पौध प्रवर्धन क्या है? Plant Propagation in hindi | पौध प्रवर्धन की विधियां Free PDF

आज का यह टॉपिक आसान व बहुत ही महत्वपूर्ण है । आज हम लोग पढ़ेंगे और बहुत ही आसान भाषा में व प्रैक्टिकली समझेंगे की पौध प्रवर्धन क्या है ? (What is Plant Propagation in Hindi?) इसी टॉपिक में देखेंगे पौध प्रवर्धन का अर्थ, पौध प्रवर्धन की परिभाषा (Meaning and Definition of Plant Propagation), पौध प्रवर्धन के प्रकार कि – पौध प्रसारण/प्रवर्धन की विधियां या प्रकार कौन-कौन सी है? (Types of Plant Propagation) व पौध प्रवर्धन के क्या क्या लाभ है (Benefits of Plant Propagation), व क्या क्या हानियां है?

 

पौध प्रवर्धन (Plant Propagation in Hindi) क्या है ? पौध प्रवर्धन के विधियां

 

पौध प्रवर्धन (Plant Propagation in Hindi)

 

पौध प्रवर्धन का अर्थ | Meaning of Plant Propagation – 

पौध प्रवर्धन या पौध प्रसारण (Plant Propagation) को आसानी से समझे तो इसका अर्थ होता है पौधों की संख्या में वृद्धि करना यानी कि एक पौधे से एक, दो या उससे भी अधिक पौधे उपजाना या विकसित करना पौध प्रसारण या पौध प्रवर्धन (Plant Propagation) कहलाता है ।

जिस प्रकार प्रकृति में उपस्थित बाकी जीव – जंतु अपनी जनसंख्या में वृद्धि करते हैं ठीक उसी प्रकार पौधे में भी यह प्रकृति पाई जाती है ।

पौध प्रवर्धन पौधे स्वयं ही कर लेते हैं व इंसान भी कृत्रिम रूप से पौध प्रवर्धन कर सकते हैं । इसके बारे में हम आगे पड़ेंगे इसके लिए पढ़ते रहिए……

अब आपको पौध प्रसारण या पौध प्रवर्धन का अर्थ तो समझ में आ ही गया होगा तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं और पौध प्रवर्धन की कुछ परिभाषा देखते हैं –

 

पौध प्रवर्धन की परिभाषा | Definition of Plant Propagation –

 

● पौधों की संख्या में बढ़ोतरी करने की क्रिया को ही पौध प्रवर्धन कहते हैं ।

Plant Propagation is the process of multiplying the plants.

● पौध प्रवर्धन या पौध प्रसारण वह प्रक्रिया है जब नए पौधे की उत्पत्ति उसके बीज, पत्ती, तने, जड़ या पौधे के अन्य भागों से प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से होती है ।

(Plant Propagation is the process when a new plant is produced naturally or artificially from its plant parts, such as seed, leaf, Stem or other parts of the plant.)

देखा कैसे आसानी से समझ गए पौध प्रवर्धन को । इसी तरह पूरी पोस्ट ध्यान से पढ़िएगा इससे जुड़ी सभी बातें आसान भाषा में समझने वाले हैं…….

 

पौध प्रवर्धन के प्रकार | Types of Plant Propagation

 

पौधों का प्रवर्धन या प्रसारण दो तरीकों से होता है या दो तरीकों से किया जाता है – बीज द्वारा और पौधे के वानस्पतिक भागो द्वारा ।

लेकिन बहुत से ऐसे फल वाले पौधे हैं जिनमें बीज नहीं बनते या बीज नहीं पाए जाते हैं जैसे – केला, अनानास इत्यादि । जिसको हमेशा वानस्पतिक विधियों द्वारा प्रसारित किया जाता है । हम यहां पर दोनों तरीकों के बारे में पड़ेंगे…

 

1. बीज द्वारा प्रवर्धन या लैंगिक प्रवर्धन

2. वानस्पतिक प्रवर्धन या अलैंगिक प्रवर्धन 

 

1. लैंगिक प्रवर्धन या बीज द्वारा पौध प्रसारण (Sexual Propagation or Propagation By Seeds)

