Soil Formation – मिट्टी कैसे बनती है? आखिर मृदा का निर्माण कैसे होता है? पूरी जानकारी

परिचय –

आज मै आपके साथ एक दिलचस्प टॉपिक पर चर्चा करने वाला हूं। और वह टॉपिक है, soil formation अर्थात मिट्टी के बनने की प्रक्रिया।

जी हां मैं उसी मिट्टी की बात कर रहा हूं जिसमें आप और मैं अपने बचपन में लोट पोट होकर खेलते थे, वही मिट्टी जिसमे किसान अन्न उगता है, और जिसके ऊपर हम सभी लोग घर बना कर रहते हैं।

क्या आपने कभी सोचा है आखिर ये मिट्टी किस चीज से बनी है, कैसे बनी है। अगर ये नहीं होती तो क्या होता ?

आपके इन्ही सवालों को ध्यान में रखते हुए मैंने इस ब्लॉग पोस्ट को तैयार किया है। जिसे पढकर आप अपने सवालों का जवाब जान सकते हैं।

Soil Formation

 

मृदा निर्माण क्या है? (What is soil formation) 

soil के बनने के प्रोसेस को मृदा निर्माण कहते हैं। मृदा निर्माण (soil formation) के अंतर्गत – soil की उत्पत्ति कैसे हुई है ?, यह कौन से पदार्थ से बनी है ? तथा यह किस प्रकार के process से गुजरकर बनी है ? और ऐसे कौन – कौन से कारक है जो soil के निर्माण में सहायता प्रदान करते हैं? इन सभी पहलुओं का अध्ययन मृदा निर्माण के अंतर्गत किया जाता है।

मृदा उत्पत्ति क्या है ? (What is soil genesis)

चट्टानों का भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों द्वारा मृदा रूप में बदलना soil genesis कहलाता है।

अर्थ क्रस्ट (Earth Crust) में पाई जाने वाली ठोस चट्टानें भौतिक, रासायनक तथा जैविक factors के कारण छोटे-बड़े टुकड़ों में टूट जाती है। और कुछ समय बाद यह धीरे-धीरे और भी ज्यादा छोटे-छोटे बारीक टुकड़ों में टूट कर चूर्ण-चूर्ण हो जाती है।

चट्टानों के अत्यधिक चूर्ण-चूर्ण ही जाने पर छोटे-छोटे पार्टिकल्स वाले रॉ मटेरियल का निर्माण होता है। और अन्त में इस रॉ मटेरियल को soil forming process द्वारा मृदा में बदल दिया जाता है। इस प्रकार से मृदा की उत्पति होती है।

अतः हम कह सकते हैं कि चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट कर मृदा में बदलने की प्रक्रिया को मृदा की उत्पत्ति (soil genesis) कहते हैं।

 

मृदा निर्माण कैसे होता है?
How soil formed?

मृदा की उत्पत्ति का निर्माण प्रायः दो चरणों में होती है-

1) अपक्षय (weathering) – इसमें मूल चट्टानों से raw material का निर्माण होता है।

2) प्रोफाइल का विकास -(development of profile) इसमें अपक्षय से प्राप्त Raw material का मृदा पिंड में रूपांतरण होता है।

 

MECHENISM OF SOIL FORMATION

1) प्रथम चरण – अपक्षय (weathering)

भू-पपड़ी या जिसे अर्थ क्रस्ट भी कहते हैं वहां की ठोस चट्टाने जैसे कि – आग्नेय चट्टान, अवसादी चट्टान और कायांतरित चट्टाने वायमुडंल की क्रिया द्वारा टूटने लगती है। इनके टूटने से छोटे- बड़े टुकड़ों वाली मलबा तैयार हो जाती है जो ढीली, असगंठित एवं अकार्बनिक होती है जिसे पेरैंट मटेरियल या रिगोलिथ कहतेहैं।

रिगोलिथ के नीचे ठोस चट्टाने रहती है। इन चट्टानों के टूटने का सिलसिला लगातार जारी रहता है। फलस्वरुप रिगोलिथ की मोटाई धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। यह पेरेंट मटेरियल/रिगोलिथ weathering process के कारण लगातार अत्यंत छोटे छोटे टुकड़ों में टूटती रहती है।

अपक्षय (weathering) के बाद जो पदार्थ प्राप्त होता है उसे raw material कहते हैं जो अगले चरण में soil forming process के द्वारा मृदा में बदल दी जाती है।

एक मिनट –

अभी आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि अपक्षय के बाद जो प्रोडक्ट बनता है उसे तो मदृा कहते हैं हमने यही पढ़ा और सुना है लेकिन आप इसे रॉ मटेरियल कह रहे हैं!

