धान के फसल की प्रमुख रोग, लक्षण व उसकी पूरी जानकारी (Rice Important Diseases and Management in Hindi) -PART-1

Hello दोस्तों हमारे Agrifieldea blog में आपका स्वागत है । आज हम बात करेंगे धान की फसल के कुछ मुख्य रोगों व उसके लक्षण एवं उसके प्रबंधन (Rice Important Diseases and Management in Hindi) के बारे में । लेकिन धान के रोग के बारे में जानने से पहले हम जानते हैं कि पौधों की बीमारी अथवा रोग क्या होते है ।

Rice Important Diseases and Management in Hindi
              दोस्तों यह ब्लॉग पार्ट में होगा क्योंकि यह बहुत लंबा होने वाला है ।
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What is Plant Disease

Definition of Plant Disease-

                  पौध रोग  या बीमारी वह अवस्था होती है जब किसी रोगकारक अथवा Pathogen के कारण पौधे की सामान्य वृद्धि या कहें तो बढ़वार रुक जाती है और पौधा बाकी समान्य पौधों से अलग दिखाई देने लगती है । यह रोग के रोगकारक सामान्य से अधिक होने पर या रोग उग्र अवस्था में हो तो पौधे मर जाते है ।

Rice Important Diseases and Management in Hindi

                 अब हम जानेंगें धान के फसल के कुछ मुख्य रोग , उसके लक्षण व उनके प्रबंधन के बारे में

1. Blast Disease of Rice ( झुलसा ) 

       यह रोग Pyricularia oryzae (पायरिकुलेरिया ओरायजी)  नामक फफूंद के कारण होता है । यह रोग लगभग धान के सभी खेतों में कम या अधिक देखने को मिलता है।

 

Favorable Conditions For Blast Disease of Rice (अनुकूल स्थितियाँ) :-

● अस्थायी बूंदा-बांदी , बादलों वाला मौसम, बरसाती दिनों का अधिक होना व ओस की लम्बी अवधि होना ।

● सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) – 93 – 99% व रात का तापमान कम होना (15 – 20℃ के बीच अथवा 26℃ से कम )

● सहायक मेजबानों (Collateral Hosts) एवं नाइट्रोजन की अतिरिक्त मात्रा की उपलब्धता ।

लक्षण – Symptoms of Blast Disease Of Rice :-

                        धान की यह ब्लास्ट रोग फसल  वृद्धि की सभी अवस्था में हो सकती है । और इस रोग का धान की सभी खेतों में थोड़ा या अधिक प्रकोप होता ही है ।
                        रोग के लक्षण पत्तियों पर लम्बी लम्बी नीली धारियो के रूप में शुरू होती है। जो बाद में भूरे भूरे धब्बो में बदल जाती है । ये धब्बेें अंडाकार होती है  जिसके किनारे किनारे भूरा रंग तथा बीच का भाग सूखा हुआ होता है ।

 

Rice Important Diseases and Management in Hindi
पुराने पत्तियों पर बड़े धब्बे तथा नई पत्तियों  पर छोटे धब्बे बनते हैं । रोग के प्रभाव उग्र होने पर सभी धब्बे आपस मे मिल जाती है ।
                        इस रोग का प्रभाव बालियों केे डंठल पर भी होता है, जिसके कारण वह कमजोर पड़ जाती है और वह पकने से पहले ही टूट जाता है। और दाने भूरे पड़ जाते है तथा कई दाने खाली रह जाते हैं ।

धान में Blast रोग के कारण

                       इस  रोग के रोगकारक (pathogen) नीचे चित्र में कुछ इस प्रकार दिखाई देता है जो माइक्रोस्कोप वाले image है ।

Pyricularea oryzae

Image – Pyriculariya oryzae

 

(धान के ब्लास्ट रोग का प्रबंधन) Management of Blast Disease Of Rice – 

                     इस रोग के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित बिंदुओ को अपनाया जा सकता है –

(1) खेतों के मेड़ से , चैनल से या नालियों से पहले अथवा पूर्व रोगी पौधे तथा मेजबान खरपतवार पौधों (Weed Hosts) ( यानिकि इस रोग को धान के अलावा सहारा देने वाले अन्य खरपतवार ) को खेतों से अलग कर नष्ट कर देना चाहिये ।

