बरसात का मौसम अपने साथ हरियाली लेकर आता है, जीवन और विकास की ताजगी लेकर आता है। चारो तरफ हरी- हरी वनस्पति पनपने लगती है। ऐसे में हमारा मन भी करता है कि हम भी अपनी बागवानी या किचन गार्डन में अपनी मनपसंद सब्जियां उगाए।
नमस्कार दोस्तों! आज के इस आर्टिकल में हम आपको बरसात के मौसम में लगने वाली सब्जियां (Rainy season vegetables) के बारे मे बताने वाले हैं। वैसे तो हमारे देश में सभी सीजन में सब्जियां उगाई जाती है लेकिन हम इस पोस्ट में विशेष रूप से बरसात के मौसम में लगने वाली सब्जियां (Rainy season vegetables) के बारे में जानकारी देने वाले हैं। जिसे आप आसानी से अपने बागवानी या किचन गार्डन में लगा सकते हैं।
यह मानसून का समय गर्म व गीली परिस्थितियों में पनपने वाली सब्जियाँ लगाने का अच्छा समय है। इस समय मिट्टी गीली रहती है और खेती करने के लिए उपयुक्त रहती है तथा पौधे आसानी से ग्रो होने लगती है, हालाकि कुछ पौधो को बरसात के मौसम में विशेष देखरेख की जरूरत होती है।
बरसात के मौसम में लगने वाली सब्जियां व उसका विवरण (Description of Rainy season vegetables in hindi)
1. टमाटर (Tomato)
टमाटर का वानस्पतिक नाम लायकोपर्सिकम एस्कुलेण्टम (Lycopersicum esculentum) है। पह एक अत्यंत लोकप्रिय सब्जी है, जिसका प्रयोग सलाद, सब्जी, चटनी, मुरब्बा तथा सूप आदि के रूप में करते हैं। इसके फल प्रायः साल भर उपलब्ध रहते हैं। टमाटर में विटामिन ए, बी तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता हैं।
मिट्टी – टमाटर के लिए पर्याप्त जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। भूमि का जल निकास भी अच्छा होना चाहिए।
खेत की तैयारी – एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल चलाकर खेत को पाटा चलाकर समतल कर दें। वर्षा ऋतु में टमाटर की खेती करने के लिए आप कूंड़ विधि या मल्चिंग विधि का भी प्रयोग कर सकते हैं।
पौध तैयार करना – टमाटर की खेती के लिए पहले पौध (थरहा) तैयार करना पड़ता है। खेत में बीज बोने से पहले बीज को 2 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीजदर से उपचारित कर लें।
रोपाई – लगभग तीन सप्ताह बाद जब पौधे 8 से 10 सेमी हो जाये तो पौधों की रोपाई कर दें। ध्यान रहे कि रोपाई शाम के समय करें तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर दें।
फलों की तुड़ाई – रोपाई के लगभग ढाई से तीन महीने बाद फल तैयार हो जाती है।
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2. बैगन (Brinjal)
बैगन का वानस्पतिक नाम सोलेनम मेलोन्जीना (Solanum melongena) है। इसे भी बरसात में आसानी से उगाया जा सकता है। इसकी वर्ष में कई फसल ली जा सकती है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण और विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है।
मिट्टी – बैगन सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जप सकता है। अच्छी पैदावार के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है।
भूमि की तैयारी – इसके लिए ऊपर टमाटर में बताये गये विधि से ही खेत की तैयारी करें l भली भांति तैयार तथा समतल की गयी भूमि में उचित आकार की क्यारियाँ बना लें।
पौध तैयार करना – बैगन के लिए भी पौध तैयार करना पड़ता है। इसके लिए जिस जगह नर्सरी डालती हो उसे अच्छी तरह जुताई करके भुरभुरी बन लें और पर्याप्त मात्रा में सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें। बीज बोने के पूर्व बीज का थीरम या केप्टान से अवश्य उपचारित कर लें।
रोपाई – पौध बीज बोने के चार सप्ताह बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधे 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची हो जाए तथा उनमें 4 – 5 पत्तियां निकल आए तब उसकी रोपाई कर दें।
फलों की तुड़ाई – बैगन की फसल की रोपाई के 70 – 80 दिन बाद फल मिलने शुरू हो जाते हैं। जब फल बड़े हो जाए और उनमें रंग भी आ जाए तब उन्हें तोड़ ले।
3. करेला (Bitter gourd)
करेला का वानस्पतिक नाम Momordica charantia है। करेला का सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान है। करेला अपनी औषधिय गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है। करेले का जूस काफी लाभदायक होता है। करेला उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए भी बहुत लाभदायक होता है तथा करेले के कच्चे फलों का रस मधुमेह के रोगियों के लिए भी काफी उपयोगी माना जाता है।