ऐसा क्यों!

देखो यार ऐसा है कि अगर मैं 10 मंजिला इमारत जितना विशाल पत्थर को चूर्ण-चूर्ण कर दूं तो इससे जो

मटेरियल मुझे प्राप्त होगा उसे हम मृदा नहीं कहेंगे, बावजदू इसके कि मृदा का निर्माण पत्थर के चूर्ण से ही होता है, फिर भी हम इसे मृदा नहीं कहेंगे। क्योंकि मृदा में कई तरह की विशषेताएं पाई जाती है जो इस पत्थर के चूर्ण में नहीं पाई जाती है,

जैसे की –

1. मृदा में कई प्रकार के हाॅरीजोंस पाए जाते हैं।

2. मृदा में सॉयल प्रोफाइल पाया जाता है।

3. कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है।

4. कई प्रकार के सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं।

5. मृदा में ठोस , द्रव्य और गैस तीनों अवस्थाएं पाई जाती है।

ये सभी विशषेताएं हमारे द्वारा तैयार 10 मंजिला पत्थर के चूर्ण में देखने को नहीं मिलता है।

इसीलिए हम इसे Soil नहीं कह सकते हैं।

Question – तो ये विशषेताएं कब विकसितहोंगी ! –

Answer – जब इस पत्थर के चूर्ण में soil forming process विशषे प्रकार की क्रियाएं करेगी तो धीरे-धीरे ओवरऑल द ईयर ये सब विशषेताएं विकसित होती जाएगी और कई सालों बाद उचित प्रकार के मृदा का निर्माण सम्पन्न होगा।

यह प्रोसेस कैसे होता है? आपको यह जानना है, तो आगे पढ़ते रहिए क्योंकि अगले चरण में मै इसी टॉपिक पर चर्चा करने वाला हूं। I Hope You Enjoy Reading..

 

2) द्वितीय चरण –
मृदा प्रोफाइल का विकास (development of soil profile )

आपने पिछले स्टेप में पढ़ा था कि पहला चरण विखण्डन (disintegration) तथा विच्छेदन (decomposition) वाली विनाशकारी चरण है, जिसमें चट्टान टूटकर raw material में परिवर्तित हो जाता है।

लेकिन पहले चरण के विपरित, द्वितीय चरण उद्भभव (evolution) वाली निर्माणकारी (Constructive) phase है।

ऊपर दिए Heading से यह साफ पता चल रहा है कि इस चरण में सॉयल प्रोफाइल का विकास होता है। तो आइए अब यह जानते हैं कि आखिर यह प्रक्रिया कैसे होता हैऔर किसके द्वारा किया जाता है।

Let start –

Profile development process –

पहले चरण में चट्टानों के अपक्षय (weathering) से जो raw material का निर्माण हुआ था वह raw material द्वितीय चरण में transporting agent द्वारा बहाकर अन्यत्र ले जाया जाता है।

द्वितीय चरण में इस weathered raw material की 90% मात्रा को transporting agent जैसे कि – जल, वायु, बर्फ द्वारा एक स्थान से बहाकर दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है और वहां के earth surface पर फैला दिया जाता है।

यह प्रक्रि या कई सैकड़ों वर्षो तक चलती रहती है। पहले साल एक लेयर बिछती है फिर दूसरे साल दूसरी लेयर बिछती तथा ऐसे ही साल दर साल लेयर्स के रूप में raw material का जमाव धीरे-धीरे होते रहता है।

