खरपतवारों का वर्गीकरण | Classification of Weeds in Hindi | Weeds Part 2

खरपतवारों की पहचान (Identification of Weeds)खरपतवार का नियंत्रण (Weed Control) करने के लिए खरपतवारों का वर्गीकरण (Classification of Weeds in Hindi) करना आवश्यक होता है । जैसे खरपतवारो का जीवन चक्र कितनी है ? खरपतवार एकवर्षीय है या बहुवर्षीय खरपतवार है, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार हैं या संकरी पत्ती वाले खरपतवार है, शुष्क क्षेत्र के खरपतवार हैं या जलमग्न भूमि के खरपतवार है, व खरपतवार कौन से जलवायु विशेष में उगने वाले हैं यह सब खरपतवारों का नियंत्रण करने के लिए जानना बहुत ही आवश्यक है ।

Classification of weeds in Hindi

यह पोस्ट पढ़ने से पहले आप लोगों से यह अनुरोध है कि इसका पहला पार्ट नही पढ़े हैं तो आप उसे भी Weeds Part – 1 पर क्लिक करके अभी पढ़ सकते हैं । जिसमें यह बताया गया है कि खरपतवार क्या है ?, खरपतवारों की क्या-क्या विशेषताएं होती है ? व खरपतवार के क्या क्या हानियां व क्या लाभ होती है ? 

 

 

खरपतवारों का वर्गीकरण (Classification of Weeds in Hindi)

 

खरपतवारों (weeds) को उनकी विभिन्न विशेषताओं जैसे – आयु, पत्तियों की आकृति, खरपतवारों का फसलों के साथ संबंध, जलवायु आदि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।

 

1. जीवन चक्र के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण :-

खरपतवार/Weeds की आयु या जीवन चक्र के आधार पर खरपतवारों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है । इस वर्गीकरण में अलग-अलग समय में अपनी जीवन चक्र पूर्ति करने के आधार पर खरपतवारों को अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है ।

 

(i) एकवर्षीय खरपतवार (Annual Weeds) :-

इस वर्ग में ऐसे खरपतवारों को सम्मिलित किया गया है जो अपना जीवन चक्र या बीजोत्पादन 1 वर्ष में या उससे भी पहले कर लेते हैं ।

एकवर्षीय खरपतवारों को फिर से दो उप भागों में बांटा गया है –

(a) खरीफ़ के खरपतवार :-  इसके अंतर्गत आने वाले खरपतवार खरीफ के मौसम या वर्षा के प्रारंभ में या जून-जुलाई में खरीफ की फसलों के साथ उग जाते हैं, व अपना जीवन चक्र सितंबर से अक्टूबर माह तक पूरा कर लेते हैं ।

उदाहरण – जंगली धान (Echinochloa colona), जंगली चौलाई (Amaranthus viridis), मकोय (Solanum nigrum), मोंथा (Cyperus rotundus), दूधी (Euphorbia spp.) आदि ।

 

(b) रबी के खरपतवार :- रबी के खरपतवार सितंबर-अक्टूबर माह में रबी के फसलो के साथ उग जाते हैं व अपना जीवन चक्र अप्रैल के महीने तक पूर्ण कर लेते हैं ।

 उदाहरण – इस वर्ग में कृष्णनील (Anagallis arvensis), बथुआ (Chenopodium album), गेहूंसा या गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा (Phalaris minor) आदि खरपतवार आते हैं ।

 

(ii) द्विवर्षीय खरपतवार (Biennial Weeds) :-

द्विवर्षीय खरपतवार के अंतर्गत ऐसे खरपतवार आते हैं जो अपना जीवन चक्र 2 वर्षों में पूरा करते हैं । ऐसे खरपतवार प्रथम वर्ष में अपना वानस्पतिक वृद्धि करते हैं तथा द्वितीय वर्ष में बीज उत्पादन करते हैं व अपना जीवन चक्र पूर्ण करते हैं ।

उदाहरण –  जंगली गाजर (Daucus spp.), जंगली गोभी (launaea asplenifolia) आदि ।

 

(iii) बहुवर्षीय खरपतवार (Perennial Weeds) :-

इस वर्ग के खरपतवार 2 से अधिक वर्षों में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं इस वर्ग में आने वाले अधिकतर खरपतवारों का प्रवर्धन (Propagation) उसके वानस्पतिक भागो जैसे – ट्यूबर, राइजोम,  बल्ब आदि भागों द्वारा होता है ।

