पृथ्वी की आंतरिक संरचना एवं बनावट | Interior of the Earth in Hindi 🌎

Interior of the Earth

संक्षिप्त विवरण (interior of the earth)-

हमारी पृथ्वी जिसे अंग्रेजी भाषा में अर्थ Earth कहते हैं। सौर मण्डल के उन ग्रहों में से एक है जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती हैं। पृथ्वी की ऊपरी सतह मिट्टी से ढकी रहती है। वर्तमान समय में पृथ्वी का बाहरी भाग बिल्कुल ठंडा एवं ठोस रूप में है लेकिन इसका आतंरिक भाग बहुत ज्यादा गर्म है।

भूमि का ताप प्रत्येक 60 फीट की गहराई पर 1 डिग्री फैरनहाइट की दर से बढ़ जाता है।

भूगर्भ विज्ञान (जियोलॉजी) के अनुसार पृथ्वी 3 मंडलो – वायुमंडल (atmosphere), जलमंडल (hydrosphere) एवं थल मंडल (Lithosphere) से मिलकर बनी है।

‘पृथ्वी की आंतरिक संरचना’ परतों (layers) के रूप में बनी होती है।

 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना एवं बनावट (interior of the earth)

‘पृथ्वी की आंतरिक संरचना एवं बनावट’ को अंग्रेजी भाषा में ‘structure of the earth’ या ‘interior of the earth’ कहतेहैं।

पृथ्वी की बनावट परतों (लेयर्स)  के रूप में होती है, पृथ्वी के अंदर अलग-अलग घनत्व (density) वाले कई लेयर्स/परत पाए जाते हैं। इन लेयर्स को मुख्यतः तीन पार्ट में विभाजित किया गया है –

1. Crust (क्रस्ट)

2. Mantle (मेंटल)

3. Core (कोर)

इन 3 परतों को आगे फिर सब लेयर्स में बांटा गया है जैसे – मेंटल को, अपर मेंटल और लोअर मेंटल में बांटा गया है।

इन तीन लेयर्स को एक उदाहरण से समझते हैं- मान लेते हैं कि धरती एक उबला हुआ अंडा है, अण्डे की बाहरी पतली और सख्त परत ‘crust’ है, इसके अंदर का सफेद भाग ‘मेंटल’ है और मध्य का पीला भाग धरती का ‘कोर’ है।

इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि धरती के अंदर द्रव्य (liquid) और अर्ध द्रव्य (semi liquid) पदार्थ भी पाया जाता है। जबकि उबल अंडे के बीच का भाग जम जाए रहता है। पृथ्वी की ऊपरी सतह से लेकर केंद्र तक की गहराई हजारों किलोमीटर की होती है।

महत्वपूर्ण बिंदू :-  

• धरती की सतह से जैसे – जैसे नीचे की ओर गहराई में जाते हैं घनत्व (density) भी वैसे – वैसे बढ़ती जाती है।

• जैसे – जैसे  हम पृथ्वी की गहराई में जाते हैं वैसे – वैसे तापमान में वृद्धि होने लगती है सामान्यतया भूमि का ताप प्रत्येक 1 किलोमीटर की गहराई पर 25 डिग्री सेंटीग्रेड की दर से बढ़ता है।

• पृथ्वी की गहराई में नीचे की ओर जाने पर प्रेशर भी धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। हम जितना अधिक गहराई में जाएंगे प्रेशर भी उतना ही अधिक बढ़ेगा।

 

1) What is crust ?

थल मण्डल (lithosphere) की ऊपरी परत भूपर्पटी या क्रस्ट कहलाती हैक्रस्ट पृथ्वी की सबसेऊपरी परत है। यह सभी लेयर्स में सबसे पतली होती है। क्रस्ट मुख्य रूप से कई प्रकार के तत्वों (elements) एवं खनिज पदार्थों (मिनरल्स) से मिलकर बनी होती है।

क्रस्ट की मोटाई 0 – 100 किलोमीटर तक होती है और अलग-अलग जगहों पर इसकी मोटाई या गहराई कम – ज्यादा होती है ।

अर्थ क्रस्ट एक सॉलिड लेयर है जो सॉलिड होने के साथ-साथ नाजुक भी होती है इसे आसानी से तोड़ा जा सकता है, इसमें आसानी से ड्रिल करके छेद किया जा सकता है।

