परिचय –
इस ब्लाॅग पोस्ट को पढ़कर आप मल्चिंग के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
Mulching (मल्चिंग) क्या है?, खेती-बाड़ी में आप इसका उपयोग कैसे कर सकते हैं? मल्चिंग पेपर क्या होता है?, इसे किसान किस लिए यूज करते हैं ?
इन सभी सवालों को हमने इस ब्लॉग पोस्ट में शामिल किया है। तो चलिए पढ़ते हैं इसके बारे में,
let’s start now….
Mulch and Mulching in Hindi
किसानों के लिए खरपतवार एक प्रमुख समस्या है। खरपतवारों को खेत से हटाने के लिए किसान कई तरह का जतन करता है। निराई – गुड़ाई करता है, खरपतवारनाशी आदि रसायनों का प्रयोग करता है।
लेकिन इन सभी प्रयासों से काफी खर्चा हो जाता है इन खर्चों को कम करने के लिए और खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के लिए ‘मल्चिंग’ (Mulching) एक बेहतरीन उपाय है।
खरपतवार नियंत्रण के अलावा इसके और भी बहुत सारे लाभ हैं इसलिए मल्चिंग का प्रयोग वृक्षारोपण में, किचन गार्डर्निगं में, टेरेस गार्डर्निगं में भी आसानी से किया जा सकता है।
पलवार (mulch) क्या है ? (What is Mulch?)
पौधे के आसपास की मिट्टी में पौधे का जड़ फैला रहता है। इस जड़ क्षेत्र वाली मिट्टी को ढंकने के लिए जिस पदार्थ का प्रयोग करते हैं उसे हिंदी भाषा में ‘पलवार’ और अंग्रेजी भाषा में ‘mulch’ कहते हैं।
भारत में अधिकांश किसान और लोग-बाग ‘पलवार (मल्च)‘ के लिए प्लास्टिक मल्चिंग पेपर, पैरा, पेड़ों की पत्तियां एवं रसोई से निकले कार्बनिक कूड़ा आदि का प्रयोग करते हैं।
मल्चिंग (mulching) क्या है (What is Mulching?)
पौधे के आसपास की जड़ क्षेत्र वाली मृदा को पलवार या मल्च से ढकने की प्रक्रिया (process) को ‘मल्चिंग (Mulching)’ कहते हैं।
जिस प्रकार work मतलब कार्य और working मतलब कार्य करना होता है। ठीक उसी प्रकार मल्च मतलब पलवार और मल्चिंग मतलब पलवार से ढंकने की क्रिया को कहते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि सूखी पैरा या प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का प्रयोग करके पौधे के आसपास की जड़ क्षेत्र वाली मृदा को ढंकना ‘मल्चिंग’ (Mulching) कहलाता है।
नोट –
आमतौर पर मल्च को मल्चिंग नाम से ही सम्बोधित किया जाता है और सामने वाला भी आसानी से समझ जाता है। इसलिए मैं भी मल्च शब्द के जगह मल्चिंग शब्द का ही प्रयोग करूंगा जिससे आपको समझने में आसानी होगी।
मल्चिंग के लाभ (Advantages of Mulching) –
● Mulching का मुख्य कार्य फसल/पौधे के आसपास खरपतवारों को उगने से रोकना है और इसके उपयोग से खरपतवारों का प्रभावी रूप से नियंत्रण हो पाता है।
● मल्चिंग पौधे के आसपास के मिट्टी की नमी को वाष्पीकृत होने से रोकता है अर्थात पानी को वाष्प बनकर उड़ने नहीं देता है जिससे मिट्टी में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है।
● जड़ को वृद्धि करने के लिए उपयुक्त तापमान की आवश्यकता होती है यदि तापमान अधिक हो जाता है तो जड़ों का विकास प्रभावित होता है । पौधे के जड़ क्षेत्र को मल्च से ढंक देने पर सूर्य प्रकाश डायरेक्ट जड़ क्षेत्र पर नहीं पड़ता है और जड़ गर्म नहीं हो पाता है। अतः इस प्रकार मल्च जड़ों को उच्च तापमान से बचाता है।