बीज की सहायता से विकसित पौधे या बीज की सहायता से तैयार किए गए पौधे बीजू पौधे कहलाते हैं । पौधे में नर गैमीट तथा मादा गैमीट भ्रूण का निर्माण करते हैं जो बीज में पाया जाता है । बीज नए पौधे उत्पादन करने के लिए तब तैयार होता है जब फल पूर्ण रूप से पक जाते हैं।

बहुत से पौधे ऐसे होते हैं जिसको केवल बीज द्वारा ही प्रसारित किया जा सकता है या ऐसे पौधे जिनमें वानस्पतिक प्रवर्धन नहीं किया जा सकता उनके लिए बीज द्वारा प्रवर्धन उपयोगी होता है ।

 

कृत्रिम रूप से बीज द्वारा पौध प्रवर्धन कैसे करते हैं ? – 

 

इसके लिए उस परिपक्व व स्वस्थ फल का चुनाव कर लिया जाता है जिस पौधे का प्रसारण करना होता है ।

● फल से सावधानी पूर्वक बीज निकालकर छाया में सुखा लेते हैं ।

● सही संख्या में पौध उत्पन्न करने के लिए बीज की अंकुरण शक्ति (Germination Test) व Seed Viability Test टेस्ट कर लेनी चाहिए ।

●इसके पश्चात अच्छी तरह से तैयार भूमि, गमले या क्यारियों में बीज बो देना चाहिए ।

● अब जब पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाये तो उसे तैयार भूमि में निश्चित गहराई व निश्चित दूरी पर लगा देना चाहिए ।

 

बीज द्वारा पौध प्रवर्धन के लाभ व हानियां –

 

बीज द्वारा पौध प्रवर्धन/पौध उत्पन्न करने के लाभ (Advantages of Sexual Propagation)

बीज द्वारा पौध प्रवर्धन के निम्नलिखित लाभ है –

 

(1) बीज द्वारा पौधे तैयार करना अथवा बीज द्वारा प्रवर्धन बहुत ही सरल विधि है ।

(2) बीज द्वारा पौधे तैयार करने में सफलता अधिक मिलती है ।

(3) इसमें खर्च भी कम होता है ।

(4) बीज द्वारा प्रवर्धित पौधे को प्रजनन कार्य (Breeding) के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

(5) बीज द्वारा प्रवर्धित पौधे दीर्घ आयु के होते हैं ।

(6) बीज द्वारा उत्पन्न किए गए पौधे कीट – बीमारियों व सूखा, जलमग्न आदि के लिए अधिक सहनशील होते हैं ।

(7) ऐसे पौधे जिनका वानस्पतिक प्रवर्धन नहीं किया जा सकता जैसे – मंगोस्टीन, फालसा, पपीता आदि को बीज द्वारा ही उत्पन्न किया जा सकता है ।

(8) प्रति पेड़ फलों की अधिक पैदावार होती है ।

(9) बीजू पौधे का उपयोग मूलवृन्त (Root Stock) के रूप में किया जाता है ।

 

हानियाँ – Disadvantages of Sexual Propagation 

(1) बीज द्वारा प्रवर्धित पेड़ अपने पैतृक वृक्ष के समान नहीं होते, ऐसे पौधे के गुण उनके पैतृक वृक्ष से भिन्न होते हैं ।

(2) बीज द्वारा प्रसारित किए गए पेड़ लंबे समय के बाद फल देना प्रारंभ करते हैं ।

(3) पेड़ बड़े व उनकी लंबाई अधिक होने के कारण उनमें काट – छांट व अन्य कर्षण क्रियाएं व दवाइयों का छिड़काव करना काफी मुश्किल होता है ।

(4) व्यवसाय में बीजू पौधे से जल्दी लाभ नहीं कमाया जा सकता है ।

 

 

2 वानस्पतिक प्रवर्धन (Asexual or Vegetative Propagation)

जब नए पौधे बीज के अलावा पौधे के किसी अन्य वानस्पतिक भाग जैसे – तना, जड़, पत्ती आदि के द्वारा तैयार किया जाता है, तो इस प्रकार के प्रवर्धन को वानस्पतिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation) कहते हैं ।