जब इस रॉ मटेरियल का जमाव हो जाता है तो फिर इसमें दो चीजें होती है –

1) विशषे प्रकार के horizontal soil horizones का निर्माण होता है और

2) विशषे प्रकार के soil profile का विकास होता है।

इन साॅयल हॉरिजोंस एंड सॉयल प्रोफाइल को निर्मित या विकसित करने का कार्य कुछ विशषे प्रकार के soil forming processes द्वारा सम्पन्न होती है।

उदाहरण 1) Humification एक तरह का soil forming process है जिससे मृदा की सतह पर “O” horizone का निर्माण होता है।

उदाहरण 2)लेटेराइजेशन (Laterisation) भी एक तरह का forming process है जिससे लेटराइट साॅयल का निर्माण होता है।

जब अतं में, सॉयल में प्रोफाइल का डवेलपमेंट हो जाता है तो इसे true soil या वास्तविक मृदा कहते हैं।

इसीलिए प्रायः कहा जाता है कि मृदा प्रोफाइल का विकास ही मृदा उत्पत्ति /soil formation है।

बचा 10% raw material उसी स्थान पर पड़े रहता है जो सैकड़ों वर्षो तक एक ही स्थान पर स्थिर रहता है। इस दौरान soil forming processes के द्वारा यह raw material भी धीरे-धीरे सॉयल में परिवर्तित  कर दिया जाता है।

संक्षिप्त विवरण –

short में कहूं तो, raw material का जब जमाव हो जाता है तो soil forming processes द्वारा पहले horizones का निर्माण होता है फिर होरीज़ोंस से प्रोफाइल का निर्माण होता है, और यह प्रोफाइल धीरे-धीरे विकसित होकर वास्तविक मृदा का निर्माण करती है। प्रोफाइल के विकास से मृदा में, soil characteristics का निर्माण होता है।

 

मृदा निर्माण प्रक्रियाएं-
Soil forming processes-

1) प्राथमिक प्रक्रियाएं (fundamental process)

Humification

Eluviation

illuviation

Accumulation

Horizonation

2) विशिष्ट प्रक्रियाएं (Special pedogenic process)

A) intrazonal pedogenic process –

Calcification & Gypsification

Decalcification

Podozolization

Laterization

B) zonal pedogenic process –

Gleization

Salaination

Solonization

Solodization

Pedoturbation

 

इन प्रक्रियाओंका विस्तृत वर्णन –

[1] प्राथमिक प्रक्रियाएं (Fundamental process)

मृदा निर्माण की प्राथमिक प्रक्रियाओं से मृदा में विशषे प्रकार के horizons का निर्माण होता है जैसे –“O”horizon.

प्राथमिक प्रक्रियाओं में निम्न प्रकार के Soil forming process प्रमुख हैं-

1) Humification

ह्यूमस बनने की प्रोसेस को Humification कहते हैं।

in english – decomposition of organic matter to form humes is called humification.

यह प्रोसेस मृदा की सतह पर humus परत जिसे “O” horizone कहते हैं, बनाने में सहायक होती है।

Humification की प्रक्रिया –

पेड़ पौधों की पत्तियां तथा उनकी सुखी डालियांऔर मृतक जीव – जन्तुओ का शरीर soil surface पर गिरकर सड़ने लगती है और सड़कर decomposed हो जाती है।

कार्बनिक पदार्थों के decomposition के बाद humus का निर्माण होता है। इन कार्बनिक पदार्थों के विच्छेदन (decomposition) को तथा decomposition के बाद बने कार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण (synthesis) को संयुक्त रूप से humification process कहते हैं ।

महत्वपूर्ण तथ्य –

सबसे रोचक बात तो यह है कि humification process के द्वारा बनने वाली “O” horizon केवल वन भूमियों (forest land) में पाई जाती है। खेती करने वाली भूमियों में यह हॉरिजोन अनुपस्थित होता है।

इस हॉरिजोन की विशषेताएं plant material के अवशेष की प्रकृति , इनके decomposition और decomposition की बाद बने नवीन कार्बनिक यौगिकों के synthesis पर निर्भर होती है।

हॉट एंड ह्यूमिड क्लाइमेट में सूक्ष्म जीवों की अत्यधिक सक्रियता के कारण कार्बनिक पदार्थों का विच्छेदन (decomposition) शीघ्र होता है और humus एकत्रित नहीं होता है।

जब पानी इस हॉरिजोन से होकर गुजरता है तो उसमें उपस्थित कुछ कार्बनिक अम्लों को पानी में घोलकर नीचे की सतहों में ले जाता है और “A” Horizon तथा “B” horizon कि विकास को प्रभावित करता है।

 

2) Eluviation

Upper horizon से अवयवों (constituent) का percolation द्वारा leach out होकर निचली horizon में आने की प्रक्रिया को eluviation कहते हैं।

in English– removal of constituents from upper horizon is called eluviation.