● खेत से खरपतवारों को उखाड़ने के लिए श्रमिकों पर होने वाला खर्च और खरपतवारनाशी रसायनों पर होने वाला खर्च बच जाता है। इस प्रकार प्रति एकड़ खरपतवार नियंत्रण पर होने वाला खर्च भी कम हो जाता है।
● मल्चिंग के अंदर एक जैसा नमी और एक जैसा तापमान बना रहता है। इससे पौधों का बढ़वार अच्छी तरह से हो पाता है।
मल्चिंग कितने प्रकार के होते हैं (Types of Mulching)
मुख्यतः मल्च दो प्रकार की होती है जो आमतौर पर पूरे भारत में अपनाया जाता है । किसानों के अलावा वृक्षारोपण करने वाले, घर की छत पर और घर के पीछे बाड़ी पर फल, फूल, सब्जी उगाने वाले भी इस विधि का प्रयोग करते हैं।
1. कार्बनिक मल्चिंग – पैरा (पुआल), पत्तियां
2. कृत्रिम मल्चिंग – प्लास्टिक मल्चिंग पेपर
1. कार्बनिक मल्चिंग (Organic Mulching)
इस विधि में मल्चिंग के लिए धान का पुआल या पैरा, पेड़ों की पत्तियां घास तथा रसोई से निकले वेस्ट का प्रयोग करते हैं।
कार्बनिक मल्च की विशषेता यह है कि मल्च के रूप में जो मटेरियल प्रयोग किया जाता है वह धीरे-धीरे कुछ समय बाद सड़ गल कर कार्बनिक खाद बन जाता है।
कार्बनिक मल्च के नीचे सूक्ष्मजीव अधिक संख्या में पाए जाते हैं जो कार्बनिक पदार्थ को सड़ा कर ह्यमूस का निर्माण करते हैं। ह्यमूस से फसल को पोषक तत्व की प्राप्ति होती है।
इसके प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलता है छोटी स्थानों पर की जाने वाली खेती में यह विधि अधिक लाभदायक होती हैं।
कार्बनिक मल्च के रूप में घास और धान के पैरा का प्रयोग केवल गर्मी और ठंड के मौसम में करना चाहिए। बरसात के मौसम में घास और धान का पैरा प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि बरसात में अधिक नमी के कारण रोग वगैरह होने की संभावना होती है।
2. कृत्रिम मल्चिंग (Artificial Mulching)
इस विधि में मल्चिंग के लिए प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक कृषि में मल्च के रूप में प्लास्टिक मल्चिंग पेपर का उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है।
इस विधि का उपयोग वर्ष भर किया जाता है सभी प्रकार के मौसम में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
एक एकड़ या उससे अधिक भूमि पर की जाने वाली खेती के लिए यह प्रणाली अधिक लाभदायक होती है।
प्लास्टिक मल्चिंग पेपर –
मल्चिंग पेपर प्लास्टिक का एक पेपर होता है जिसे खेत में बेड बनाकर उसके ऊपर बिछा दिया जाता है। इससे फायदा यह होता है कि फसल के आस-पास के जगह पर खरपतवार उग नहीं पाते हैं जिसे बार-बार निराई गड़ुाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
मल्चिंग पेपर कौन से रंग का होना चाहिए ?
वैसे तो मल्चिंग पेपर मार्केट में कई रंगों में मिलता है जैसे- लाल रंग, पीला रंग, नीला रंग दोनों तरफ काला रंग, एक तरफ काला और एक तरफ चांदी (सिल्वर) रंग। और इन सभी अलग अलग रंग वाले मल्चिंग पेपर का इस्तेमाल भी होता है लेकिन अधिकतर किसान भाई और जानकार केवल एक तरफ काला रंग और एक तरफ सिल्वर रंग वाले मल्चिंग पेपर को प्राथमिकता देते हैं।
उनका कहना है कि जितना लाभदायक एक बाजू से काला और एक बाजू से सिल्वर रंग वाला मल्चिंग पेपर होता है, लाल, पीला, नीला रंग वाला मल्चिंग पेपर उतना लाभदायक नहीं रहता है और जब ज्यादा लाभदायक नहीं है तो हम उसका उपयोग क्यों करें ?
मल्चिंग पेपर कितनी चौड़ी होनी चाहिए ?