(2) धान के फसल की इस झुलसा रोग के प्रति बहुत से रोग रोधी किस्मे है जिन्हें लगाना चाहिए । जैसे उदाहरण के लिए – CO47 , IR20, ADT36, ADT39, ASD18, एवं IR64 आदि ।

(3) बीज को बुआई से पूर्व captan (कैप्टान), या thiram(थीरम), या Carbendazim (कार्बेंडाज़ीम), या Tricyclazole (ट्रायसायकलाज़ोल) का 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करना चाहिए ।

(4) धान की नर्सरी में Carbendazim – 500g/L या Tricyclazole – 300g/L छिड़काव किया जा सकता है ।

(5) धान की मुख्य फसल खेतो में Edifenphos 500ml या Carbendazim 500g या Tricyclazole 500g प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव किया जाना चाहिए।

 

2. Brown Spot of Rice (धान का  भूरा धब्बा रोग)

 
धान का भूरा धब्बा रोग (Brown Spot) Helminthosporium oryzae (हेलमिंथोंस्पोरियम ओरायजी )  नामक फफूंद के कारण होता है । यह रोग भी धान के खेतों में अक्सर दिखाई देते हैं। इस रोग का भारत में महामारी के रूप मेंं आक्रमण 1942 में हुआ । 1942 में बंगाल में आकाल का प्रमुख कारण यह धान का भूरा धब्बा रोग ही था । इस रोग का प्रभाव नर्सरी अवस्था में ही हो जाता है।

धान के भुरा धब्बा रोग का कारण

           इस रोग के रोगजनक का image नीचे दिया गया है जो माइक्रोस्कोपिक है ।

 

Helminthosporium oryzae
Helminthosporium oryzae

Favorable Confirmations for Brown Spot Of Rice (अनुकूल स्थितियाँ) :-

● धान के भूरा धब्बा रोग के लिए सापेक्ष आर्द्रता 80% के ऊपर साथ ही तापमान 25 से 30 ℃ बेहद अनुकूल होती है ।

● ध्यान रहे कि नाइट्रोजन तत्व की अधिकता इस रोग की गम्भीरता को बढ़ाती है ।

धान के भुरा धब्बा रोग से लक्षण : Symptoms of Brown Spot Of Rice –

  इस रोग का प्रभाव नर्सरी अवस्था में ही हो जाता है ।

 

Brown Spots of Rice/Paddy, Rice Important Diseases and Management in Hindi
               इसमें रोग के लक्षण प्राांकुरचोल पर छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं । इन धब्बों का रंग गहरा भूरा या बैैैगनी भूरा  जाता है । तथा पत्तियां भुरे होकर सुख जाती है।
               यदि रोग बालियां निकलने से पहले आक्रमण करती है तो बालियां निकल नही पाती तथा रोग का आक्रमण बालियां निकलने के बाद होता है तो बालियां विकसित नही हो पाता अथवा विकृत हो जाती है।

Management Brown Spot Of Rice (भुरा धब्बा रोग का प्रबंधन ) :-

 
                 इसका रोग की प्रकोप की प्रारंभिक अवस्था से ही प्रबंधन के उपाय करना चाहिए

(1) collateral host (धान के अतिरिक्त पौधे जो इस रोग को आसरा देते हैं ) तथा संक्रमित पौधे को अलग कर नष्ट कर  देना चाहिए ।

(2) slow release नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग उचित मात्रा में ही करनी चाहिए ।

(3) हमेशा बुआई के लिए रोग रहित बीजों का ही चुनाव करना चाहिए ।

(4) इस रोग के रोग सहनशील जातियों को उगाना चाहिए जैसे – CO44, भवानी, इत्यादि ।

(5) बीजोपचार थीरम या कैप्टान से 4g / kg बीज दर पर किया जाना चाहिये ।

(6) नर्सरी में एडिफेंफोस (Edifenphos) 40 ml या मैंकोजेब 80g / 20 सेमी नर्सरी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए ।

(7) मुख्य फसल में – एडिफेंफोस (Edifenphos) 500ml या मैकोजेब (mencozeb) 2किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतराल में आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।

(8) M-45 का भी 0.1% छिड़काव किया जा सकता है

         इसके लिए विषेषज्ञ से सालाह भी लेकर उचित प्रबंधन किया जा सकता है ।
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PART – 2

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