फसल चक्र l What is Crop Rotation in Hindi and Croping Intensity

 

लगातार एक ही प्रकार के फसल एक ही भूमि में उगाने से भूमि की उपजाऊ पन धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है और उत्पादन में भी कमी होने लगती है । इसके लिए यह आवश्यक है कि किसी फसल को लगातार एक ही खेत में उगाने से अच्छा है फसलों को अदल बदल कर बोना जी हां आप समझ गए होंगे आज हम बात करेंगे फसल चक्र (Crop Rotation in Hindi) के बारे में जिसे सस्य आवर्तन भी कहा जाता है । फसल चक्र , फसल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण भाग है ।

इस लेख में हम पढ़ने वाले हैं फसल चक्र (Crop Rotation in Hindi) के बारे में कि यह क्या है, फसल चक्र के सिद्धांतों, उद्देश्य, प्रकार और लाभ तथा फसल चक्र सघनता सूत्र सहित अध्ययन।

Crop Rotation in Hindi

फसल चक्र क्या है?(What is Crop Rotation)

जैसे कि नाम से ही आभास हो रहा है फसल (Crop) और चक्र (Rotation) – चक्र का मतलब होता है एक क्रम या अदल बदल कर । तो फसल चक्र का मतलब होता है फसलों को बदल बदल कर उगाना।

मतलब एक ही खेत में अलग-अलग सीजन में अलग-अलग फसलों को अदल – बदल कर उगाना फसल चक्र कहलाता है । इसका मुख्य उद्देश्य मृदा की उर्वरता को बनाये रखना है ।

 

चलिये फसल चक्र की परिभाषा देखते हैं –

फसल चक्र की परिभाषा (Definition of Crop Rotation in Hindi)

“किसी निश्चित क्षेत्र या खेत में एक निश्चित समय पर फसलों को इस प्रकार हेर – फेर करके उगाना ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहे और उत्पादन भी अच्छा हो फसल चक्र कहलाता है ।”

Who is the Father of Crop Rotation ? : फसल चक्र के जनक कौन है ? – फसल चक्र के बारे में सर्वप्रथम नोर फॉर्क (Nor Fork) ने बताया था इसलिए Nor Fork को फसल चक्र का जनक (Father of Crop Rotation) कहा जाता है ।

 

फसल चक्र के उद्देश्य (Objectives of Crop Rotation)

(1) उत्पादन में वृद्धि करना ।

(2) मृदा उर्वरता को बनाये रखना ।

(3) पर्यावरण संतुलन को बनाये रखना ।

(4) भूमि परती / खाली नही छोड़ना ।

(5) निरन्तर उत्पादन लेना ।

 

फसल चक्र के सिद्धांत (Principle of Crop Rotation)

फसल चक्र टॉपिक (Crop Rotation in hindi) के बारे में यही सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि इसके सिद्धांत क्या है और यही उत्तम फसल चक्र का आधार है ।

(1) अधिक पोषक तत्व चाहने वाली फसलों के बाद कम पोषक तत्व चाहने वाली फसल लेना :-इससे होता यह है कि अगर आप लगातार अधिक पोषक तत्व चाहने वाली फसल जैसे धान, कपास आदि उगाते हैं तो मृदा की उर्वरा नष्ट होने लगती है ।इसलिए अधिक पोषक तत्व मांग वाली फसलों के बाद कम पोषक तत्व मांग वाली फसल उगाना चाहिए जैसे कोई दलहनी फसल – चना, उड़द , अरहर आदि ।  

 

(2) अदलहनी फसल के बाद दलहनी फसलें उगाना चाहिए या दलहनी फसल के बाद अदलहनी :-  इससे यह होता है कि दलहनी फसलों के जड़ों में नोड्यूल्स होते हैं जो वायुमंडल के नत्रजन को मृदा में स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation) करते हैं जिससे मृदा उर्वरता के साथ-साथ मृदा में नत्रजन(N) मात्रा में वृद्धि होती है जो अगले फसल के काम आती है ।

जैसे – खरीफ में सोयाबीन और रबी में गेंहू की फसल

 

 

(3) उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें उगाना :-  इसका फायदा यह होता है कि गहरी जड़ वाली फसल मृदा की निचली परत से पोषक तत्व व नमी ग्रहण करता है और उसके बाद अगले सीजन उथली जड़ वाली फसल मृदा के ऊपरी परत से नमी व पोषक तत्व ग्रहण करती है । जिससे दोनों क्रमबद्ध फसलों के लिए पोषक तत्व व नमी पर्याप्त मात्रा में मिलती है ।

 

(4) एकबीजपत्रीय (Monocot) फसल के बाद द्विबीजपत्रीय (Dicot) फसल या द्विबीजपत्री फसल के बाद एकबीजपत्री फसल उगाना :- ऐसे में अलग-अलग प्रकृति (Nature) की फसल उगाने से फसलों में रोग व कीट लगने की संभावना बहुत कम हो जाती है ।

 

(5) अधिक जलमांग वाली फसलों के बाद कम जलमांग वाली फसल उगाना :- उदाहरण – खरीफ में धान और रबी में चना

अगर लगातार अधिक पानी चाहने वाली फसल उगाते हैं तो मृदा के लवण लीचिंग के द्वारा नीचे चली जाती है जिससे मृदा अम्लीय होने लगती है । इसीलिए अधिक जल मांग वाली फसल के बाद कम जल मांग वाली फसलें उगाना चाहिए । इसके विपरीत अगर आप लगातार कम जल मांग वाली फसलें उगाते हैं तो लवणों (Salt)  के ऊपर आने के कारण मृदा लवणीय होने लगती है ।