मल्चिंग पेपर अलग-अलग चौड़ाई (width) में बाजार में मिलता है। जैसे कि – 2 फीट 2.5 फीट 1 मीटर 4 फीट और 5 फीट में भी अधिक मल्चिंग पेपर मार्केट में उपलब्ध है।
हीरा एग्रो मल्चिंग पेपर एक्सपर्ट के अनुसार किसानों को 2.5 फीट, सवा तीन फीट और 4 फीट चौड़ाई वाले मल्चिंग पेपर का प्रयोग करना चाहिए।
क्या पूरे खेत को मल्चिंग पेपर से ढंकना है ?
पूरे खेत को मल्चिंग पेपर से नहीं ढंकना है केवल बेड को और फसल के आजू-बाजू के जगह को मल्चिंग पेपर से ढंकना है। दो बेड या दो फसल कतार के बीच में खाली जगह भी रखना है। चलने के लिए खेत का काम करने के लिए कीटनाशक छिड़काव और उपज तुड़ाई आदि कृषि कार्य करने के लिए खाली जगह रखना अनिवार्य होता है।
मल्चिंग पेपर की मोटाई –
मल्चिंग पेपर अलग-अलग मोटाई (thickness) में आता है। जैसे कि – 15 माइक्राॅन, 20 माइक्राॅन, 25 माइक्राॅन, 30 माइक्राॅन, 40 माइक्राॅन, और 50 माइक्राॅन।
इन सभी अलग-अलग मोटाई वाले मल्चिंग पेपर की जीवन अवधि अलग-अलग होती है। कितने समय तक हम इसे उपयोग कर सकते हैं, उसे ही इसकी जीवन अवधि कहते हैं। कब माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर कुछ महीनों तक चलता है और अधिक माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर अधिक समय तक चलता है।
कौन सी मोटाई वाला मल्चिंग यूज करें?
वैसे तो मार्केट में उपलब्ध सभी मोटाई वाले मल्चिंग पेपर का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन विशषेज्ञों के अनुसार 20, 25 और 30 माइक्राॅन वाला पेपर का उपयोग करना लाभदायक रहता है।
● 20 माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर 4 महीने तक चल जाता है। और एक फसल के लिए अच्छा काम करता है।
● 25 माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर 6 से 8 महीने तक चल जाता है। यदि आपको दो फसल लेना है तो यह मल्चिंग पेपर बेस्ट है।
● 30 माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर 12 से 14 महीने तक चल जाता है।
महत्वपूर्ण बिन्दु :-
कुछ किसान भाई कहते हैं कि हम 50 माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर लेंगे और लगातार चार फसल लेंगे यह चीज पूरी तरह से सही नहीं है। क्योंकि यदि मल्चिंग पेपर को उठाए बिना लगातार एक ही बेड पर चार फसल लेते हैं तो इससे मिट्टी में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
जैसे कि – मल्चिंग के नीचे हानिकारक जीवाणु, हानि कारक वायरस और हानिकारक कीट उत्पन्न हो जाते हैं जो फसल को अंदर से हानि पहुंचाने लगते हैं।
तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि फसल कटने के बाद मल्चिंग को उठाइए जमीन पर धूप पढ़ने दीजिए। जमीन की साफ-सफाई कीजिए और फिर मल्चिंग बिछाकर नया फसल उगाईये।
सिंचाई कैसे करें ?
जिस खेत पर मल्चिंग पेपर बिछाया जा रहा है वहां सिर्फ ड्रीप सिंचाई या ड्रिप इरिगेशन के द्वारा ही खेत में सिंचाई करनी चाहिए। अन्य विधियों से सिंचाई करना बहुत मुश्किल होता है और लाभदायक भी नहीं रहता है।
अतः मल्चिंग पेपर बिछाने सेपहले ड्रिप लाइन बिछा लेना चाहिए फिर उसके ऊपर मल्चिंग पेपर बिछाना चाहिए।
मल्चिंग की क्वालिटी कैसे जानें ?
