परिचय- Subsistence Farming
कृषि की दुनिया में, एक ऐसी प्रथा है जो इतिहास और संस्कृति में गहराई से निहित है – जिसका नाम है निर्वाह खेती (Subsistence farming)। इस लेख में, हम निर्वाह खेती (Subsistence farming in hindi) के अर्थ, परिभाषा, विशेषताओं, गुणों और अवगुणों (Meaning Definition Characteristics and Merits and Demerits of Subsistence farming) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
निर्वाह खेती का अर्थ (Meaning of Subsistence farming)
निर्वाह खेती (Subsistence farming) एक प्रकार की खेती है जिसमें उगाई गई लगभग सभी फसलें या पशुधन का उपयोग किसान और किसान के परिवार के भरण-पोषण (निर्वाह) के लिए किया जाता है। बिक्री या व्यापार के लिए किया जाता, यदि कुछ अधिशेष बचता है तो ही बिक्री के बारे में सोच सकते हैं। निर्वाह खेती में किसान आम तौर पर बहुत कम सरल उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करते हैं, और वे अक्सर पारंपरिक तरीकों से करते हैं जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। वे मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए फसल चक्र और अन्य तकनीकों का भी अभ्यास कर सकते हैं।
निर्वाह खेती अक्सर विकासशील देशों में की जाती है, जहां यह आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए खाद्य उत्पादन का प्राथमिक साधन है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे कुछ विकसित देशों में भी इसका अभ्यास छोटे किसानों द्वारा किया जाता है जो अपने उपभोग के लिए फसलें उगाते हैं।
निर्वाह खेती की परिभाषा | Definition of Subsistence farming
‘निर्वाह खेती (Subsistence farming), जिसे अक्सर निर्वाह कृषि (Subsistence Agriculture) के रूप में जाना जाता है, खेती की एक विधि है जहां व्यक्ति या परिवार मुख्य रूप से अपने स्वयं के उपभोग के लिए भोजन का उत्पादन करने के लिए भूमि के छोटे भूखंडों पर खेती करते हैं। लाभ कमाने के लक्ष्य वाली व्यावसायिक कृषि के विपरीत, निर्वाह खेती तत्काल जरूरतों को पूरा करने और स्थानीय जीविका बनाए रखने पर केंद्रित है।’
‘Subsistence farming, often known as subsistence agriculture, is a method of farming where individuals or families cultivate small plots of land to produce food primarily for their own consumption. Unlike commercial agriculture that aims for profit, subsistence farming focuses on meeting immediate needs and maintaining local sustenance.’
निर्वाह खेती की विशेषताएं | Characteristics of Subsistence Farming
निर्वाह खेती कई विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन नीचे दिया गया है, जो इसे अन्य कृषि पद्धतियों से अलग करती है-
1. छोटी जोत – निर्वाह खेती करने वाले किसानों के पास आम तौर पर छोटी जोत होती है, जो अक्सर कुछ एकड़ के या उससे भी कम होती है। इससे उनके द्वारा उत्पादित भोजन की मात्रा सीमित हो जाती है जो उसके परिवार के जीविका के काम आती है।
2. न्यूनतम प्रौद्योगिकी या तकनीक का प्रयोग – निर्वाह कृषि में आम तौर पर सरल, सस्ते उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करते हैं, जैसे बुनियादी उपकरणों, हस्त चलित उपकरण, हल आदि, या कहें तो आधुनिक तकनीकों का उपयोग नही किया जाता।। इससे उनकी उत्पादकता सीमित हो जाती है।
3. पारिवारिक या स्थानीय उपभोग – निर्वाह खेती से उत्पादित फसलों का उपभोग पारिवारिक स्तर पर की जाती है।
4. शारीरिक श्रम – इस प्रकार की खेती की गतिविधियाँ अक्सर श्रम-प्रधान होती हैं, जिसमें पारंपरिक उपकरणों और तरीकों का उपयोग किया जाता है। इसमें अधिकतर स्वयं परिवार के सदस्य मजदूरी में अपनी भूमिका निभाते हैं।
5. पारंपरिक तरीके – निर्वाह खेती में किसान अक्सर पारंपरिक तरीकों पर उपयोग करते हैं जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। ये तरीके कुछ परिस्थितियों में प्रभावी हो सकते हैं।
6. कम पैदावार – आम तौर पर निर्वाह खेती में कम पैदावार होती है, जिसका अर्थ है कि वे वाणिज्यिक किसानों की तुलना में प्रति यूनिट भूमि पर कम भोजन उत्पादन करते हैं। इससे उनकी खुद की भोजन की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है।