‘सीस्मोलॉजिकल स्टडीज’ के आधार पर एवं पृथ्वी में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के चट्टानों के रासायनिक संरचना के अध्ययन के आधार पर अर्थ क्रस्ट एवं अन्य लेयर्स के chemical composition का पता लगाया गया है। कभी भी प्रत्यक्ष रूप से जमीन के नीचे गहराई में जाकर भौतिक रूप से जांच परख नहीं किया गया। धरती में मौजदू सबसे गहरी खदान मात्र 4 किलोमीटर गहरी है और अब तक मनुष्य द्वारा धरती में केवल 12 किलोमीटर की गहराई तक ही ड्रिल किया जा सका है। इसके नीचे और गहराई में हम पहुंच नहीं पाए हैं। इसलिए हमारे पास जो डाटा अवेलेबल है वह indirect sources से प्राप्त डाटा है।

 

क्रस्ट का संगठन –
Composition of crust

क्रमांक तत्व (Elements) प्रतिशत (%)
1 ऑक्सीजन 46.46
2 सिलिकॉन 27.61
3 एल्युमिनियम 8.07
4 आयरन 5.06
5 कैल्शियम 3.64
6 मैग्नीशियम 2.07
7 सोडियम 2.75
8 पोटैशियम 2.58
9 टाइटेनियम 0.62
10 हाइड्रोजन 0.14
11 फॉस्फोरस 0.12
12 मैगजीन 0.09
13 कार्बन 0.09
14 सल्फर 0.06
15 क्लोरीन 0.05
16 बेरियम 0.04
17 फ्लोरिन 0.03
18 इंट्रासियम 0.02

 

क्रस्ट/Crust मुख्यतः दो प्रकार की होती है

1. continental crust 
2. oceanic crust

1. Continental crust –

पृथ्वी की वह परत जिसमें मनुष्य तथा अन्य जीव जंतु रहते हैं पेड़ पौधे, पहाड़ तथा जंगल पाए जाते हैं उसे कॉन्टिनेंटल (Continental)  क्रस्ट कहते हैं ।

कॉन्टिनेंटल क्रस्ट की एवरेज मोटाई 35 किलोमीटर होती है तथा अलग-अलग स्थानों पर इसकी गहराई कम ज्यादा होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में कॉन्टिनेंटल क्रस्ट की मोटाई 70 किलोमीटर तक होती है। जिस तरह इमारतों की ऊंचाई अधिक होने पर उसके भार को संभालने के लिए उसकी नींव को भी अधिक गहरी बनाई जाती है। ठीक उसी प्रकार ऊंची – ऊंची पहाड़ियों को स्थिर रखने के लिए उसके नीचे की नींव अर्थात कॉन्टिनेंटल क्रस्ट भी उतने ही अधिक मोटी होती है।

इसकी मोटाई अधिक तो होती है परंतु यह oceanic crust की अपेक्षा हल्की होती है और इसका घनत्व भी कम होता है।

कॉन्टिनेंटल क्रस्ट का मुख्य खनिज घटक (mineral constituents) सिलिका और एल्युमिनियमहै।

Si + al = sial ( silica+aluminium)

अतः हम कह सकते हैं कि कॉन्टिनेंटल क्रस्ट sial का बना होता है।

कॉन्टिनेंटल क्रस्ट का घनत्व (density) 2.7g/cm³ होता है। और जैसे – जैसे हम नीचे की ओर गहराई में जाते हैं घनत्व धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।

2. Oceanic crust –

समुद्र के नीचे समुद्र तल (sea bed) पर जो Crust पाई जाती है उसे oceanic crust कहते हैं।

ओशियेनिक क्रस्ट की गहराई/मोटाई सामान्यतः 5 किलोमीटर तक होती है। इसकी मोटाई भले कम होती है लेकिन इसकी density कॉन्टिनेंटल क्रस्ट के अपेक्षा बहुत ज्यादा होती है। ओशियेनिक क्रस्ट बेसालिक चट्टान की बनी होती है और इसका density 3g/cm³ होती है।

ओशियेनिक क्रस्ट का मुख्य खनिज घटक (mineral constituents) सिलिका और मैग्नीशियम होता है।

Si + Ma = Sima (silica+magnisium)

इस तरह हम कह सकते हैं कि ओशियेनिक क्रस्ट Sima का बना होता है।

समुद्र असल में पृथ्वी की सतह पर मौजूद गड्ढा है जिसमें पानी भरा रहता है और इस पानी भरे स्थान को समुद्र कहते हैं। ओशियेनिक क्रस्ट की मोटाई कम रहती है क्योंकि कई कारणों से इसकी मोटाई में वृद्धि नहीं हो पाती है। यह लगातार sub merge होती रहती है और उसी गति से इसका निर्माण प्रक्रिया भी चलती रहती है।

 

2) What is mantle ?