A’ horizon में उपस्थित पोषक तत्व, लवण और sisqui – ऑक्साइड पानी में घुल कर ‘A’ horizon से ‘B’ horizon मैं चले जाते हैं।

Eluviation दो प्रकार का होता है

(A) Mechanical Elevation

इसमें मृदा के महीन पदार्थ मुख्य रूप से क्ले नीचे चली जाती है।

जब यह बहुत अधिक होती हैं तो प्रोफाइल के ‘A’ horizon में बालू/sand और ‘B’ horizon में महीन पदार्थ (fine material) के जमा हो जाने से एक सघन परत बन जाती है।

(B) Chemical Eluviation

इसमें मृदा के कोलाॅयडी जटिलों का आंशिक रूप से decomposition होता है। इस प्रकार decomposed material का कुछ भाग नीचे की सतहों में चला जाता है तथा शेष भाग ऊपरी सतह में रह जाता है।

महत्वपूर्ण बिंदु –

चूंकि ‘A’ horizon से अवयव remove होते हैं इसलिए A horizon को eluviation horizon कहते हैं।

 

3) illuviation

अवयवों (constituents) का lowar horizon में deposition, illuviation कहलाता है।

in English,- accumulation/deposition of constituents in lower horizon is called illuviation.

ऊपरी horizon से जो अवयव (constituents) remove हुए थे। वे अवयव B horizon में आकर एकत्रित हो जाते हैं।

नोट – चूंकि B horizon में अवयव एकत्रित होते है इसलिए B horizon को illuviation horizon कहते हैं

Eluviation and illuviation process के द्वारा पॉडजोल प्रोफाइल का निर्माण होता है ।

 

4) Accumulation

मृदा निर्माण के दौरान मृदा की पृष्ठ सतह पर खनिज या जैव पदार्थ का संचयन, accumulation कहलाता है।

accumulation की प्रक्रिया eluviation एवं illuviation के द्वारा होती है। लेकिन कई बार ये प्रक्रिया बिना eluviation और illuviation के भी हो सकती है।

मृदा की सतह पर मूल द्रव्य का निक्षेपण/illuviation, accumulation के फलस्वरुप हो सकता है। इस प्रकार के illuviation process से ‘C’ Horizon का निर्माण होता है।

मृदा प्रोफाइल में Oi, Oe तथा Oa आदि horizon का विकास मात्र जैव पदार्थों के upper surface पर accumulation के फलस्वरुप होता है।

 

5) Horizonation

Soil को vertically काटने पर soil में different – different प्रकार के individual soil layers पाए जाते हैं इन लेयर्स को Soil horizon कहते हैं।

सॉयल में इन horizons के बनने की प्रक्रिया को ही Horizonation कहते हैं

सामान्यतः सॉयल में 5 Horizons स्वीकृत किए गए हैं जो निम्नानुसार हैं-

1. ‘O’ horizon

2. ‘A’ horizon

3. ‘E’ horizon

4. ‘B’ horizon

5. ‘C’ horizon

नोट

कई किताबों में प्रमुख हॉरिजोंस की संख्या केवल 4 बताई गई है कि ‘E’ हॉरिजोन को प्रमुख हॉरिजोंस में नहीं गिना जाता है । ऐसा इसलिए है क्योंकि ‘E’ हॉरिजोन को ‘A’ हॉरिजोन का ही एक पार्ट माना जाता है।

‘A’ हॉरिजोन की निचली परत को ‘E’ हॉरिजोन कहा जाता है। इसलिए कभी कभार ‘E’ हॉरिजोन को A² हॉरिजोन भी लिखा और पढ़ा जाता है।

 

[2] विशिष्ट प्रक्रियाएं (Special pedogenic process)

स्पेशल पेडोजोनिक प्रोसेस के द्वारा विशषे प्रकार की मृदा प्रोफाइल का विकास होता है।

यह प्रोसेस दो तरह की होती है-

1) Intrazonal pedogenic process.