बहु वर्षीय खरपतवारों को फिर से दो उप भागों में विभाजित किया गया है –

(a) काष्ठीय खरपतवार (Woody Weeds) – इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले खरपतवारों में लकड़ी होती है या कहे तो तने या शाखाएं कठोर होते हैं व ऐसे खरपतवार बहूवर्षीय झाड़ियां होते हैं ।

उदाहरण – जरायन (Lantana camara), झरबेरी (Ziziphus nummularia) आदि ।

(b) शाकीय खरपतवार (Herbacious weeds) – ऐसे बहुवर्षीय खरपतवार जो शाकीय होते हैं अर्थात इसके तने व शाखायें मुलायम होते हैं ।

उदाहरण – अमरबेल (Cuscuta species), हिरनखुरी (Convolvulus arvensis) आदि ।

 

2. बीजपत्र के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण :-

बीचपत्रों के आधार पर खरपतवारों को दो भागों में रखा गया है – एकबीजपत्री खरपतवार और द्विबीजपत्री खरपतवार ।

(i) एकबीजपत्री खरपतवार (Monocot) :- इस वर्ग के खरपतवारों के बीज , एकबीजपत्री होते है यानिकि इन खरपतवारों के बीज दो पत्रों अथवा दो भागों में विभाजित नही होता , जैसे दालों में होता है ।

उदाहरण – मोथा (Cyperus rotundus), दुबघास (Cynodon dactylon), जंगली धान (Echinochloa colona), गेहूंसा (Phalaris minor) आदि ।

(i) द्विबीजपत्री खरपतवार (Dicot) :- इस वर्ग के खरपतवारों के बीज द्विबीजपत्री होते हैं , यानिकि इसके बीज को दो पत्रो या दो दालों में विभक्त किया जा सकता है ।

उदाहरण – बथुआ (Chenopodium album), सत्यानाशी (Argemone mexicana), हिरनखुरी (Convolvulus arvensis), कृष्णनील (Anagallis arvensis), जंगली चौलाई (Amaranthus viridis) आदि ।

 

3. पत्तियों के बनावट के आधार पर Weeds का वर्गीकरण :-

खरपतवारो के पत्तियों के आकृति अथवा बनावट के आधार पर खरपतवारो को दो वर्ग में वर्गीकृत किया गया है –

(i) संकरी पत्ती वाले खरपतवार (Narrow leaved weeds) :- दूबघास, जंगली धान, गेहूंसा, जंगली जई आदि ।

(ii) चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार (Broad leaved weeds) :- हिरनखुरी, बथुआ, कृष्णनील, मकोय, जंगली चौलाई इत्यादि ।

 

 

4.जलवायु एवं मृदा के आधार पर वर्गीकरण :- 

इस वर्गीकरण के अंतर्गत ऐसे खरपतवारों को सम्मिलित किया गया है जो विशेष भूमि व जलवायु में उगते हैं व अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं ।

इसे निम्न भागों में फिर से विभाजित किया गया है –

(i) शुष्क क्षेत्र या रेगिस्तानी खरपतवार :-  इस वर्ग के खरपतवार कम पानी में भी अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं । इसकी यह विशेषता होती है कि पौधे कांटेदार, कम पत्तियों वाली व गहरी जड़ वाली होती है

उदाहरण – नागफनी, झरबेरी, ज्वासा आदि ।

 

(ii) जलमग्न भूमि के खरपतवार :- इस वर्ग के खरपतवार अधिकतर नदी, तालाबों, पोखरों में अथवा उन्हीं स्थानों पर उगते हैं जहां हमेशा पानी भरा रहता है ।

उदाहरण – जलकुंभी, हाइड्रिला, जंगली धान आदि ।

 

(iii) कृषित भूमियों के खरपतवार :-  इस वर्ग के अंतर्गत आने वाले खरपतवार उन जगहों पर उगता है जहां खेती होती है या कहे तो फसलों के साथ उठते हैं और फसलों को प्रभावित करते हैं ।

उदाहरण – बथुआ, गेहूंसा, मोथा, सैंजी, जंगली चौलाई आदि खरपतवार जो फसलों के साथ उगते हैं ।

 

(iv) अकृषित क्षेत्र के खरपतवार :-  इस वर्ग के खरपतवार ऐसे क्षेत्रों में उगते हैं जहां पर खेती नहीं होती । जैसे सड़क के किनारे, औद्योगिक क्षेत्र में या खाली पड़े अन्य क्षेत्रों में ।

उदाहरण – गाजर घास, लेन्टाना केमरा, धतूरा, कांस आदि ।

 