मिट्टी – बलुई दोमट मिट्टी जिसमे अच्छी जलधारण क्षमता हो तथा जरूरत पड़ने पर अच्छी जल निकासी भी हो, तथा जिसकी p H मान 6.0 से 7.0 हो करेला की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
खेत की तैयारी – खेत की तैयारी के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाली हल से तथा उसके बाद 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करें। जुताई के बाद खेत को पाटा चलाकर समतल कर दें।
बुआई – करेले की एक हेक्टेयर के लिए लगभग 5-6 किग्रा बीज की आवश्यकता पड़ती है। करेले की बुआई मेंड़ बनाकर करनी चाहिए। बीज की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 1.5 से 2.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 40 से 60 सेमी हो। एक स्थान पर 2-3 बीज व 3-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।
पौधों को सहारा देना – करेला नार वाली (लता वाली) पौधा है इसिलिए करेले की प्रत्येक पौधे को सहारा देना आवश्यक होता है। करेले की लताओं को लकड़ी, नेट या रस्सी की सहायता से सहारा देने से करेले का फल जमीन के सम्पर्क में नही आते।
फलों की तुड़ाई – बीज बुआई के लगभग 60 से 70 दिन बाद करेले का फल तोड़ने योग्य हो जाता है। जब करेले का फल निश्चित या सही आकार का हो जाये व हल्का हरा होने लगे तो यह तुड़ाई के लिए अच्छा माना जाता है।
4. भिंडी (Okra)
भिंडी का वानस्पतिक नाम Abelmoschus esculentus है। भिंडी के फलों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। भिंडी को लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जाना जाता है। भिंडी में मुख्य रुप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस के अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी, थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है।
मिट्टी – भिन्डी को लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है जिसमे उचित जल निकास की व्यवस्था हो। इसके लिए भूमि का p H मान 7 से 7.8 उपयुक्त माना जाता है।
खेत की तैयारी – खेत की 2 से 3 जुताई करके पाटा चलाकर समतल कर लिया जाता है। इसके बाद भिन्डी की खेती करने के लिए खेत को उचित क्याँरियों या पट्टियों में बांट दिया जाता है। वर्षा ऋतु में भिंडी की बुआई करने के लिए उठी हुई क्याँरियाँ बनानी चाहिए।
बुआई – अगर बात करें भिंडी की बीज की मात्रा तो गर्मी की फसल के लिए 20 किग्रा. तथा वर्षा की फसल के लिए 12 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुआई से पूर्व 1 ग्राम कार्बेन्जजिम तथा 3 ग्राम थीरम से प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करें। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. एवं पौधे से पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना चाहिए। बीज की 2 से 3 सें०मी० गहरी बुवाई करनी चाहिए।
फलों की तुड़ाई – बीज बुआई के लगभग 50-60 दिनों के बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है। भिंडी को निश्चित समय व आकार में तोड़ना चाहिए नही तो भिंडी कठोर व रेशेदार होने लगती है।
5. कद्दू (Pumpkin)
कद्दू का वानस्पतिक नाम कुकरबिटा मोस्केटा (Cucurbita moschata) है। यह आकार में गोल या लम्बा होता है तथा पकने पर इसका रंग पीला हो जाता है। इसे पके या अपरिपक्व दोनों रूपों में खाया जा सकता है। कद्दू को घर के पिछे या किनारे पर भी लगाकर इसकी लताओं को छत पर चढ़ाया जाता है।
भूमि– इसे किसी भी प्रकार की भूमि जिसमे जल निकास की उचित व्यवस्था हो, उगाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।
खेत की तैयारी – एक बार मिट्टी पलटने वाली हल से तथा 2 – 3 जुताई देशी हल से करके खेत में पाटा चलाकर समतल कर दें।
बुआई – कद्दू की वर्षा ऋतु की फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 1 मीटर रखी जाती है। इस बताए गये दूरी के अनुसार थाला बनाकर एक स्थान पर 3-4 बीज डालें तथा ध्यान रहे कि बीजों को 2.5 – 3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। उगने के बाद एक स्थान पर केवल एक ही स्वस्थ पौधा छोड़े बाकि को हटा दें।
तोड़ाई – फलों को बाजार मांग या आवश्यकता के अनुसार अपरिपक्व या पके दोनों अवस्थाओं में तोड़ा जा सकता है। कद्दू के फल को 4-5 माह तक भण्डारित करके रखा जा सकता है।
