Terms Related to Crop Production in Hindi
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आज हम पढेंगे फसल उत्पादन से सम्बंध रखने वाले उन सभी शब्दों के बारे में (Terms Related to Crop Production), फसल उत्पादन के अंतर्गत आने वाले सभी महत्वपूर्ण शब्दों के परिभाषा। (Terms, Glossary, Definitions in Crop Production)
तो चलिए पढ़ना शुरू करते हैं उन सभी शब्दावली को जो फसल उत्पादन विषय के अंतर्गत आते हैं।
40 Terms Related to Crop Production and their Definition in Hindi
1. कृषि विज्ञान (Agriculture Science) – कृषि विज्ञान विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत हम शस्य उत्पादन, पशु पालन, मछली पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन , लाख उत्पादन तथा रेशम उत्पादन का अध्ययन करते हैं।
2. फसल उत्पादन (Crop Production) – किसी क्षेत्र में किसी ऐच्छिक फसल का चुनाव करके उसकी खेती करके अनाज उत्पादन अथवा बीज उत्पादन करना फसल उत्पादन कहलाता है।
3. फसल (Crop) – फसल से आशय उन पौधों से हैं जिन्हें मनुष्य अपनी आर्थिक उद्देश्यों के लिए उगाता है, उनका प्रबंधन करता है तथा उनकी कटाई (Harvesting) करता है ।
पौधों के ऐसे समूह जिसे मनुष्य अपने किसी न किसी रूप में उपयोग के लिए उगाता है फसल कहलाता है।
4. शस्य विज्ञान (Agronomy) – शस्य विज्ञान कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसमें फसल उत्पादन एवं भूमि प्रबंधन के सिद्धांतों एवं व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।
5. बुआई (Sowing) – फसल उत्पादन के उद्देश्य से भूमि की तैयारी करने के बाद बीजों को तैयार खेत में उचित विधि से लगाने या स्थापित करने की प्रक्रिया बुवाई कहलाती है।
6. रोपाई (Transplanting) – फसलों या पौधों के तैयार थरहों (छोटे पौधे – Seedlings) को तैयार किए गए मुख्य खेत में लगाने की प्रक्रिया रोपाई कहलाती है।
7. खाद (Manure) – वे सब पदार्थ जिसे मृदा में मिलाए जाने पर मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करते हैं तथा पौधों की बढ़वार में सहायक होते हैं, खाद कहलाते हैं। खाद दो प्रकार के होते हैं – (1) जैविक खाद और (2) रसायनिक खाद।
8. बेसल ड्रेसिंग (Basal Dressing) – खेत में फसल बुवाई के पूर्व अथवा बुवाई के समय खाद देने की बेसल ड्रेसिंग कहते हैं।
9. टॉप ड्रेसिंग (Top Dressing) – खड़ी फसल में उर्वरक देने की क्रिया को टॉप ड्रेसिंग कहते हैं।
10. फोलियर स्प्रे (Foliar Spraying) – उर्वरक को पानी में घोलकर पत्तियों पर छिड़काव करना Foliar Spraying कहलाता है। फोलियर स्प्रेयिंग के लिए अच्छी घुलनशीलता के कारण यूरिया का प्रयोग अधिक किया जाता है।
11. समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Nutrients Management) – मृदा में दीर्घ अवधि तक फसलोत्पादन के लिए तथा पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर मृदा परीक्षण के अनुसार मृदा में संतुलित मात्रा में कार्बनिक खाद, रासायनिक खाद, जैविक खाद, एवं मृदा सुधारकों का समन्वय कर प्रयोग करना समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन कहलाता है।
12. समन्वित पीड़क प्रबंधन (Integrated Pest Management) – फसलों के कीटों के प्रबंधन के लिए प्रबंधन के जितने भी संभावित स्त्रोत उन सभी को एक कार्यक्रम के रूप में समन्वय कर एक साथ उपयोग करना एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) कहलाता है ।
इसमें कीट नियंत्रण की सभी विधियों को एक कार्यक्रम के रूप में अपनाया जाता है और कीटनाशक का प्रयोग कम से कम किया जाता है।
integrated paste management (IPM) is an ecosystem approach to crop production and protection the combines different management strategies and practices to grow healthy crops and minimise the use of pesticides.