2) Zonal pedozenic process.

 

[1] Intrazonal pedogenic process :-

1). Calcification and Gypsification –

Soil profile मे कैल्सियम कार्बोनेट (CaCo3) का सचंयन/deposition कैल्सिफिकेशन कहलाता है।

यह एक रासायनिक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया कम वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है तथा सॉयल के parent material में क्षार (Base) की अधिक मात्रा होने के कारण होती है। कैल्शियम कार्बोनेट के deposition से सॉयल में ‘calcic horizon’ का विकास होता है।

2) Decalcification –

यह कैल्सिफिकेशन का rivers process है।

कैल्सिफिकेशन में कैल्शियम कार्बोनेट का deposition होता है जबकि decalcification में कैलशियम कार्बोनेट का removal होता है। कैल्शियम कार्बोनेट (CaCo3) का पानी में घुल कर leach out हो जाना, बह जाना decalcification कहलाता है।

3) Podozolization –

यह eluviation की एक प्रोसेस है जिसमें humes तथा सिस्क्वी ऑक्साइड ऊपरी हॉरिजोन से बह कर नीचे के हॉरिजोन में आकर जमा हो जाते हैं। इससे upper soil layer ash colour का हो जाता है। यह प्रोसेस ठंडे तथा नम प्रदेशों में होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य –

[ Al,  fe oxide को sisqui-oxide कहते हैं]

 

4) Laterization

लेटराइजेशन वह प्रक्रिया है जिसमें सिलिका upper horizon से lower horizon में चली जाती है तथा Al, fe-oxide (sisqui-oxide) upper horizon में ही रहते हैं।

सिलिका के removal से upper layer (A horizon) में Al, fe oxide का concentration कुछ समय बाद बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। जिससे A horizon बहुत ज्यादा हार्ड हो जाती है। लेटराइजेशन शब्द में जो मूल शब्द (root word) है।

वह है- ‘Later’ = brick. जिसे हिन्दी भाषा में ईंट कहते हैं।

लेटराइजेशन प्रक्रिया से सॉयल भी ईंट के समान कठोर हो जाती है।

 

[2] Zonal pedozenic process:-

1) Gleization –

formation of glei layer (green grey and blue layer) in hydromorphic soils is called gleization.

poor drainage वाली सॉयल और waterlogged सॉयल में जलभराव के कारण greyish colour का हॉरिजोन विकसित हो जाता है जिसे प्रायः Glei layer कहते हैं।

2) Salination –

सॉयल हॉरिजोन में लवण (salt) का accumulation Salination कहलाता है। इस तरह का प्रोसेस arid region के साॅयल में और water logged साॅयल में होती है।

3) Solonization –

इस प्रक्रिया को alkalization भी कहते हैं।

साॅयल प्रोफाइल में high exchangeable sodium ions (Na+ ions) जिसे हिंदी भाषा में लवण भी कहते हैं के deposition को Solonization कहते हैं।

इन लवणों के जमाव से सॉयल का Ph मान 8 से अधिक हो जाता है। जिससे इन मृदाओं (soils) की संरचना खराब हो जाती है और ये खेती योग्य नहीं रहती है।

यह लवण जलस्तर के ऊंचे होने से, जलभराव से, जल निकास की उचित व्यवस्था न होने पर या सिंचाई के जल में लवण की मात्रा अधिक होने से एकत्रित होते हैं।

मुख्य लवण- Nacl, Na2So4, NaHCO3, और Na2Co3, तथा NaNO3, KNO3, और MgSo4 भी कभी-कभी पाए जाते हैं।

4) Solodization –

इस प्रक्रिया को Dealkalization भी कहते हैं।

removal of high exchangeable sodium ions (Na+ ions) from soil profile is called solodization.