6. लौकी (Bottle Gourd)
लौकी का वानस्पतिक नाम लैजीनेरिया साइसेरेरिया (Lagenaria siceraria) है। यह भी एक महत्वपूर्ण सब्जी है। इसकी सब्जी बहुत ही गुणकारी तथा पाचक होती है। यह भी कद्दू की तरह ही लता (बेल) वाली फसल है।
भूमि – लौकी की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है जिसमें अच्छा जल निकास हो। इसकी खेती के लिए 6.0 – 7.0 पी-एच वाली मृदा उत्तम होती है।
खेत की तैयारी – एक जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से तथा 2-3 जुताई देशी हल से करें और पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें।
बोआई – लौकी की वर्षाकालीन फसल के लिए 3-4 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। तैयार की गयी खेत में बीजों की बुआई कतारों में करते हैं। कतार से कतार की दूरी 3 मीटर तक तथा पौधे से पौधे की दूरी 70 सेमी से 1 मीटर तक रखा जाता है। बीज की बुआई करते समय ध्यान रखें कि बीज की गहराई 3-5 सेमी हो।
पौधों को सहारा देना – अच्छे फल प्राप्त करने के लिए वर्षाकालीन लौकी की फसल को सहारा देना आवश्यक होता है। इसके लिए बाँस या रस्सी का प्रयोग किया जाता है।
फलों की तुड़ाई – बीज बोने के लगभग 80 – 90 दिन बाद लौकी का फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। फलों को उपयुक्त आकार ग्रहण करने पर तोड़ना चाहिए।
7. तोरई (Sponge gourd)
तोरई दो प्रकार की होती है – घिया तोरई [ (Sponge gourd) – Luffa aegyptica ] और काली तोरई [ (Ridge gourd) – Luffa acutangula ]
यह कद्दू वर्ग की सब्जी है। यह शीघ्र पचने वाली, पित्तनाशक तथा विटामिन और खनिज से परिपूर्ण होता है।
भूमि – तोरई को किसी भी प्रकार की भूमि पर उगाया जा सकता है लेकिन इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है।
खेत की तैयारी – खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से तथा 3 – 4 जुताई देशी हल से करके खेत में पाटा चलाकर समतल कर देना चाहिए।
बोआई – तोरई की फसल के लिए 3-5 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं। तोरई की बुआई भी लौकी की भाँति थाला बनाकर या नालियों या क्याँरियों में किया जाता है।
पौधे को सहारा देना – तोरई बेल वाली फसल है इसिलिए इन्हें साहरा देना आवश्यक हो जाता है। इसके लिए शाखादार पेड़ो की शाखाओं या बाँस या रस्सी का प्रयोग कर सकते हैं।
फलों को तोड़ना – फलों को सही समय पर नरम अवस्था में ही तोड़ना चाहिए अन्यथा फल कठोर व रेशेदार हो जाता है।
8. खीरा (Cucumber)
खीरा का वानस्पतिक नाम Cucumis sativus है। खीरा भी एक कद्दूवर्गीय सब्जी है जिसका गर्मियों में अधिक मांग रहती है। इसके फलों का उपयोग मुख्य रूप से सलाद के रूप में करते हैं। इसमें लगभग 96% जल पाया जाता है। खीरा में कार्बोहाड्रेट, खनिज तथा विटामिन बी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसकी खेती सभी सीजन में किया जा सकता है।
भूमि – खीरे की खेती सभी प्रकार की ऊपजाऊ मिट्टी में किया जा सकता है लेकिन बलुई दोमट या दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। मृदा का पी.एच मान 6.5 से 7 उपयुक्त माना जाता है।
खेत की तैयारी – खीरे की खेती के लिए खेत की तैयारी उपर्युक्त दिये गये कद्दूवर्गीय फसलों के समान ही है।
बुआई – खीरे की एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई करने के लिए 2 से 2.5 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुआई करने से पहले थीरम या केप्टान से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज दर के हिसाब से उपचारित कर लें।
खीरे की बुआई कतारों में मेड़ बनाकर करें इसके लिए कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी रखें।
फल की तुड़ाई – फलों की तुड़ाई उचित व मुलायम अवस्था में करें। प्रत्येक 2-3 दिनो में फलों की तुड़ाई करते रहें।
निष्कर्ष
तो दोस्तों आपने इस लेख में पढ़ा और ये जाना कि आप बरसात के मौसम में कौन – कौन सी सब्जियां लगा सकते हैं | Best Rainy season vegetables in hindi.
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको जरूर पसन्द आई हो। ऐसे ही कृषि से सम्बंधित नई – नई आर्टिकल और नई – नई रोचक तथ्य जानने के लिए हमारे साथ बनें रहें। धन्यवाद! आपका दिन शुभ हो…
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