13. भू-परिष्करण (Tillage) – फसल उत्पादन के लिए जब मिट्टी की दशा में भौतिक या यांत्रिक परिवर्तन किया जाता है जो की फसलों की बढ़वार में आवश्यक व उचित परिस्थिति प्रदान करती है इन सब क्रियाओं को ही भू परिष्करण या टीलेज कहते हैं ।
फसल उत्पादन में किए जाने वाले फसलों की बुवाई से पहले एवं बुवाई के बाद भूमि में जो भी कृषि क्रियाएं की जाती है उसे कर्षण या भू परिष्करण कहते हैं ।
14. अन्तः खेती (Intercultivation) – खेत में खड़ी फसल में विभिन्न कृषि यंत्रों से जो क्रियाएं की जाती है उसे अन्तः खेती कहते हैं। यह क्रियाएं खरपतवार नष्ट करने, नमी सुरक्षित रखने, मिट्टी चढ़ाने, मृदा में वायु संचार बढ़ाने आदि उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
15. हैरोविंग (Harrowing) – भूमि के ऊपरी सतह के ढेलों को तथा ऊपर की पपड़ी को तोड़कर मिट्टी को भुरभुरी बनाने की क्रिया Harrowing कहलाती है।
16. हल (Plough) – हल जुताई का एक यंत्र है जो मिट्टी को चीरता है, पलटता है तथा भुरभुरा बनाता है।
17. बीज (Seed) – बीज (Seed) वह रोपण सामग्री है जो अनुकूल परिस्थितियों (Favorable consideration) में एक नया पौधा उत्पन्न करने में सक्षम हो ।
बीज लैंगिक अथवा वानस्पतिक रूप से प्रवर्धित रोपण सामग्री होता है जो बुवाई और रोपण के लिए उपयोग किया जाता है जिसे सही से बोने पर एक नई पौध प्राप्त होता है ।
18. बीज सुसुप्तावस्था (Seed Dormancy) – एक बीज((Seed) के अंकुरण (Germination) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होने के बावजूद भी कभी – कभी बीजो का अंकुरण नही हो पाता इसी को बीज सुसुप्तावस्था (Seed Dormancy) कहते हैं ।”
वह अवस्था जब बीज अंकुरण के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियों के होने के बावजूद भी बीज अंकुरित नही हो पाता है तो इस अवस्था को बीज सुसुप्तावस्था कहते हैं ।
19. बीज दर (Seed Rate) – भूमि के प्रति कई क्षेत्रफल में बुवाई के लिए आवश्यक बीज की मात्रा को बीज दर कहते हैं। बीज दर को सामान्यतः किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में व्यक्त किया जाता है। फसल के स्वभाव, बीज का आकार तथा बुवाई की विधियों के अनुसार सभी फसलों की बीजदर भिन्न-भिन्न होता है ।
20. अंतरण (Crop Spacing) – फसल बुवाई के समय फसलों की कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी अंतरण (Spacing) कहलाता है। इसे सेंटीमीटर में व्यक्त किया जाता है।
21. पौध संख्या (Plant Population) – भूमि की एक इकाई क्षेत्रफल में रखे जाने वाली पौधों की संख्या को पौधे संख्या या पौध घनत्व कहते हैं। पौध संख्या का प्रभाव फसल उत्पादन पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है । अतः अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उचित पौध संख्या बनाए रखना चाहिए।
22. अन्तः कृषि क्रियाएं (Intercultural operation) – खड़ी फसलों में विभिन्न कर्षण क्रियाएं करना इंटरकल्चर ऑपरेशन कहलाता है। जैसे निंदाई – गुड़ाई, विरलीकरण, मिट्टी चढ़ाना इत्यादि।
23. निंदाई (Weeding) – निंदाई खेत में अवांछनीय पौधों को अलग करने की प्रक्रिया है । निंदाई करने से फसल के पौधों एवं खरपतवारों के बीच में बढ़वार के कारकों जैसे – प्रकाश, पानी, जगह, पोषक तत्व आदि के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जिससे फसलों की बढ़वार में कोई रुकावट नहीं आती।
24. मिट्टी चढ़ाना (Earthing up) – कुछ विशेष पौधों में पौधों के तने अथवा उसके आधार भाग के बिल्कुल पास में पौधों को सहारा देने के लिए मिट्टी रखने की प्रक्रिया को Earthing up कहते हैं ।
फसलों में मिट्टी चढ़ाने का उद्देश्य अलग-अलग फसलों में अलग-अलग होता है । जैसे मक्का, केला, गन्ना, पपीता में मिट्टी चढ़ाने का उद्देश्य पौधों को गिरने से बचाना है, तथा आलू, शकरकंद, मूंगफली आदि फसलों में मिट्टी चढ़ाने का उद्देश्य कन्द एवं फलियों की अधिक बढ़वार है।
25. सिंचाई (Irrigation) – फसल उत्पादन के उद्देश्य से भूमि में कृत्रिम रूप से जल देने की क्रिया जिससे भूमि में नमी की उचित मात्रा बनी रहे और फसलों की उचित वृद्धि हो सके सिंचाई कहलाता है ।
26. जल निकास (Drainage) – फसल की पैदावार बढ़ाने हेतु भूमि की सतह अथवा अधोसतह से अतिरिक्त जल को कृत्रिम रूप से बाहर निकालना जल निकास कहलाता है।
27. फसलों की जल मांग (Water Requirment of Crops) – जल की वह मात्रा, जो किसी फसल को एक निर्धारित समय अवधि में उगाने के लिये आवश्यक होती है, फसल की जल माँग कहलाती है
एक किलोग्राम शुष्क पदार्थ उत्पन्न करने के लिए पौधों के विभिन्न अंगों द्वारा जितने किलोग्राम पानी वाष्प के रूप में उत्सर्जित किया जाता है उसे वाष्पोत्सर्जन अनुपात अथवा पौधों की जल मांग कहते हैं।
28. फसल की क्रांतिक अवस्था (Critical Stages of Crop for Water Requirment) – पौधों की जीवन में कुछ समय ऐसा आता है जब उनकी जल मांग सर्वाधिक होती है । इस समय यदि पौधों को पर्याप्त जल उपलब्ध ना हो तो पौधों की वृद्धि, विकास और उपज में भारी कमी हो जाती है। इन अवस्थाओं को क्रांतिक अवस्थाएं कहते हैं। क्रांतिक अवस्थाओं पर पानी की कमी से होने वाली हानि को आगे पानी देकर भी पूरा नहीं किया जा सकता है ।
29. जलमान या जल क्षमता (Duty of Water) – पानी के आयतन और उससे तैयार हुई फसल के क्षेत्र में जो संबंध होता है, उसे जल क्षमता कहते हैं ।
एक क्यूसेक (घनमीटर प्रति सेकंड) की गति से किसी निश्चित अवधि तक निरंतर बहने वाले जल द्वारा सींचे गए क्षेत्र में जितने हेक्टेयर फसल पककर तैयार होती है वह जलमान या जल क्षमता कहलाती है।
“Duty of water is the number of hectares of Crop matured by one cause flowing continuously of a defined period”.