इस प्रक्रिया में होता यह है कि सॉयल प्रोफाइल में जमा लवण पानी के साथ घुल कर बह जाता है। जिससे soil का Ph लेवल कम होने लगता है और इन soils में कृषि कार्य सम्भव हो पाता है।

5) Pedoturbation –

ऊपर बताए गए मृदा निर्माण प्रक्रियाओं के फलस्वरुप मृदा पिण्ड (soil mass) में संस्तरीय विभिन्नताएं उत्पन्न होती है।

वहीं कुछ क्रियाएं इनके विपरीत सॉयल को मिक्स करने का कार्य करती है।

मिश्रण एक सीमा तक सभी soils में होता है। soils को mix करने वाले Agents के आधार पर पेडाटरबेसन को 3 भागों में विभाजित किया गया है –

1. Floral Pedoturbation– वनस्पति द्वारा मदृा का मिश्रण

2. Faunal Pedoturbation– जंतु द्वारा मदृा का मिश्रण

3. Argillic Pedoturbation– clay soil की सिकुड़ने (shrinking) तथा फूलने (swelling) के द्वारा मृदा का मिश्रण ।

 

मृदा निर्माण के कारक (factors of soil formation)

भूमि की सतह पर किसी प्रमुख स्थान पर यह पांच कारक एक साथ अपना प्रभाव डालकर मृदा उत्पत्ति करते हैं-

1) जलवायु

2) पैतृक पदार्थ

3) भूतल का रूप या धरातल

4) जीवमंडल तथा

5) भूमि की आयु

इन सभी कारकों का मृदा निर्माण में समान महत्व नहीं होता है।यद्यपि कुछ कारण दूसरों की अपेक्षा प्रमुख परिस्थितियों के अंर्तगत मृदा निर्माण करने में अधिक प्रभावशाली हो सकते हैं, परंतु सभी का परस्पर संबंध रहता है और एक दूसरे के पूरक होते हैं।

वैज्ञानिक की जीवनी ने कड़ी धूप में मृदा के साथ तीन कारकों के सम्बंध को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया है-

S = f ( Cl, o, r, p, t….. )

Cl = climate

O = organism ( biosphere)

R = Relief/Topography

P = Parent material

T = Time and age of land

Soil is a function of Cl, o, r, p,- क्लोरपि ट

वैज्ञानिक जोफे ने मृदा निर्माण में भाग लेने वाले कारकों को दो वर्गों में विभाजित किया है-

1. निष्क्रिय कारक (Passive factors)

2. सक्रिय कारक (Active factors)

[ 1 ] निष्क्रिय कारक –

यह उन अवयवी पदार्थों (Soil forming mass) को व्यक्त करते हैं,जो मृदा निर्माण करने वाले खनिजों का स्रोत होते हैं वह इसके साथ में कुछ दशाएं उत्पन्न कर देते हैं जो मृदा निर्माण में सहायक होते हैं।

इस वर्ग के अंतर्गत निम्न कारक आते हैं-

A) पैतृक पदार्थ (parent material)

a. कणाकार (texture)

b. सरन्र्धता (porosity)

c. क्ले की प्रकृति (nature of clay)

d. पोषक तत्व (nutrients)

e. रंग (colour)

B) भूतल रूप (topography or relief)

C) भूमि की आयु (age of land)

 

[ 2 ] सक्रिय कारक –

यह ऊर्जा प्रदायक हैं जो मृदा पदार्थों पर क्रिया करके मृदा निर्माण प्रक्रम के लिए प्रति कारक पैदा करते हैं।

इस वर्ग के अंतर्गत निम्न कारक आते हैं-

D) जलवायु (climate)

a. वर्षा (rainfall)

b. ताप (temperature)

c. वाष्पीकरण (evaporation)

d. वायु (air)

E) जीवमंडल (biosphere)

a. वनस्पति (vegetation)

b. सूक्ष्मजीव (microorganisms)

c. जन्तु (Animal)

d. मनुष्य (human)

रेफरेंस

अलग अलग स्रोतों से एकत्रित किए गए इन्फॉर्मेशन, का विश्लेषण करने के बाद एग्रीफिल्डिया द्वारा इस आर्टिकल को तैयार किया गया है।

स्रोत – मृदा विज्ञान पुस्तक – बाय डॉ. विनय सिंग , लॉगिन अग्री डॉट कॉम, सॉयल साइंस जर्नल आदि ।

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