वानस्पतिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation) की बहुत सी विधियां हैं जिनके द्वारा नए पौधे तैयार किए जाते हैं जैसे – कलम (जड़ कलम, तना कलम, पत्ती कलम), लेयरिंग या दाब, ग्राफ्टिंग, इनार्चिंग, कलिकायन आदि । इसके प्रकार या वानस्पतिक प्रसारण की विधियों के बारे में हम अगले पार्ट अगले आर्टिकल में पड़ेंगे पूरी डिटेल से ।

वानस्पतिक प्रवर्धन, बीज द्वारा पौधे तैयार करने से अच्छी समझी जाती है । क्योंकि इस विधि से पैतृक पौधे के समान गुणों वाले पौधे तैयार किए जा सकते हैं, जो बीजू पौधे की अपेक्षा बहुत ही कम समय में पलने लगती है । और बहुत से फल वाले पौधे बीज रहित होते हैं जिसे वानस्पतिक विधियों से ही प्रसारित किया जा सकता है जैसे – केला, अनानास अंगूर इत्यादि ।

 

 

वानस्पतिक पौध प्रवर्धन के लाभ (Advantages of Vegetative plant Propagation)

(1) वानस्पतिक प्रवर्धन द्वारा तैयार पौधे, बीजू पौधे की अपेक्षा कम समय में बीज उत्पादन अथवा फलोत्पादन करने लगते हैं ।

(2) कुछ पौधों में विशिष्ट गुण पाए जाते हैं, ऐसी किस्मों को इन्हीं विधियों द्वारा विकसित किया या कायम रखा जा सकता है ।

(3) वानस्पतिक प्रसारण से पौधे पैतृक वृक्ष के समान गुणों वाले होते हैं ।

(4) कम गुणों वाले पौधे को उच्च गुणों वाले पौधे में परिवर्तित किया जा सकता है ।

(5) विभिन्न वानस्पतिक प्रवर्धन विधियों का प्रयोग करके अपनी इच्छानुसार पौधे विकसित किए जा सकते हैं ।

(6) कुछ पौधे बीज रहित होते हैं जैसे केला, अनानास, अंगूर आदि इन्हें वनस्पतिक प्रवर्धन विधियों द्वारा ही प्रसारित किया जाता है ।

(7) वनस्पतिक प्रवर्धन/प्रसारण से पौधे के विभिन्न दोष जैसे कीट, बीमारी, जलमग्नता, सूखा आदि को दूर किया जा सकता है या इसके प्रति प्रतिरोध या सहनशीलता का गुण विकसित किया जा सकता है ।

(8) वानस्पतिक प्रसारण से तैयार पौधों का आकार छोटा होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं ।

(9) वृक्षों का आकार छोटा होने से विभिन्न क्रियाएं जैसे – काट – छांट, कृन्तन, फलों की तुड़ाई, दवाइयों का छिड़काव आदि करना सरल व कम खर्चीला होता है ।

 

वानस्पतिक प्रवर्धन के हानियाँ (Disadvantages of Vegetative plant Propagation)

(1) इस विधि का प्रयोग नई किस्म बनाने के लिए नहीं किया जा सकता ।

2() बीज द्वारा पौधे तैयार करने की तुलना में खर्च अधिक होता है ।

(3) वानस्पतिक प्रवर्धन के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है ।

(4) वानस्पतिक प्रवर्धन से तैयार पौधे, बीजू पौधे की अपेक्षा कम आयु वाले होते हैं ।

(5) इनमें बीज द्वारा प्रवर्धित पौधे की अपेक्षा सफलता कम मिलती है।

 

(इन्हें भी पढ़िए) 👌
● वानस्पतिक पौध प्रवर्धन की विधियां (Vegetative Propagation)● कर्तन या कलम लगाना (Cutting)

● कृषि विज्ञान (Agriculture) के सभी विषयों के MCQs/Quiz

 

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Reference

उपरोक्त जानकारी हॉर्टिकल्चर की विभिन्न बुक व internet से लिया गया है । तथा हमारे टीम के द्वारा कुछ सुधार व परिवर्तन किया गया है ।

 

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