क्रस्ट के नीचे का भाग मेंटल (Mantle) कहलाता है। क्रस्ट लेयर के नीचे मेंटल लेयर पाई जाती है इसमें पृथ्वी का अधिकांश वॉल्यमू पाया जाता है।

मेंटल लेयर में molten magma पाई जाती है। ये लेयर सामान्यतया solid और semi solid अवस्था में पाई जाती है।

क्रस्ट और मेंटल जिस स्थान पर आपस में मिलते हैं उसे moho’s discontinuity कहते हैं। मेंटल की गहराई moho discontinuity से प्रारंभ होकर 2,900 किलोमीटर की गहराई तक पाई जाती है।

मेंटल की density 3.4g/cm³ होता है। मेंटल की density, क्रस्ट की अपेक्षा अधिक होती है।

Earthquake की speed के आधार पर मेंटल को दो भागों में विभाजित किया गया है-

1. Upper mantle

2. Lower matle

Upper mantle and Lower mantle के बीच 300 किलोमीटर मोटी transition zone पाई जाती है।

 

3) What is the Core? 

Mantle layer के नीचे तीसरी तथा अंतिम inner most layer पाई जाती है जिसे कोर कहते हैं। यह धरती की सबसे भीतरी और अंतिम लेयर होती है। कोर का मुख्य खनिज घटक (mineral constituent) सिलिका और आयरन होता है।

Ni + fe = Nife (Nickil+ferrous)

कोर का वॉल्यूम पूरे पृथ्वी के वॉल्यूम का 16% होता है तथा कोर का mass पूरे पृथ्वी का 32% होता है।

Core का radius (अर्ध व्यास/त्रिज्या) 3500 किलोमीटर की होती है।

कोर को प्रमुख रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है-

1. Outer core. 

2. Inner core.

 

1. Outer core

आउटर कोर का विस्तार पृथ्वी के भीतर 2,900 किलोमीटर की गहराई से शुरू होकर 5,900 किलोमीटर गहराई के बीच माना गया है। अध्ययनों के द्वारा यह पता लगाया गया है कि यह लेयर लिक्विड या सेमी लिक्विड मटैेरियल का बना है।

पृथ्वी के कोर में पाए जाने वाले minerals एंड elements अत्यधिक तापमान के वजह से सेमी लिक्विड मटेरियल में परिवर्तित हो गए हैं।

पृथ्वी के नीचे गहराई में जैसे – जैसे नीचे जाते हैं वैसे – वैसे तापमान, दबाव और घनत्व में भी वृद्धि होने लगती है। Mantle खत्म  होते – होते तापमान इतना अधिक बढ़ जाता है कि आउटर कोर का मटेरियल बढ़ते तापमान के साथ पिघल जाता है और पिघलने के कारण आउटर लेयर द्रव अवस्था (liquid state) में पाया जाता है।

outer core की density 5g/cm³ होता है।

 

2. Inner core

inner core की गहराई/मोटाई आउटर कोर की निचली सतह 5,100 किलोमीटर से शुरू होकर 6,378 किलोमीटर तक नापी गई है। Earthquake waves की स्पीड इस भाग में 11.23km/Sec रहती है।

Inner core ठोस अवस्था (solid state) मे रहता है । ये  outer core की भांति पिघलता नहीं है इसका कारण यह है कि , Inner core पृथ्वी के बिल्कुल केंद्र में स्थित है और केंद्र में स्थित होने के कारण पृथ्वी का extreme pressure and temperature core में पड़ रहा है। extreme pressure and temperature के कारण inner core पिघलने के स्थान पर ठोस अवस्था में परिवर्तित होकर solidify गया है।

और इतने भयंकर रूप से solidify हो गया है कि इस का घनत्व 13g/cm³ हो गया है। उदाहरण के लिए यह लोहे के छर्रे (small metal ball) के समान solidify हो गया जिसका साइज चांद के जितना है।

inner core हमेशा घूमती रहती है और इसकी घूमने की गति पृथ्वी की घूमने की गति से अधिक है । पृथ्वी 24 घण्टे में एक चक्कर लगाती है जबकि inner core इतने समय में कई चक्कर लगा लेता है ।

 

Discontinuity kya hai ?