 

5. फसल – खरपतवार संबंध या सापेक्ष स्थिति के आधार पर वर्गीकरण :-

 

(i) निरपेक्ष खरपतवार (Absolute Weeds) :- वे सभी प्रकार के खरपतवार जो फसल उपज को कम कर देते हैं । इसमें सभी प्रकार के खरपतवार आते हैं चाहे वह एकवर्षीय, द्विवर्षीय या बहूवर्षीय हो ।

उदाहरण – बथुआ, सत्यानाशी, मोथा, गाजर घास, कृष्णनील, हिरणखुरी आदि ।

 

(ii) सापेक्ष खरपतवार (Relative Weeds) :- जब किसी खेत में मुख्य फसल के अलावा दूसरी फसल बिना बोयें उग जाए तो उसे सापेक्ष खरपतवार कहते हैं ।

उदाहरण – जैसे गेंहू के खेत में सरसों या जौ या फिर चने के खेत में मटर या गेहूं ।

 

(iii) अवांछित खरपतवार (Rogue Weed) :- जब किसी फसल के खेत में उसी फसल की दूसरी किस्म उग जाए तो उसे अवांछित खरपतवार कहते हैं ।

उदाहरण – मान लो अगर आप गेहूं की कल्याण सोना किस्म की खेती करते हैं और उसी खेत में इसके साथ गेहूं की सोनालिका किस्म उग जाए तो सोनालिका गेहूं का पौधा अवांछित खरपतवार (Rogue Weed) कहलायेगा ।

और ऐसे अवांछित खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए इसे उखाड़कर अलग किया जाता है तो इस प्रक्रिया को रोगिंग (Roguing) कहते हैं ।

 

(iv) नकलची खरपतवार (Mimicry Weeds) :-  ऐसे खरपतवार मुख्य फसलों से बाह्य आकारिकी में मिलते जुलते दिखते हैं अर्थात फसलों के समान ही दिखाई देते हैं जिससे ऐसे खरपतवारो को पहचानना मुश्किल होता है ।

जैसे गेहूं के खेत में गेहूंसा (गुल्ली डंडा) व धान के खेत में सांवा ।

 

(v) आपत्तिजनक खरपतवार (Objectionable Weeds) :- इस वर्ग में ऐसे खरपतवार आते हैं जिनके बीज अगर मुख्य फसल के बीज में मिल जाए तो उसे अलग करना बहुत ही कठिन होता है ।

उदाहरण – सरसों के बीच में सत्यानाशी का बीज या बरसीम में कासनी आदि ।

 

(vi) स्वैच्छिक खरपतवार (Volunteer Weeds) :- अगर कभी मुख्य फसल में पहले सीजन में उगाया गया फसल उग जाए तो उसे स्वैच्छिक खरपतवार Volunteer weeds कहते हैं ।

 

(vii) परजीवी खरपतवार (Parasitic Weeds) :- इस वर्ग के अंतर्गत ऐसे खरपतवार आते हैं जो अपने जीवन चक्र पूरा करने के लिए दूसरी फसल पर आश्रित अथवा परजीवी होते हैं ।

जैसे – रिजका पर अमरबेल व तम्बाकू पर ओरोबेंकी परजीवी खरपतवार होते है ।

 

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6. प्रवर्धन के आधार पर खरपतवारों का वर्गीकरण :-

(i) बीज से उत्पन्न होने वाले खरपतवार :- इस वर्ग के खरपतवारों का प्रसारण अथवा प्रवर्धन सिर्फ बीजों के माध्यम से ही होता है यानिकि नए पौधे सिर्फ इनके बीजों से ही प्राप्त हो सकते हैं ।

जैसे गेहूंसा, सत्यानाशी, कृष्णनील आदि ।

 

(ii) वानस्पतिक भाग से प्रवर्धित (Propagate) होने वाले खरपतवार :- ऐसे खरपतवार जिनका प्रवर्धन वानस्पतिक भागो जैसे – जड़, तना, पत्ती आदि भागों द्वारा ही होता है इसके अंतर्गत आते हैं ।

जैसे दूब घास, मोथा आदि ।

 

(iii) बीज और वानस्पतिक दोनों भागों से प्रवर्धित होने वाले खरपतवार :-  इस वर्ग के अंतर्गत ऐसे खरपतवार आते हैं जिनका प्रवर्धन बीज द्वारा तो होता ही है साथ में इसका प्रवर्धन पौधे के विभिन्न वानस्पतिक भागों से भी होता है ।

 

 

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