7. फार्म पावर – इस प्रकार की खेती में पशु ही फार्म शक्ति का प्राथमिक स्त्रोत होते हैं।
8. विविध फसलें – जहाँ व्यापारिक खेती में मुख्य फसल की खेती पर जोर दिया जाता है वहीं निर्वाह खेती में परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विविध फसलों की खेती कर सकते है। संतुलित आहार सुनिश्चित करने और फसल की विफलता के जोखिम को कम करने के लिए किसान विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती करते हैं।
9. आय – निर्वाह खेती में आय पर ध्यान नहीं दिया जाता इस प्रकार की खेती का प्राथमिक उद्देश्य परिवार का भरण पोषण होता है। इस प्रकार की खेती करने वाले किसान के आय का मुख्य स्त्रोत खेती के अलावा कुछ और होता है।
निर्वाह खेती के लाभ | Merits of Subsistence farming
1. खाद्य सुरक्षा – निर्वाह खेती में किसान अपने स्वयं के भोजन का उत्पादन करके, अपने परिवार के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है। किसान खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव या सूखे या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली हानि के प्रति कम संवेदनशील होते है।
2. आत्मनिर्भरता – आत्मनिर्भरता: निर्वाह खेती करने वाले किसान अक्सर आत्मनिर्भर होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपने भोजन या अन्य जरूरतों के लिए बाहरी बाजारों पर निर्भर नहीं होते हैं। जहाँ बाजारों में ऐसे उत्पादों के कीमतों में उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं, उन क्षेत्रों में यह एक बड़ा लाभ हो सकता है।
3. पर्यावरणीय स्थिरता – कृषि के अन्य पद्धति की तुलना में निर्वाह खेती पर्यावरण की दृष्टि से अधिक टिकाऊ हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें आमतौर पर उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे रासायनों का कम इनपुट का उपयोग किया जाता है, और यह अक्सर पारंपरिक खेती के तरीकों पर निर्भर करता है जो पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए काफी लाभदायक होती है।
4. संस्कृति का संरक्षण – निर्वाह खेती पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक परंपराओं और ज्ञान को बनाए रखती है।
निर्वाह खेती से हानि | Demerits of Subsistence farming
1. कम उत्पादकता – निर्वाह खेती में आम तौर पर कम पैदावार होती है, जिसका अर्थ है कि किसान वाणिज्यिक खेतों की तुलना में प्रति यूनिट भूमि पर कम भोजन पैदा करते हैं।
2. सीमित संसाधन – निर्वाह खेती करने वाले किसानों के पास अक्सर भूमि, पानी और प्रौद्योगिकी जैसे संसाधनों तक सीमित पहुंच होती है। इससे उनके लिए अपनी पैदावार बढ़ाना या अपनी खेती से लाभ कमाना मुश्किल हो सकता है।
3. कम आय – निर्वाह खेती करने वाले किसानों की आम तौर पर कम आय होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जो खाद्य उत्पादित करते हैं वह उनके पारिवारिक आवश्यकताओं के लिए ही होते हैं, बेचने के लिए बहुत कम अतिरिक्त भोजन का उपयोग करते हैं।
4. धीमी तकनीकी अपनाना – निर्वाह खेती की पारंपरिक प्रकृति आधुनिक तकनीक को अपनाने में बाधा बन सकती है।
5. जोखिम के प्रति संवेदनशीलता – खेती में अक्सर सूखा, बाढ़ और कीट-व्याधियों जैसे जोखिम की संभावना होती हैं। ये घटनाएँ फसलों और पशुधन को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जिससे किसानों के लिए भोजन की कमी और वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
निष्कर्ष
हमने इस लेख में पढ़ा कि निर्वाह कृषि (Subsistence farming) क्या होती है? निर्वाह खेती की विशेषताएं व उसके लाभ व हानि क्या क्या होते हैं? जिसमे हमने जाना कि निर्वाह खेती पुरानी या सांस्कृतिक कृषि पद्धति का एक प्रतीक है। हालाँकि आज की गतिशील दुनिया में इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
निर्वाह खेती के फायदे और नुकसान दोनों हैं। निर्वाह खेती करने या न करने का निर्णय जटिल है जो कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें किसान और उनके परिवार की विशिष्ट ज़रूरतें, संसाधनों की उपलब्धता और पर्यावरणीय जोखिम और अवसर शामिल हैं।
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