पृथ्वी के अंदर कई प्रकार के लयर पाए जाते हैं जैसे  – crust, mantle and core इन लेयर्स के end point or touch point, जिस स्थान पर दोनों लेयर्स एक दूसरे से मिलते हैं, उस स्थान को डिस्कंटीन्यूटी (Discontinuity) कहते हैं।

पृथ्वी में 5 तरह की डिस्कंटीन्यूटी (Discontinuity) पाई जाती है

1. Conard discontinuity

समुद्र तल (sea bed) पर पाई जाने वाली डिस्कंटीन्यूटी को, कोनार्ड डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं।

2. Moho’s discontinuity

Crust और mantle के बीच जो डिस्कंटीन्यूटी पाई जाती है उसे मोहोस डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं। इसकी खोज सर्वप्रथम ए. मोहोरोवीसिस ने 1909 में की थी। इसलिए उनके नाम पर इस डिस्कंटीन्यूटी का नाम रखा गया है।

3. Repetli discontinuity

Mantle को दो भागों में बांटा गया है- अपर मेंटल एंड लोअर मेंटल। इन दोनों अपर एंड लोअर मेंटल के बीच जो डिस्कंटीन्यूटी पाई जाती है उसे ही रेपेटली डिस्कंटीन्यूटी कहतेहैं।

4. Gutensburg discontinuity

mantle और core के बीच जो डिस्कंटीन्यूटी पाई जाती है उसे ही गटुेंसबर्ग डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं।

5.Lehman discontinuity

पृथ्वी के Core को दो भागों में बांटा गया है आउटर कोर और इनर कोर। इन दोनों इनर और आउटर कोर के मध्य जो डिस्कंटीन्यूटी पाई जाती है उसे ही लेमन डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं।

डिस्कंटीन्यूटी को याद करने के लिए ट्रिक –

Trick– “कोई मुझे रेड गुलाब ला दो।’

कोई        – Conard discontinuity

मुझे        – Mohos discontinuity

रेड         – Repetli discontinuing

गुलाब     – Gutensburg discontinuity

ला दो     – lehman’s discontinuity

 

Spheres Present in Earth –

पृथ्वी के अदंर कई प्रकार के spheres पाए जाते हैं। आइए जानते हैं की धरती के अंदर कौन-कौन से sphere/क्षेत्र पाए जाते हैं :-

1. Lithosphere –

क्रस्ट और अपर मेंटल के कुछ भाग को सम्मिलित रूप से लिथोस्फीयर ‘(Lithosphere)’ कहते हैं।

 

2. Misosphere

Asthenosphere से लेकर core तक के भाग को mesosphere कहते हैं।

 

3. Barysphere or centrosphere –

inner core and outer core को सम्मिलित रूप से बेरीस्फीयर या सटैंरोस्फीयर (Barysphere or centrosphere) कहते हैं।

 

4. Asthenosphere

Upper mantle में asthenosphere पाया जाता है। Astheno का शाब्दिक अर्थ weak होता है जिसे हिंदी  में कमजोर या ढीला कहते हैं। इसकी गहराई 400 किलोमीटर से शुरू होती है oceanic and continental part में इसका विस्तार कम ज्यादा हो सकता है। इस लेयर की मोटाई 100 से 200 किलोमीटर तक होती है। Volcanic eruption के समय जो लावा बाहर निकलता है उसका मुख्य  स्रोत Asthenosphere ही है।

 

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Conclusion –

● पृथ्वी की ऊपरी सतह मिट्टी से ढकी रहती है। और इस मिट्टी के ऊपर जंगल, समुद्र, बड़ी बड़ी पहाड़िया पाई जाती है। पृथ्वी का बाहरी भाग बिल्कुल ठंडा एवं ठोस रूप में है लेकिन इसका आंतरिक भाग बहुत ज्यादा गर्म है।

● पृथ्वी की आन्तरिक बनावट परतों (लेयर्स) के रूप में पाई जाती है।

● पृथ्वी के अंदर अलग-अलग घनत्व (density) वाले कई लेयर्स पाए जाते हैं। इन लेअर्स को मुख्यतः तीन पार्ट में विभाजित किया गया है-

1. Crust (क्रस्ट)

2. Mantle (मेंटल)

3. Core (कोर)

● मनुष्य धरती के नीचे केवल 12 किलोमीटर तक ही पहुंच पाया है। उसके नीचे का भाग अभी भी मनुष्य के पहुंच से दूर है।

● दो लेयर्स के end point या touch point, पर जिस स्थान पर दोनों लेयर्स एक दूसरे से मिलते हैं, उस स्थान को डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं।

 

रेफरेंस

इस ब्लॉग पोस्ट में दी गई जानकारी- बुक ऑफ सॉयल साइंस बाय विनय सिंह , मैग्नेट ब्रेन तथा अन्य स्रोतों से एकत्रित सामग्री का विश्लेषण करने के बाद तैयार की गई है। हमें आशा है कि यह इन्फॉर्मेशन आपके लिए उपयोगी साबित होगा।

धन्यवाद।।

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