30. फसल चक्र (Crop Rotation) – किसी निश्चित क्षेत्र में फसलों को इस प्रकार हेर – फेर करके बोना जिससे कि भूमि की उर्वरा बनी रहे फसल चक्र कहलाता है।
भूमि के एक भाग में एक निश्चित समय अवधि में विभिन्न फसलों को क्रम से उगाने की प्रक्रिया फसल चक्र कहलाता है, जिसका उद्देश्य भूमि की उर्वरा को बिना हानि पहुंचाए कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करना होता है ।
31. पौध संरक्षण (Plant Protection) – फसल संरक्षण अथवा पौध संरक्षण विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत कृषि उपज की वृद्धि करने के लिए कीटों या नाशक जीवो, रोग व अन्य फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों की नियंत्रण की विधियों का अध्ययन किया जाता है।
32. खरपतवार (Weed) – खरपतवार वह अवांछित पौधे होते हैं जो खेत में बिना उगाए उठ जाते हैं तथा जिसकी उपस्थिति में किसानों को लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होती है ।
33. शस्य क्रम योजना (Cropping Scheme) – फार्म पर मृदा की उर्वरा शक्ति को स्थिर रखते हुए अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए फसलों को उगाने के लिए योजना तैयार करना ही शस्य क्रम योजना कहलाता है ।
34. मिश्रित खेती (Mixed Farming) – एक ही फार्म पर जब फसल उत्पादन के साथ-साथ कृषि के अन्य उद्यम जैसे पशुपालन, मछलीपालन, मुर्गीपालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन आदि चलाया जाता है तो इसे मिक्सड फार्मिंग कहते हैं।
35. मिश्रित फसलें (Mixed Cropping) – जब एक ही ऋतु में एक ही खेत में एक साथ दो या दो से अधिक फसलों को उगाया जाता है तो इसे मिलवा या मिश्रित फसल कहते हैं।
36. अन्तर्वर्तीय फसलें (Inter Cropping) – किसी फसल की दो लाइनों के बीच दूसरी फसल को उगाने को सह खेती (Inter Cropping) कहते है ।
37. बहुफसली (Multiple Cropping) – एक वर्ष में एक ही खेत में दो या उससे अधिक फसलें उगाना ताकि शस्य सघनता बढ़ जाए बहुफसली खेती कहलाता है । जिससे प्रति इकाई क्षेत्र तथा प्रति इकाई समय में अधिकतम उपज प्राप्त हो।
38. शुष्क खेती (Dry Farming) – उन क्षेत्रों में जहां वार्षिक वर्षा 500 मिमी. (50 सेंमी) या उससे कम होती है वहां लाभप्रद फसलों को बिना सिंचाई के उगाना शुष्क खेती कहलाता है।
39. Hydroponics – मिट्टी रहित परिस्थितियों में पौधों को उगाने को हाइड्रोपोनिक्स कहा जाता है।
(Growing of Plants under Soil less condition is called Hydroponics.)
40. Aeroponics – Aeroponics एक आधुनिक तकनीक है जिसमे पौधों को बिना मिट्टी के, हवा या नमीयुक्त वातावरण (mist environment) में उगाया जाता है।
पौधों को समय-समय पर धुंध के साथ नम वातावरण में रखा जाता है जो पोषक तत्वों से भरपूर घोल को सीधे जड़ों तक पहुंचाता है, जिससे फसल सूखने से बचती है।
यह पौधे ट्रे या ट्यूबों के माध्यम से उगाए जाते हैं, जिनकी जड़ें आसपास के इलाकों में होती हैं।