सबसे पहले देखना चाहिए कि मल्चिंग पेपर का रंग कैसा है इसमें सही पैमाने पर रंग डाला गया है कि नहीं। यदि मल्चिंग पेपर का रंग फीका (fade) है तो यह सही से काम नहीं करेगा अतः रंग सही मात्रा में होना चाहिए।
मल्चिंग पेपर को खींचने पर वह शुरुआत में च्विंगम की भांति फैलना चाहिए। अच्छा किस्म का पेपर खींचने पर पहले फैलता है फिर अधिक खींचने पर टूटता है।
यदि खींचने पर शुरुआत में ही फट जा रहा है, टूट जा रहा है तो यह खराब क्वालिटी का मल्चिंग पेपर है।
कम माइक्राॅन वाला मल्चिगं पेपर पतला रहता है जिसकी वजह से वह सख्त नहीं रहता है जिसे खीचने पर आसानी से खींचा जाता है। जबकि अधिक माइक्राॅन वाला मल्चिंग पेपर मोटा और सख्त रहता है और खींचने के लिए थोड़ा ज्यादा बल लगाना पड़ता है तथा जल्दी फटता नहीं है।
मल्चिंग पेपर मतलब प्लास्टिक का पन्नी नहीं होता है। मल्चिंग पेपर को विशषे रूप से बनाया जाता है। मल्चिंग पेपर को बनाते समय कई प्रकार की सामग्री को डाला जाता है। कई फैक्टर्स को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया जाता है।
अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि अच्छी कंपनी की अच्छी क्वालिटी वाला मल्चिंग पेपर ही खरीदें।
मल्चिंग पेपर कैसे बिछाएं ?
सामान्यतः अधिकतर किसान एक तरफ काला और एक तरफ सिल्वर रंग वाला मल्चिंग पेपर का प्रयोग करते हैं। उनके मन में यह सवाल रहता है कि कौन सा रंग ऊपर होना चाहिए और कौन सा रंग नीचे होना चाहिए। इसके लिए कहीं पर भी कुछ भी लिखा नहीं है और ऐसा कोई नियम नहीं है कि कौन सा रंग ऊपर या नीचे होना चाहिए।
लेकिन अनुभवी किसानों और विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु को ध्यान में रखते हुए रंग का प्रयोग करना चाहिए।
अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में जहां 30-40 डिग्री सेंटीग्रेड सामान्य तापमान रहता है वहां सिल्वर कलर ऊपर और काला कलर नीचेर खना चाहिए। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणें सिल्वर कलर से टकराकर परावर्तित हो जाती है। जिससे पौधों का जड़ वाला क्षेत्र गर्म नहीं होता है और जड़ों का विकास प्रभावित नहीं होता है। यदि जड़ वाला एरिया गर्म हो जाता है तो जड़ का विकास धीमा हो जाता है।
कम तापमान वाले क्षेत्रों में जहां सामान्य तापमान 30 डि ग्री सेंटीग्रेड से कम रहता है। उस स्थिति में काला रंग को ऊपर और सिल्वर रंग को नीचे रखना चाहिए। इसका कारण यह है कि कम तापमान के समय यह काला रंग सूरज की रोशनी को खींच लेता है और काला रंग जल्दी गर्म भी हो जाता है। जड़ों की वृद्धि अधिक तापमान के साथ साथ कम तापमान की वजह से भी प्रभावित होता है।
अतः जड़ के विकास के लिए तापमान ना कम, ना ज्यादा बल्कि दोनों के बीच की तापमान की आवश्यकता होती है।
रेफरेंस –
अलग अलग स्रोतों से प्राप्त जानकारियों का विश्लेषण करने के पश्चात इस ब्लॉग पोस्ट को लिखा गया है।
स्रोत –
a. मल्चिंग पेपर एक्सपर्ट द्वारा दी गई जानकारी,
b. किसानों के साथ हुए वार्तालाप के अंश ,
c. तथा ऑनलाइन मैगजीन.
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निष्कर्ष –
खेतों में खरपतवार एक प्रमखु समस्या है जिनका रोकथाम बेहद जरूरी होता है। खरपतवारों को खेतों से हटाने के लिए निराई- गड़ुाई और रासायनिक खरपतवार- नाशियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। इन विधियों के प्रयोग से खेती में होने वाला खर्च बढ़ जाता है और मेहनत भी अधिक करना पड़ता है।
मल्चिंग के प्रयोग से इन समस्याओं को आसानी से हल किया जा सकता है। और इसके अन्य कई लाभ है जो कृषि में बहुत लाभदायक होते हैं। आजकल भारतीय कृषि में इसका प्रयोग लगातार बढ़ते जा रहा है।
अपील –
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