 

(6) अधिक जड़ फैलने (Spread) वाली फसलों के बाद कम फैलने वाली फसलें उगाना चाहिए :- इससे जिन क्षेत्रों में जिस सीजन में मृदा क्षरण (Soil Erosion) होता है तो उसे अधिक जड़ फैलने वाली फसल या फैलने वाली फसल लगाकर कम किया जा सकता है ।

 

 

फसल चक्र के प्रकार (Types of Crop Rotation)

फसल चक्र फसलों की अवधि (Duration) के आधार पर तीन प्रकार की मानी जाती है-

(1) एकवर्षीय फसल चक्र :- ऐसे फसलों की अवधि एक ही सीजन में पूरी हो जाती है ।

उदाहरण – धान — चना

(2) द्विवर्षीय फसल चक्र :-  इसमें अलग-अलग अवधि वाली फसल लिया जा सकता है जैसे 1 वर्ष अवधि वाली या एक सीजन वाली ।

उदाहरण :- सोयाबीन — गेहूं — मूंग — मक्का — चना

(3) बहूवर्षीय फसल चक्र :-  इसमें लंबी अवधि वाली फसलों को भी शामिल किया जा सकता है जैसे गन्ना

उदाहरण : –  मक्का — चना — तरबूज — सोयाबीन — गन्ना — पेड़ी — उड़द

 

फसल चक्र सघनता (Crop Rotation Intensity)

कई बार कई परीक्षाओ में पूछा जाता है कि फसल चक्र की सघनता कैसे निकालते हैं इसके लिए आपको दो बातों का ध्यान रखना होगा एक फसलों की संख्या और दूसरा उन फसलों की अवधि या वर्ष । यह दोनों पता होगा तो आप आसानी से फसल चक्र सघनता ज्ञात कर सकते हैं ।

सूत्र : Crop Rotation Intensity Formula –

 

चलिये इसे बहुत ही अच्छी तरीके से कुछ उदाहरणों द्वारा समझते हैं :-

एकवर्षीय :- धान — चना

तो फसलो की संख्या दिया गया है  = 2 और वर्ष = 1

सूत्र के माध्यम से – 2/1 ×100 = 200 %  ✓

इसका मतलब 1 वर्ष में धान और चना का फसल चक्र सघनता 200% होगी

अब दूसरा उदाहरण देखतें है –

द्विवर्षीय – सोयाबीन — गेंहू — मूंग — मक्का — चना

फसलों की संख्या = 5

वर्ष  = 2

5/2 × 100  = 250 ℅ फसल चक्र सघनता ✓

अब बहुवर्षीय फसल चक्र के लिए देखते हैं । कई बार परीक्षा में सिर्फ फसलों के नाम देकर यह पूछा जाता है कि इसके फसल चक्र सघनता ज्ञात कीजिए ।

उदाहरण :- फसल चक्र सघनता ज्ञात कीजिए –

मक्का – चना – तरबूज – सोयाबीन – गन्ना – पेड़ी – मूंग

= दिए गए फसलों का फसल चक्र सघनता इन फसलों की अवधि को आपस में जोड़कर वर्ष में परिवर्तित करके निकालते हैं । जैसे :-

मक्का की अवधि – 4 माह

चने की अवधि – 4 माह

तरबूज की अवधि लगभग-  3 माह

सोयाबीन की अवधि – 4 माह

गन्ने की अवधि  – 12 माह

गन्ना पेड़ी की अवधि – 12 माह

मूंग की अवधि – 3 माह

= सभी अवधियों को जोड़ने से 42 माह होते हैं मतलब लगभग  – 4 साल मानते हैं ।

फसलों की संख्या = 7

अवधि (वर्ष) = 4

  =  7/4 × 100  = 175 % फसल चक्र सघनता✓ 

फसल चक्र सघनता में ध्यान देने वाली बात यह है कि –

● फसल चक्र सघनता कभी भी 100% से कम नहीं  होती ।

● अगर कभी आपको सोयाबीन + मक्का का या इस प्रकार दो फसलों के बीच में धन चिन्ह (+) लगी फसलों का फसल चक्र सघनता निकालने कहे तो इसका मतलब होता है कि दोनों फसलें एक साथ एक ही खेत मे लगी है ।

हरी खाद — आलू — गन्ना – अगर इनमें से फसल चक्र सघनता निकालने कहे तो हरी खाद को फसलों की संख्या में नहीं जोड़ते लेकिन इसकी अवधि को जोड़ा जाता है ।

● इसी प्रकार यदि किसी फसल चक्र में किसी भी एक सीजन में खेत खाली या परती छोड़ा जाता है (जैसे- धान–परती–आलू )  तो परती को नही जोड़ा जाता लेकिन इसकी अवधि को जोड़ा जाता है।

 

फसल चक्र के लाभ (Benefits / Advantages of Crop Rotation in Hindi)

● फसल चक्र से सबसे बड़ी लाभ यह है कि इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है ।

● इससे पर्यावरण का संतुलन भी बना रहता है ।

● फसल चक्र से उत्पादन में वृद्धि होती है ।

● चूंकि अलग – अलग प्रकृति के फसलों को अदल बदल कर उगाया जाता है जिससे रोग व कीटों से आक्रमण की संभावना कम होती है

●  भूमि को खाली नहीं छोड़ा जाता जिससे निरंतर उत्पादन मिलता रहता है ।

● खाद एवं उर्वरक की कम आवश्यकता होती है । चूंकि  दलहनी फसल नाइट्रोजन की पूर्ति अगली फसल के लिए कर देता है जिससे अगली फसल में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की आवश्यकता बहुत ही कम होती है या नहीं होती ।

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