतः इसे आसानी से भण्डारित व आसानी से उपयोग किया जा सकता है।
5. वर्मीकंपोस्ट में केंचुएं के अण्डे पाए जाते है जिससे भूमि में केंचुओं की संख्या और गतिविधियां बढ़ जाती है ।
6. इससे मृदा की संरचना में सुधार होता है।
7. मृदा में वातन और जलधारण क्षमता को बढ़ाता है ।
8. मृदा क्षरण को रोकता है ।
9 . मृदा के PH मान को उदासीन करता है ।
10. मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाती है व जैविक पदार्थों के अपघटन को भी बढ़ाता है ।
11. वर्मीकंपोस्ट में बहुत से महत्वपूर्ण विटामिन्स, एन्जाइम तथा हार्मोन्स जैसे – आक्जिन्स आदि पाए जाते हैं ।
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